भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर काफी घातक साबित हो रही है। चिंता की बात यह है कि इस बार कोरोना के मामले शहरी आबादी के साथ गांवों तक में मिल रहे हैं। राज्य सरकार भी इसे लेकर काफी चिंतित हैं। दरअसल, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी बद्तर हैं। इसका एक नजारा मध्य प्रदेश में भी देखने को मिला है। यहां राजधानी भोपाल के करीब स्थित गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं और 42 गांवों पर सिर्फ एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है। ऐसे में दूर-दराज के गांवों में रहने वालों को इलाज तक के लिए झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
भोपाल से करीब 25 किमी दूर गुनगा गांव में इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 42 गांवों का बोझ है। करीब 40 हजार की आबादी के इलाज की जिम्मेदारी इस स्वास्थ्य केंद्र पर है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अस्पताल में महज 6 लोगों का स्टाफ है। इनमें भी महज एक डॉक्टर है, जबकि बाकी सहायक कर्मचारी हैं। स्टाफ सदस्यों का कहना है कि पहले केंद्र में 3 और डॉक्टर थे। लेकिन हर डॉक्टर की अलग-अलग जगह ड्यूटी लगा दी गई है।
स्वास्थ्य केंद्र के फार्मासिस्ट ने बताया कि तीन-चार महीने पहले तक सेंटर पर 3 डॉक्टर और थे, लेकिन अभी एक सिर्फ एक डॉक्टर हैं। बता दें कि मानक के तौर पर स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम 4 एमबीबीएस डॉक्टर होने चाहिए। इसके अलावा 1 आयुष डॉक्टर, 4 स्टाफ नर्स, 3 फार्मासिस्ट, 1 लैब टेक्नीशियन, 1 चपरासी और 3 वॉर्ड बॉय होने चाहिए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे कोई भी मानक पूरे नहीं किए जाते।
मध्य प्रदेश में यह हाल एक गांव का नहीं, बल्कि लगभग सभी का है। भोपाल से करीब 30 किमी दूर कलारा गांव में तो इकलौते उप-स्वास्थ्य केंद्र तक में ताला लटका हुआ है। इस केंद्र को ही क्वारैंटाइन सेंटर भी बना दिया गया था। हालांकि, फिलहाल यहां न किसी के इलाज की व्यवस्था है और न ही कोई स्वास्थ्यकर्मी मौजूद है। ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के सभी दावों पर एक बार फिर सवालिया निशान लगने लगे हैं।
