लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे घोषित होने के बाद यूपी में सपा-बसपा गठबंधन टूटने की अटकलें लगने लगी थीं। इन चर्चाओं पर विराम तब लगा, जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यूपी की 11 विधानसभा सीटों पर अकेले उपचुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। मायावती की इस घोषणा के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी ताव में दिखे। उन्होंने गठबंधन टूटने को लेकर गहनता से विचार करने की बात कही, लेकिन उपचुनाव में अकेले लड़ने की घोषणा कर डाली। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान 25 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर दोस्ती की बात करने वाला यह गठबंधन महज 144 दिन ही चला। आइए जानते हैं इस गठबंधन का अब तक का लेखा-जोखा:

25 साल से थी दुश्मनी: सपा-बसपा की दुश्मनी जगजाहिर है। 1993 में दोनों दलों ने गठबंधन किया था और उत्तर प्रदेश में मायावती के समर्थन से मुलायम सिंह यादव ने सरकार बनाई थी। हालांकि, करीब डेढ़ साल बाद ही इस गठबंधन में फूट पड़ने लगी थी। उसी दौरान खबर फैली कि मायावती और बीजेपी में तालमेल की बातें चल रही हैं। इससे सपा कार्यकर्ता नाराज हो गए और उन्होंने 2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। उस वक्त मायावती अपने कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग कर रही थीं। सपा कार्यकर्ताओं ने उनके साथ मारपीट की थी। वहीं, मायावती के साथ भी अभद्रता की गई थी।

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12 जनवरी बनी ऐतिहासिक तारीख: 1995 में दोनों दलों के बीच शुरू हुई दुश्मनी 12 जनवरी 2019 के दिन ठंडी पड़ती नजर आई। इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव व बीएसपी सुप्रीमो मायावती एक मंच पर नजर आए और उन्होंने गठबंधन करके यूपी में लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस गठबंधन के तहत बसपा के खाते में 38 सीटें गईं, जबकि 37 सीटों पर सपा ने चुनाव लड़ा। वहीं, 3 सीटें आरएलडी को मिली थीं। इसके अलावा 2 सीटें रायबरेली और अमेठी कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई थीं।

विरोध के बावजूद नहीं झुके अखिलेश-मायावती: सपा-बसपा गठबंधन को लेकर दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में विरोध बरकरार रहा। कुछ जनसभाओं के दौरान दोनों दलों के कार्यकर्ता आपस में भिड़ते नजर आए। हालांकि, अखिलेश और मायावती उन्हें संभालने की कोशिश करते रहे। यहां तक कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने भी इस गठबंधन का विरोध किया, लेकिन बेटे की जिद के आगे वह भी झुक गए। इसके बाद मुलायम सिंह और मायावती भी एक मंच पर दिखे, जहां मुलायम सिंह ने मायावती की जमकर तारीफ की थी और कार्यकर्ताओं से उनका सम्मान करने की बात कही थी।

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बीजेपी के लिए मुश्किल चुनौती माना जा रहा था गठबंधन: यूपी में सपा-बसपा गठबंधन को देखते हुए अधिकतर राजनीतिक विश्लेषकों का अंदाजा था कि बीजेपी इनसे पार नहीं पा सकेगी। उनका मानना था कि सपा-बसपा गठबंधन का जातिगत समीकरण और वोट शेयर बीजेपी को यूपी में टिकने नहीं देगा। यहां तक कि एग्जिट पोल्स तक में कई चैनलों ने गठबंधन को 80 में से 50 सीटें जीतते तक दिखाया था।

पीएम मोदी ने की भविष्यवाणी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को मेरठ में जनसभा की थी। उस दौरान उन्होंने घोषणा की थी कि लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद सपा-बसपा गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच जाएगा। पीएम ने दावा किया था कि बुआ और बबुआ की दोस्ती दिखावे की है। इसकी हकीकत चुनाव के नतीजों के बाद सामने आ जाएगी।

नतीजों ने कर दिया हैरान: लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया। बीजेपी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और लोकसभा की 542 सीटों में से सिर्फ बीजेपी ने 303 सीटें हासिल कीं। वहीं, एनडीए को 353 सीटें मिलीं। यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से एनडीए ने 64 सीटें जीतीं, जबकि गठबंधन के खाते में सिर्फ 15 सीटें गईं। इसके अलावा कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत सकी। गठबंधन में बीएसपी को 10 सीटों पर जीत मिली, जबकि सपा सिर्फ 5 सीटें ही जीत पाई।

144 दिन में ऐसे टूटा गठबंधन: सपा-बसपा ने 12 जनवरी को यूपी में गठबंधन का ऐलान किया था। जनवरी के 20 दिन, फरवरी के 28, मार्च के 31, अप्रैल के 30, मई के 31 और जून महीने के शुरुआती 4 दिन मिलाकर कुल 144 दिन होते हैं। ऐसे में बड़े-बड़े दावे करने वाला यह गठबंधन महज 144 दिन ही चल पाया।

मायावती ने कही यह बात: गठबंधन को लेकर मायावती ने कहा कि सपा-बसपा गठबंधन पर यह परमानेंट ब्रेक नहीं है। अगर भविष्य में सपा प्रमुख अपने कैडर को एकजुट करने में सफल होते हैं तो हम दोबारा साथ काम करेंगे। यह हमारे लिए अच्छा होगा कि हम अलग होकर काम करें। ऐसे में हमने अकेले उप-चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

अखिलेश ने ऐसे किया पलटवार: सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘अगर गठबंधन टूट गया है तो मैं इस पर गहराई से विचार करूंगा। अगर गठबंधन नहीं होता है तो समाजवादी पार्टी भी चुनाव के लिए तैयार होगी। सपा भी उपचुनाव में सभी 11 सीटों पर अकेले प्रत्याशी उतारेगी।’’