राष्ट्रपति चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग कांग्रेस के सिर का दर्द बन रही है। जिस तरह से विधायकों ने आलाकमान के निर्देश को दरकिनार कर एनडीए उम्मीदवार को वोट किया उसके बीच पार्टी को बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का डर सता रहा है। कांग्रेस के नेता हालांकि खुलकर कुछ नहीं बोल रहे लेकिन दबी जुबान में इस बात की चर्चा जरूर है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ तो है।

झारखंड असेंबली में 81 सदस्य हैं। इनमें झामुमो के 30 विधायक हैं जबकि बीजेपी के पास 26 एमएलए हैं। असेंबली में कांग्रेस के कुल 18 सदस्य हैं। राष्ट्रपति चुनाव में कुल 80 विधायक ही वोटिंग कर सके, क्योंकि बीमारी की वजह से 1 विधायक वोट नहीं डाल सके। 1 वोट इनवेलिड करार दिया गया। द्रोपदी मुर्मु को सूबे से 70 वोट मिले जबकि यशवंत सिन्हा को केवल नौ। यानि कांग्रेस के नौ सदस्यों ने पार्टी लाइन के इतर जाकर वोट डाले।

कांग्रेस प्रवक्ता आलोक दुबे का कहना है कि कम से कम नौ विधायकों ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया। उनका मानना है कि ये गंभीर चिंता की बात है। हमें इस मामले को संजीदगी से देखना होगा कि क्यों पार्टी विधायकों ने आलाकमान के निर्देश को दरकिनार किया। हालांकि एक और नेता मानते हैं कि कांग्रेस के 7 विधायक आदिवासी बहुल्य इलाके से आते हैं। जाहिर है कि उनके लिए मुर्मु को नजरंदाज करना मुश्किल होता।

हालांकि द्रोपदी मुर्मु को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने गैर बीजेपी दलों को सांसत में डाल दिया था। उन्हें पता था कि आदिवासी उम्मीदवार को नजरंदाज करना झारखंड और उड़ीसा जैसे सूबों के लिए काफी मुश्किल होगा। ऐसा करने पर जनता उन्हें करारा सबक सिखा सकती है। दोनों ही सूबे आदिवासी बहुल्य हैं। बीजेपी का दांव कारगर था।

संयुक्त विपक्ष की बैठक में मौजूद होने के बाद भी हेमंत सोरेन ने अगले ही दिन मुर्मु का समर्थन कर डाला तो उड़ीसा भी उनकी झोली में गया। जानकार मानते हैं कि ये दांव काफी सटीक था। अगर आदिवासी महिला उम्मीदवार न होतीं तो ये दोनों सूबे ही सूबे बीजेपी के विरोध में मतदान करते। लेकिन मोदी-शाह के सटीक दांव से दोनों सूबे चाहकर भी विरोध नहीं कर सके।