कुछ लोग पूरी जिंदगी गरीबी में बिता देते हैं, लेकिन बेईमानी का रास्ता नहीं पकड़ते हैं। बिहार के पश्चिम चंपारन के खदेरु मियां ऐसे ही शख्स थे। खदेरु वर्ष 1980 में स्टेट बैंक बगहा दो के पीछे खेती कर रहे थे। हल चलाने-चलाते उन्हें मिट्टी में दबी एक सुराही मिली। उसमें साढ़े आठ किलो सोना व साढ़े सात किलो चांदी के सिक्के व आभूषण थे। उन्होंने जिद पकड़ ली कि इसे वे तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को देंगे। इस दौरान स्थानीय अफसरों ने उनसे इसे उन्हें सौंपने को कहा, लेकिन वे नहीं मानें। उन्होंने दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री को वह सुराही सौंपी। उनके साथ गए तत्कालीन डीएम को इंदिरा गांधी ने उनकी ईमानदारी के लिए 20 एकड़ भूमि का पट्टा देने को कहा। पिछले चालीस साल वे इसका इंतजार कर रहे थे, लेकिन उन्हे नहीं मिला। सोमवार को उनकी 80 वर्ष की उम्र में इंतकाल हो गया।
बेहद गरीबी और तंगहाली के बीच उन्होंने आखिरी सांस ली। जीवनपर्यंत वे अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे। लेकिन, प्रशासनिक स्तर पर उनकी कोई मदद नहीं हुई। सोमवार की सुबह उनके घर मोहल्ले वालों सहित नगर के लोगों का तांता लगा रहा। सोमवार को ही जनाजे के बाद उनके पार्थिव शव को सुपुर्दे खाक कर दिया गया।
खदेरु मियां अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। जिस वक्त उनको सोने-चांदी के सिक्कों से भरी सुराही मिली थी, उस वक्त उन पर बहुत दबाव डाला गया। अफसरों ने उनसे उसे स्थानीय प्रशासन को सौंपने को कहा। उन पर कई लोगों ने हमले भी किए, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे। दिल्ली से लौटने के बाद तत्कालीन डीएम ने वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र में 20 एकड़ भूमि का पट्टा प्रधानमंत्री के आदेश पर दे दिया, लेकिन उन्हें कब्जा नहीं मिल सका।
डीएम के स्थानांतरण के बाद अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वे परेशान रहे, दौड़ लगाते रहे, लेकिन जमीन पर कब्जा नहीं मिला। इस बीच अपनी तीन बेटियों की शादी की। छोटी बेटी के पुत्र को गोद लिया। अंतिम दिनों में वे आर्थिक तंगी से जूझते रहे। उनके इंतकाल में मौजूद हर शख्स उनकी ईमानदारी की चर्चा करता रहा।