दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को कन्हैया कुमार की जमानत याचिका पर सुनवाई 29 फरवरी तक के लिए टाल दी। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार की फिर रिमांड की जरूरत बताई। इस बाबत पुलिस का तर्क था कि राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार दो अन्य आरोपी छात्रों उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य से कन्हैया की आमने-सामने पूछताछ जरूरी है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी के समक्ष कन्हैया की जमानत याचिका पर सुनवाई जैसे ही शुरू हुई अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि पुलिस को किसी आरोपी को 15 दिन के लिए पुलिस हिरासत में लेने का वैधानिक अधिकार है और नए घटनाक्रम की वजह से कन्हैया की हिरासत में रिमांड जरूरी है। मेहता ने कहा कि मंगलवार के घटनाक्रम के बाद दो आरोपियों ने समर्पण किया और वे हिरासत में सुरक्षित हैं। उन्हें रिमांड पर लिया जाना बाकी है। नए घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में और किसी आरोपी को 15 दिन तक पुलिस की हिरासत में रखने के वैधानिक अधिकार को देखते हुए हम कन्हैया कुमार को रिमांड पर लेने की मांग करेंगे ताकि उसका सामना उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य से कराते हुए पूछताछ की जा सके।

एएसजी ने कहा कि हमारे अधिकार को कम नहीं किया जा सकता इसलिए वर्तमान जमानत याचिका पर सुनवाई मुल्तवी की जाए। बहरहाल, सुनवाई के दौरान जब हाई कोर्ट को पटियाला हाउस अदालत परिसर में हुई हिंसा के बारे में बताया गया तो पीठ ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी को भी एक खरोंच तक न आए। दिल्ली हाई कोर्ट के पंजीयक और पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब आरोपियों को पेश किया जाता है तब ऐसा कुछ भी न हो जैसा कि पिछली बार हुआ था। तब मेहता ने अदालत से नए घटनाक्रम के मद्देनजर जमानत याचिका मुल्तवी करने को कहा। पीठ ने अब जमानत की अपील पर सुनवाई के लिए 29 फरवरी की तारीख तय की है।

कन्हैया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि अदालत के आदेश की अनुपालना में दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, उनके मुवक्किल द्वारा भारत विरोधी नारे लगाए जाने के कोई प्रमाण नहीं हैं। सिब्बल ने कहा कि मैं अदालत को बताना चाहूंगा कि पुलिस की ओर से दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, कन्हैया के भारत विरोधी नारे लगाए जाने के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए। हालांकि मेहता ने कहा कि नए घटनाक्रम और सामने आए प्रमाण के अनुसार, कन्हैया का गिरफ्तार किए गए दो आरोपियों से सामना कराया जाना जरूरी है।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि इस समय केवल आरोपी के वकील, जांच एजंसी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील और पुलिस अधिकारी ही रिमांड संबंधी सुनवाई के दौरान अदालत कक्ष में उपस्थित रहेंगे और सुनवाई गोपनीय तरीके से की जाए ताकि कोई अवांछित घटना न हो। दिल्ली सरकार के वरिष्ठ स्थायी वकील राहुल मेहरा ने पीठ से कहा कि इस मामले में उनकी बात भी सुनी जाए। बता दें कि मंगलवार को जब कन्हैया की जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई थी तो मेहरा ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता और संजय जैन व दिल्ली पुलिस के विशेष लोक अभियोजक अनिल सोनी की उपस्थिति का विरोध किया था। मेहरा ने कहा था कि हाई कोर्ट के पूर्ण अदालत संदर्भ (फुल कोर्ट रेफरेंस) से उन्हें वरिष्ठ स्थायी वकील नियुक्त किया गया है और अगर मामले में पेश होने के लिए कोई अधिसूचना अधिकार नहीं देती तो वे सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।

मेहता, जैन और सोनी के साथ साथ दिल्ली पुलिस के एक अन्य विशेष लोक अभियोजक शैलेंद्र बब्बर बुधवार को अदालत में पेश हुए। सुनवाई के दौरान मेहता ने अदालत में कहा कि पुलिस के पास किसी आरोपी को पुलिस हिरासत में रखने का वैधानिक अधिकार है। मेहता की बात पर सिब्बल ने तर्क दिया कि सुनवाई अदालत में पुलिस ने खुद कन्हैया को न्यायिक हिरासत में भेजने की मांग की थी। फिर वे कैसे दोबारा पुलिस हिरासत की मांग कर सकते हैं। अगर वे ऐसा कर रहे हैं तो हमें रिमांड का विरोध करने की अनुमति दी जाए और जमानत याचिका को सुनवाई अदालत का इस बारे में फैसला आने तक लंबित रखा जाए कि कन्हैया को पुलिस हिरासत में भेजा जाए या न्यायिक हिरासत में।

सिब्बल ने अदालत से यह भी अपील की कि उसे (कन्हैया को) रिमांड संबंधी आवेदन की सामग्री के बारे में पहले से सूचित किया जाना चाहिए ताकि वह इसका विरोध कर सके। उन्होंने कहा कि यह उसका वैधानिक अधिकार है। इस पर अदालत ने कहा कि वह उन्हें ऐसे आवेदन के बारे में आपको पहले से सूचित करने के लिए कहेगी, क्योंकि इस अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता। जब पीठ ने कहा कि वह कन्हैया के जमानत संबंधी आग्रह पर 29 फरवरी को दोपहर दो बज कर 15 मिनट पर सुनवाई करेगी तो अदालत कक्ष में मौजूद, दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारियों ने कहा कि शायद सुरक्षा संबंधी कारण से भोजनावकाश के बाद का समय रखा गया है क्योंकि तब तक ज्यादातर वकील चले जाते हैं। राहुल मेहरा ने हालांकि कहा कि पुलिस को सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करना चाहिए और वकीलों को ऐसी गतिविधि में लिप्त नहीं होना चाहिए जैसी कि पटियाला हाउस अदालत परिसर में हुई।