महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार को कहा कि शहर में कबूतरखानों को अचानक बंद करना उचित नहीं है और उन्होंने बीएमसी से पक्षियों को नियंत्रित तरीके से दाना दिया जाना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री का यह बयान स्वास्थ्य संबंधी खतरों को देखते हुए मुंबई में पारंपरिक कबूतरखानों को बंद करने की बढ़ती मांग के बीच आया है। इस सबके बीच जैन समुदाय पिछले कुछ महीनों से महाराष्ट्र में बीजेपी से नाखुश है। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या कारण है।
पिछले 6 महीनों में, जैन समुदाय और महाराष्ट्र सरकार के बीच तनाव कई कार्रवाइयों के बाद तेज़ी से बढ़ा है, जैसे एक सदी पुराने मंदिर को गिराना, कबूतरबाज़ी की प्रथाओं पर कार्रवाई, और अदालत के आदेश पर एक मंदिर के हाथी को दूसरी जगह स्थानांतरित करना। भारत में सबसे बड़ी जैन आबादी वाले महाराष्ट्र में, अक्सर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें समुदाय ने प्रशासन पर अपनी धार्मिक परंपराओं के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगाया है। भाजपा डैमेज कंट्रोल में सक्रिय रूप से लगी हुई है और स्पष्ट कर रही है कि ये कार्रवाई न्यायिक आदेशों से हुई है, जैन विरोधी भावना से नहीं।
जैन और बीजेपी के बीच विवाद
अप्रैल में विवाद तब शुरू हुआ जब बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने अवैध निर्माण का हवाला देते हुए विले पार्ले स्थित एक दिगंबर जैन मंदिर के कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया। यह कार्रवाई शहर की एक सिविल अदालत के आदेश के बाद हुई, जिसने मंदिर ट्रस्ट को अंतरिम संरक्षण अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया था।
19 अप्रैल को, हज़ारों जैन समुदाय के लोगों ने अंधेरी पूर्व स्थित बीएमसी के के-ईस्ट वार्ड कार्यालय तक मौन विरोध मार्च निकाला और जवाबदेही की मांग की। एक भाजपा कार्यकर्ता के नेतृत्व में महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने इस तोड़फोड़ की निंदा करते हुए इसे “समय से पहले” बताया और समुदाय के साथ बेहतर परामर्श का आह्वान किया।
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टकराव का एक अन्य मुद्दा सरकार द्वारा कबूतरखाने को बंद करने का कदम था, जो जैन धर्मावलंबियों के लिए जीव दया (सभी जीवन के लिए करुणा)” के प्रतीक के रूप में आध्यात्मिक महत्व रखते हैं। 3 जुलाई को विधान परिषद सत्र के दौरान, मंत्री उदय सामंत ने जन स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए मुंबई में 51 कबूतरखानों को बंद करने की घोषणा की। इसके बाद, बीएमसी ने शहर भर में एक अभियान चलाया, जिसमें लोगों पर जुर्माना लगाया गया और कबूतखानों को बंद कर दिया गया।
महादेवी हथिनी को वंतारा में
एक अन्य मामले में, जिसने समुदाय में विरोध को जन्म दिया, महादेवी नामक 36 वर्षीय हथिनी, जो 30 वर्षों से कोल्हापुर के नंदनी गांव के जैन मठ में रह रही थी, को अदालत के आदेश से गुजरात के वंतारा हाथी अभयारण्य में स्थानांतरित कर दिया गया। यह निर्णय एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसने पेटा की शिकायत के बाद महादेवी की खराब सेहत का पता लगाया था। 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आदेश को बरकरार रखने के बाद, नंदनी और कोल्हापुर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जहां हज़ारों लोगों ने धार्मिक और भावनात्मक संबंधों का हवाला देते हुए और उसकी वापसी की मांग करते हुए कलेक्ट्रेट तक मार्च निकाला।
डैमेज कंट्रोल के लिए क्या कर रही है BJP?
जैन समुदाय की बढ़ती निराशा से पूरी तरह वाकिफ, भाजपा इस तूफ़ान को शांत करने के लिए काम कर रही है। मंदिर विध्वंस के बाद, भाजपा नेता विरोध प्रदर्शनों और एकजुटता मार्च में शामिल हुए। कबूतरों को दाना खिलाने पर प्रतिबंध के प्रति आक्रोश के जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मंगलवार को एक बैठक की, जिसमें उन्होंने कबूतरों को दाना डालने के लिए एक निश्चित समय पर नियम बनाने की संभावना जताई। कोल्हापुर में हाथी को लेकर जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए, फडणवीस ने कहा कि उनका प्रशासन उसे वापस लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर करेगा।
जैन समुदाय के एक भाजपा पदाधिकारी ने कहा, “यह सच है कि समुदाय नाराज़ है। हम ऐतिहासिक रूप से भाजपा के साथ जुड़े रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि समुदाय को लगेगा कि उन्हें नुकसान हो रहा है। भाजपा जैन प्रकोष्ठ के अध्यक्ष संदीप भंडारी ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “सरकार की कार्रवाई जैन समुदाय के प्रति भाजपा की किसी भी शत्रुता से प्रेरित नहीं है। ये सभी घटनाएं अदालती आदेशों के कारण हुई हैं। सरकार समुदाय के साथ पूरी तरह खड़ी है और उम्मीद है कि कोई सौहार्दपूर्ण समाधान निकल आएगा।” पढ़ें- प्रचंड बहुमत के बाद भी इतनी कन्फ्यूज कैसे फडणवीस सरकार?