महाराष्ट्र में शिवसेना आंतरिक विद्रोह का सामना कर रही है, उसकी पूर्व सहयोगी भाजपा सत्ता में लौटने के लिए सभी विकल्पों का पता लगाने में जुटी है। भाजपा का मानना ​​है कि शिवसेना में विभाजन उसके फायदे के लिए काम कर सकता है, वहीं इस संकट को करीब से देख रहे उसके नेताओं ने सत्ता की राह पर पूरी सावधानी से चलने का फैसला किया है क्योंकि वे भोर में शपथ लेकर सरकार बनाने की 2019 की नाकाम कोशिश की पुनरावृत्ति होने के प्रति सचेत हैं।

भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘हमारे पास प्लान ए और प्लान बी है। “हमारी पहली योजना के अनुसार, यदि शिवसेना को सीधे-सीधे विभाजित किया गया, तो भाजपा के पास विद्रोही समूह के साथ गठबंधन करने और सरकार बनाने का एक अच्छा मौका होगा। यहां पकड़ यह है कि शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को अपने पक्ष में दो-तिहाई बहुमत बरकरार रखना होगा। वैकल्पिक रूप से हम विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लाभ के लिए शिवसेना में विभाजन का इस्तेमाल करने की योजना बना रहे हैं।”

पार्टी नेताओं ने यह भी कहा कि चूंकि राज्य विधानमंडल का मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होगा, इसलिए भाजपा महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। एक नेता ने कहा, “फ्लोर टेस्ट सत्तारूढ़ एमवीए द्वारा प्राप्त संख्या का खुलासा करेगा।”

सूत्रों ने कहा कि शिंदे के शिवसेना के 55 में से कम से कम 37 विधायकों को बरकरार रखने की संभावना है। सूत्र ने कहा, “यदि शिंदे सफल होते हैं, तो यह भाजपा के साथ विलय के दरवाजे खोल देगा, हालांकि यह उनके निर्णय के अधीन होगा।”

106 विधायकों वाली भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और उसे छोटे दलों और निर्दलीय सहित 27 अतिरिक्त विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार, 133 वोटों के साथ भाजपा और 37 बागी शिवसेना विधायक इसकी संख्या बढ़ाकर 170 कर देंगे, सूत्रों ने कहा। जबकि बहुमत के लिए आवश्यकता 145 विधायकों की है।

हाल ही में राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों के दौरान, विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, “हमारी रणनीति एमवीए के भीतर अशांति का फायदा उठाने की है। भाजपा नाराज विधायकों को कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना के छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को एक विश्वसनीय विकल्प प्रदान करने जा रही है।

भाजपा के एक विधायक ने कहा, “शिवसेना के भीतर विद्रोह ने हमारे सामने दो संगठन खड़े कर दिए हैं- उद्धव ठाकरे की सेना बनाम एकनाथ शिंदे की सेना…। अब, चूंकि उद्धव ठाकरे ने 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा को पहले ही धोखा दे चुके है, ऐसे में हमारे पास शिंदे की सेना में ज्यादा विकल्प हैं।”

23 नवंबर, 2019 को, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने फडणवीस को मुख्यमंत्री और राकांपा के अजीत पवार को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी। हालांकि सरकार करीब 80 घंटे ही चल पाई। 28 नवंबर, 2019 को शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा, ‘2019 में शिवसेना और भाजपा ने सहयोगी बनकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने के लिए उनको धोखा दिया। यह निर्णय उसके अधिकतर सदस्यों को स्वीकार्य नहीं था, लेकिन ठाकरे उन्हें आश्वस्त करते रहे कि तीन-पक्षीय गठबंधन अस्थायी है, इसका उद्देश्य भाजपा को सबक सिखाना है। बाद में वह भाजपा से हाथ मिलाएंगे।

“अब, शिवसेना के अधिकतर सदस्य मानते हैं कि उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों को बरकरार रखने के लिए भाजपा के समर्थन की आवश्यकता है। अगले चुनाव में उनका कांग्रेस और राकांपा के साथ कोई गठबंधन नहीं हो सकता।” भाजपा के एक नेता ने कहा, “भाजपा और शिवसेना स्वाभाविक सहयोगी थे। शिवसेना के सदस्य सिर्फ सीएम पद के लिए कांग्रेस और एनसीपी जैसे विरोधियों के साथ गठबंधन कैसे स्वीकार कर सकते हैं।”