Jharkhand News: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन मामले में राज्यपाल रमेश बैस ने कार्रवाई के संकते दिए हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड में कभी परमाणु बम फट सकता है। बता दें, राज्यपाल रमेश बैस ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर दोबारा चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा है। उल्लेखनीय है कि आयोग ने बीते 25 अगस्त को राज्यपाल को हेमंत सोरेन के खिलाफ पत्थर खनन लीज मामले में मंतव्य प्रेषित किया था।
अपने गृहनगर रायपुर में बुधवार को मीडिया से बातचीत में राज्यपाल ने कहा कि जब तक गवर्नर संतुष्ट नहीं हो जाएं, तब तक किसी प्रकार का आर्डर करना सही नहीं है। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग को सेंकेंड ओपिनियन के लिए राजभवन से पत्र भेजा गया है। जब सेकेंड ओपिनियन आ जाएगा तो वे तय करेंगे कि क्या करना है। राज्यपाल ने कहा कि पद संभालने के बाद उन्हें सीएम हेमंत सोरेन से संबंधित शिकायत मिली थी। जांच के लिए आवेदन दिया गया था। चूंकि वह चुनाव आयोग से संबंधित था तो चुनाव आयोग को पत्र भेजा गया कि आप ओपिनियन दीजिए। ओपिनियन के बाद गवर्नर बाध्य नहीं हैं कि कब आर्डर करें या आयोग ने जो मंतव्य भेजा है, उसका पालन करें। निर्णय करना गवर्नर के अधीन है। जब तक गवर्नर संतुष्ट नहीं हो जाएं, तब तक आर्डर करना ठीक नहीं है।
राज्यपाल ने कहा कि जैसे ही चुनाव आयोग का पत्र उनके पास आया तो राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई। जो होना होगा, वो होगा। उन्होंने कहा कि झामुमो को एक प्रतिनिधिमंडल मेरे पास आया और आयोग के पत्र की कॉपी मांगी, लेकिन ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि आयोग की कॉपी दी जाए। इसके बाद वो इलेक्शन कमीशन भी गए। वहां भी मना कर दिया गया। राज्यपाल ने कहा कि यह संवैधानिक मामला है। राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का है और वो इसके लिए बाध्य नहीं हैं कि कब वो एक्शन लेंगे।
वहीं सत्तारूढ़ झामुमो द्वारा बार-बार ऐसा करने के लिए कहने के बावजूद बैस ने अभी तक इस राय को सार्वजनिक नहीं किया है। झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने दावा किया है कि भाजपा सरकार को गिराने के लिए संख्याबल जुटाने की कोशिश कर रही है।
चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आयोग को दूसरी राय के लिए झारखंड के राज्यपाल से कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। चुनाव आयोग के एक सेवानिवृत्त कानूनी सलाहकार एस के मेंदीरत्ता ने कहा कि उन्होंने बैस का बयान नहीं देखा है। “हालांकि, मेरी जानकारी में किसी भी राज्यपाल ने कभी भी चुनाव आयोग की कोई राय वापस नहीं भेजी और न ही कोई दूसरी राय मांगी। संविधान के तहत केवल चुनाव आयोग ही राज्यपाल से इस तरह के संदर्भों पर राय दे सकता है।
