Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले सप्ताह जावेद आलम नाम के शख्स को जमानत दे दी। आलम पर बजरंग दल के एक सदस्य ने एफआईआर दर्ज कराई थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने एक हिंदू नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस समीर जैन की पीठ ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दिए गए बयानों में पीड़ित लड़की ने कहा है कि एफआईआर दर्ज होने के समय उसकी उम्र 17 साल से ज्यादा थी। उसने जावेद आलम के साथ विवाह किया था तथा वो अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी।
जांच के दौरान कथित लड़की ने जो हलफनामा दाखिल किया था। उसमें उसने कहा था कि आवेदक-आरोपी उसका पति है और उसने स्वयं अपनी इच्छा से उसके साथ शादी की है।
इसके अलावा, सिंगल जज ने कथित पीड़िता, जो वर्तमान में 18 वर्ष से अधिक आयु की है। उसकी ओर से उपस्थित वकील के इस कथन पर भी विचार किया कि यदि आवेदक को जमानत पर रिहा किया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है।
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बजरंग दल के सदस्य ने एफआईआर में आरोप लगाया था कि आरोपी ने 10वीं क्लास की एक हिंदू नाबालिग लड़की को ट्रेन से अगवा किया, जहां वह रोती हुई मिली। इसमें आगे कहा गया है कि करीब आठ महीने पहले आरोपी ने लड़की को बहला-फुसलाकर उसका धर्म बदल दिया और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने लगा।
मामले में जमानत की मांग करते हुए आवेदक के वकील ने सिंगल जज के समक्ष दलील दी कि इस मामले में उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है, क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से है, जबकि लड़की हिंदू समुदाय से है।
आलम के वकीन ने कहा कि पीड़िता, जो 18 वर्ष से अधिक की थी, उसने आवेदक की सहमति से उससे विवाह किया था। हालांकि, ट्रेन में यात्रा के दौरान उनके बीच विवाद हो गया। जिसके बाद बजरंग दल के सदस्यों ने प्राथमिकी दर्ज की और मुस्लिम युवक को पुलिस के हवाले कर दिया।
कथित पीड़ित लड़की के वकील ने यह भी कहा कि वह चाहती हैं कि आवेदक को जमानत पर रिहा किया जाए ताकि रिहाई के बाद वह अपने वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन कर सके।
दूसरी ओर, एजीए और हाई कोर्ट विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से उपस्थित वकील ने जमानत की प्रार्थना का विरोध किया, लेकिन वे आवेदक के वकील द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर बहस का विरोध नहीं कर सके। इन दलीलों और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि आवेदक जमानत पर रिहा किए जाने का हकदार है।