संजय दुबे
पानी जीवन के अस्तित्व के लिए अतिआवश्यक तत्वों में से एक है। देश में वॉटर लेवल लगातार कम होना चिंता का विषय बना हुआ है। भारत में भूजल का उपयोग दुनिया में सर्वाधिक होता है। अमेरिका और चीन जैसे देश भारत से बहुत कम भूजल का उपयोग करते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति जल खपत भी बहुत ज्यादा है। देश की राजधानी दिल्ली में ही प्रति व्यक्ति प्रतिदिन जल की खपत 272 लीटर है। जल खपत की तुलना में जल संचयन कठिन होता जा रहा है। इससे जल को लेकर गंभीर संकट पैदा हो गया है।
देश में भूजल को बचाने के लिए तमाम तरह के उपक्रम किए जा रहे हैं, लेकिन हमारी आवश्यकताओं के मुताबिक जल संचयन हो नहीं पा रहा है। इसकी बड़ी वजहों में से एक वजह यह है कि हम अपने पुरखों की बनाई परंपरागत विधियों से दूर होते जा रहे हैं। पहले खेतों में मेड़ बनाए जाते थे, फिर मेड़ पर पेड़ लगाए जाते थे। इससे जल का बहाव रुकता था और भूजल स्तर बढ़ता था। वर्षा का जल एक स्थान पर संचय होने से खेतों की सिंचाई अच्छे तरीके से हो जाती थी।
यूपी के बांदा जिले के जखनी गांव के कुछ जलसेवी लोगों ने पुरखों की बताई और बनाई तरकीबों को अपनाया और आज हालत यह है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक सूखाग्रस्त क्षेत्र बांदा के जलस्तर में एक मीटर 38 सेंटीमीटर का इजाफा हुआ है। जिस जलस्तर को बढ़ाने के लिए सरकारें अरबों रुपए खर्च कर रही हैं, उसे यहां के लोगों ने बिना किसी सरकारी अनुदान के स्वयं ही कर लिया। इस काम को अपने स्तर पर आगे बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले जलग्राम जखनी के संयोजक उमा शंकर पांडेय ने बताया कि पुरखों के समय से चली आ रही खेती और जल बचाने की तरकीब को अगर पूरे देश ने अपनाया होता तो भारत में जलसंकट जैसी स्थिति कभी नहीं आती। इससे भी बड़ी बात यह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले ग्राम प्रधानों को लिखे पत्र में सबसे पहले मेड़बंदी का ही जिक्र किया था। बांदा का जखनी गांव इस मामले में रोल मॉडल बना और उसका नतीजा यह है कि यहां का जलस्तर में तेजी से इजाफा हुआ।
केंद्रीय भूजल बोर्ड, नीति आयोग भारत सरकार और जलशक्ति मंत्रालय ने इस जखनी मॉडल को स्वीकारा। जल संरक्षण की मुहिम में सर्वोदय कार्यकर्ता जखनी के अग्रदूत उमाशंकर पांडे सभी के लिए प्रेरक बन गए हैं। वे बताते हैं कि उन्हें आचार्य विनोबा भावे के भूदान के संघर्ष से प्रेरणा मिली और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम से विचार मिला। उनके मुताबिक जल ग्राम जखनी के किसानों-नौजवानों ने जन आंदोलन को जल आंदोलन में समुदायिक आधार पर बिना किसी अनुदान के परंपरागत तरीके से भूजल संरक्षण करके बदल दिया। उन्होंने खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ का नारा दिया। यह आज पूरे बुंदेलखंड के लिए एक मिसाल बन गया है। खुद नीति आयोग ने कहा कि जलग्राम जखनी जैसे परंपरागत सामूहिक जल संरक्षण के प्रयास की पूरे देश में जरूरत है।
सूखे बुंदेलखंड में देखने को मिला बासमती पैदा करने का कमाल: गौरव दयाल
चित्रकूट धाम मंडल के कमिश्नर गौरव दयाल ने कहा कि जखनी के किसान अपने संसाधन से खेतों में बड़ी संख्या में मेड़बंदी कर सूखे बुंदेलखंड में बासमती पैदा कर रहे हैं। यह कमाल है। कहा कि वे खुद जखनी गांव जाकर इसे देखे हैं। आसपास के कई गांव के लोगों ने जखनी का अनुकरण किया और लाभ उठाया। कहा कि मेड़बंदी के माध्यम से वर्षा जल को रोकना अच्छा प्रयास है।
सबसे सरल, उपयोगी, स्थायी और टिकाऊ विधि: हीरालाल
बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी हीरालाल ने जनपद की 470 ग्राम पंचायतों में जखनी जल ग्राम के परंपरागत समुदाय पर आधारित वर्षा भूजल संरक्षण विधि खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ उपाय को सबसे सरल, उपयोगी, स्थायी और टिकाऊ बताया था। उन्होंने जल संरक्षण की दिशा में जखनी के इस जल संरक्षण मंत्र को सीखने की सलाह पूरे जिले को दी थी। कहा कि यह हमारे पुरखों की विधि है। वर्तमान में देश में जखनी की वर्षा जल संरक्षण विधि को सबसे अच्छा माना जा रहा है। प्रत्येक किसान हर वर्ष बरसात के पहले अपने खेतों में मेड़बंदी करता है। बचपन से हम देखते आ रहे हैं खुद के श्रम मेहनत संसाधन से जल का संचय करना कितना आसाना और उचित तरीका है।
किसानों को कर रहा हूं प्रशिक्षित, बढ़ा वॉटर लेवल: अविनाश मिश्र
नीति आयोग भारत सरकार के जल सलाहकार अविनाश मिश्र ने कहा कि “मैं पिछले 8 साल से जखनी के किसानों को मेड़बंदी की सरल विधि का अपनी ओर से प्रशिक्षण मार्गदर्शन देता आ रहा हूं। मेड़ के ऊपर कौन-कौन सी फसल ली जाए, कौन-कौन पेड़ लगाए जाएं, बगैर सरकार की सहायता के समुदाय के आधार पर अधिक से अधिक खेतों में पानी कैसे रोका जाए, जल ग्राम जखनी के लोगों के साथ मिलकर इस पर प्रयोग कर रहा हूं। मेड़बंदी प्रयोग से बुंदेलखंड का भूजल स्तर ऊपर आया है, काफी सुधार हुआ है। मेड़बंदी वर्षा जल संरक्षण की बहुत पुरानी विधि है जो विलुप्त हो रही थी। उसको हमने समुदाय के साथ जखनी के किसानों के साथ मिलकर प्रयोग किया और बुंदेलखंड में इसके अच्छे परिणाम आए हैं। इस दिशा में अभी प्रयास जारी है।”