साल के अंत में होने वाला गुजरात विधानसभा चुनाव वक्त से पहले ही सुर्खियों की खेप दिल्ली रवाना करने लगा है। ताजा हंगामा गुजरात के पूर्व मंत्री खुमानसिंह वंसिया के बयानों से बरपा है। 4 जून को ही भाजपा में वापसी करने वाले वंसिया ने अपनी पुरानी ख्वाहिश को दोहराते हुए कहा कि अगर भाजपा राज्य में शराबबंदी खत्म करने का वादा करती है तो वह विधानसभा की सभी 182 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। भाजपा नेता ने दावा किया कि उन्होंने कभी शराब चखी भी नहीं है।
बीजेपी नेता की सफाई- वंसिया ने जैसे ही यह बयान दिया, कांग्रेस बीजेपी से सवाल पूछने लगी। इसके तुरंत बाद भाजपा नेता ने अपने बयान को व्यक्तिगत राय बता डाला। उन्होंने कहा- “यह मेरी निजी राय है और मैं आज भी अपने रुख पर कायम हूं। हमें शराबबंदी से छुटकारा पाना चाहिए। मैं कह सकता हूं कि इससे भाजपा सभी 182 सीटों को जीत लेगी। लेकिन मैं इस मुद्दे पर पार्टी की विचारधारा और रुख को मानने को लेकर प्रतिबद्ध हूंं।”
कौन हैं खुमनसिंह वंसिया? – कभी इंजीनियर बनने के अरमान से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले खुमानसिंह जब राजनीति में उतरे तो सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सरकार बनवाने के लिए जाने गए। दक्षिण गुजरात के क्षत्रियों पर वंसिया की अच्छी पकड़ा बतायी जाती है। वागरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों क्षत्रियों को अपने पक्ष में रखने का हर संभव प्रयास करते रहे हैं। वागरा ही वह विधानसभा क्षेत्र है जहां से वंसिया पहली बार भाजपा के टिकट पर निर्वाचित होकर गांधीनगर पहुंचे थे।
राजनीति की शुरुआत- सूरत के मांगरोल तालुका के असारमा गांव से आने वाले वंसिया फिलहाल 67 वर्ष की उम्र में एक और राजनीतिक पारी खेलने को तैयार हैं। 1980 में भाजपा की स्थापना से ही वंसिया पार्टी के सदस्य हैं। भाजपा ने पहले इन्हें भरूच इकाई के सचिव के रूप में नियुक्त। बाद में वह महासचिव और जिला भाजपा के अध्यक्ष बने। 1995 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में वागरा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 1995-1996 के दौरान वन और पर्यावरण के डिप्टी मिनिस्टर के रूप में केशुभाई मंत्रालय में शामिल हुए। बाद में राजस्व विभाग के राज्य मंत्री बनाए गए।
विरोध की शुरुआत- 1997 में जब शंकरसिंह वाघेला ने केशुभाई के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया तब वंसिया ने भी सुर मिलाया। वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी (आरजेपी) बनाई और 47 विधायकों के साथ कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए। इन 47 में वंसिया भी शामिल थे, जिन्हें वाघेला सरकार में शहरी विकास मंत्री का पद मिला। यह सरकार ज्यादा दिनों तक चली नहीं। बाद में वाघेला अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर कांग्रेसी बन गए। इस विलय में वंसिया भी घुलकर कांग्रेसी हुए लेकिन वहां ‘सहज’ महसूस न करने की शिकायत के साथ 2005 में वापस भाजपा लौट आए।
फिर हुई अनबन- 2017 विधानसभा चुनाव में वंसिया की भाजपा से फिर अनबन हो गई। उन्होंने भरूच में जंबूसर सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप पर्चा भर दिया। पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने की वजह से भाजपा से निलंबित कर दिए गए। फिर इसी साल 4 जून को पार्टी में वापसी की। इस दौरान वंसिया ने अपनी ईमानदारी का प्रमाण देते हुए कहा, ”निलंबन में रहते हुए भी मैंने भाजपा के खिलाफ काम नहीं किया। मुझे लगा कि मुझे फिर से भाजपा में शामिल हो जाना चाहिए क्योंकि पार्टी में रहकर मैं अपने जिले के गरीब और दलित लोगों के लिए अधिक मददगार बनूंगा।”
शराबबंदी और खुमानसिंह वंसिया?– गुजरात में पहली केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में मंत्री रहे वंशिया हमेशा से शराबबंदी हटाने के पक्ष में रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए वांसिया ने शराबबंदी को समाप्त करने के पीछे की अपनी मंशा को बताया। उन्होंने कहा- “मैंने अपने जीवन में कभी भी शराब को छुआ या चखा नहीं है। मेरे परिवार में कोई भी शराब का आदी नहीं है। एक जननेता के रूप में मैंने अपने पूरे जिले के विभिन्न गांवों और क्षेत्रों का दौरा किया है। मुझे पता चला है कि गांवों में कई महिलाएं कम उम्र में विधवा हो गई हैं। इसका मुख्य कारण कम गुणवत्ता वाली शराब का सेवन है। दरअसल इन महिलाओं के पति कृषि क्षेत्र में काम करते हुए या दिहाड़ी मजदूरी करते हुए शराब के आदी हो गए थे। कम गुणवत्ता वाली शराब के सेवन ने कम उम्र में ही उनकी जान ले ली। अपने पीछे ये मजदूर युवा विधवाओं और नाबालिग बच्चों को छोड़ गए”।
वंसिया के बयान पर विपक्ष की राय- गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा है- ”हम खुमानसिंह वंसिया के बयान की निंदा करते हैं। हम जानना चाहते हैं कि क्या बीजेपी इस तरह से विधानसभा चुनाव जीतना चाहती है। गांधी और सरदार पटेल के गुजरात में करोड़ों लीटर शराब बह रही है और शराबबंदी केवल कागजों तक सीमित है”।