महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) चीफ राज ठाकरे का मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने से जुड़ा अल्टीमेटम वाला बयान उन्हीं के गले की फांस बन गया। गुरुवार (14 अप्रैल, 2022) को ठाकरे के अपने रुख पर कायम रहने की वजह से पार्टी के एक मुस्लिम नेता ने मनसे से खुद को अलग कर लिया। कहा कि वह समझते थे कि राज ठाकरे ही आशा की किरण हैं, पर गुड़ी पड़वा रैली में कुछ और ही तस्वीर देखने को मिली।

ठाकरे को लिखे एक खत में शेख बोले- मैं ‘‘भारी मन’’से पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं। जिस पार्टी के लिए काम किया हो और उसे सब कुछ माना, अगर वही पार्टी उस समुदाय के खिलाफ घृणास्पद रुख अपनाए (जिससे वह आते हैं) तो ऐसे में अब ‘जय महाराष्ट्र’ (अलविदा) कहने का समय आ गया है ।’’

उनके मुताबिक, जब इसका गठन हुआ था, तब मनसे का विचार जातिविहीन राजनीति करने का था। बकौल शेख, ‘‘राज साहेब ठाकरे आशा की किरण थे। लेकिन गुड़ी पड़वा रैली के दौरान हमें कुछ अलग देखने और सुनने को मिला।’’ शेख ने आगे यह भी पूछा कि मनसे को उन ताकतों का अनुसरण करने की जरूरत क्यों महसूस हुई जो ‘‘नफरत की राजनीति करती हैं?’’

शेख ने पत्र में कहा कि ठाकरे को अजान और मस्जिदों के बारे में 16 साल बाद संदेह हुआ। शेख ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया कि जब ठाकरे उनके साथ थे तो उन्होंने इस मुद्दे पर कभी बात क्यों नहीं की। वह बोले, ‘‘साहेब हो सकता है कि आप अपनी ओर से गलत न हों। लेकिन हम महसूस कर रहे हैं कि कुछ गंभीर होने वाला है। कृपया मेरी तरफ से दिया गया इस्तीफा स्वीकार कर लें।’’ उन्होंने इस चिट्ठी को फेसबुक पोस्ट के साथ शेयर किया है।

‘महाराष्ट्र सरकार न बिगड़ने देगी सूबे का माहौल’: इस बीच, ठाकरे पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वाल्से पाटिल ने कहा कि सरकार ने इसे ‘‘गंभीरता’’ से लिया है। वह किसी को भी राज्य में माहौल बिगाड़ने नहीं देगी। मनसे और भाजपा मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने की मांग करते हुए अदालत के एक फैसले का जिक्र कर रही हैं।

वैसे, पाटिल की टिप्पणियां तब आई हैं, जब एक दिन पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) चीफ शरद पवार ने इस मुद्दे को उठाने के लिए ठाकरे की आलोचना की थी। साथ ही कहा था कि राज्य सरकार मनसे प्रमुख की ओर से मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने का तीन मई तक का अल्टीमेटम देने को ‘‘गंभीरता’’ से लेगी।