भारत में कोरोनावायरस महामारी के बीच अधिकतर राज्यों के हालात बेहद खराब रहे हैं। इनमें राजधानी दिल्ली भी शामिल थी। कुछ ही हफ्तों पहले यहां पॉजिटिविटी रेट 35 फीसदी के ऊपर पहुंच गया था। बढ़ते केसों के बावजूद अधिकतर क्षेत्रों में सांसद और विधायक गायब रहे थे। कुछ ऐसा ही हाल उन गांवों का भी रहा था, जिन्हें केंद्र सरकार के सांसदों ने गोद लिया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद डॉक्टर हर्षवर्धन द्वारा गोद लिए गांवों के हालात भी कुछ खास नहीं दिखे। यहां स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी के साथ जीवनरक्षक दवाएं तक मौजूद नहीं हैं।
बता दें कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में ही हर सांसद को गांवों को गोद लेकर उनका विकास करने का जिम्मा सौंपा था। इस आह्वान के तहत स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने उस वक्त दिल्ली के धीरपुर, घोगा गांव को गोद लिया था। इसके बाद 2018 में उन्होंने सिंघोला गांव को भी गोद ले लिया। हालांकि, एक केंद्रीय मंत्री की ओर से गांव की देखभाल का वादा किए जाने के बाद भी यहां हालात नहीं सुधरे हैं।
क्या है गांवों के हाल?: सिंघोला गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात किस कदर खराब हैं, इसका पता इसी बात से चलता है कि गांव वाले खुद कहते हैं कि हर्षवर्धन सिर्फ 2018 में गांव को गोद लेने आए थे। उसके बाद गांव की तरफ पलटकर भी नहीं देखा। कोरोनाकाल में सिंघोला में करीब 90 फीसदी लोगों में संक्रमण के लक्षण दिखे। नमें ज्यादातर लोग तो घर पर ठीक हो गए। जिनकी हालत ज्यादा बिगड़ी वे निजी अस्पताल में भर्ती हुए। इनमें से कई लोगों की जान भी चली गई। इसके बावजूद न तो गांव में जांच हुई न कोई हाल जानने पहुंचा।
गांववालों का यहां तक कहना है कि हमारे यहां बैंक, एटीएम, बड़े मंदिर और सड़क भी है। लेकिन इलाज की व्यवस्था नहीं है। हर तरफ गंदगी से बीमारी होती है और हर घर में मलेरिया की शिकायत भी होती है। दवा तक के लिए 5 किमी दूर जाना पड़ता है।
गांववाले बोले- एक नर्स ही बिठा दो, ताकि बुखार की दवा मिले: हर्षवर्धन द्वारा गोद लिए गए तीनों गांव की शिकायत लगभग एक जैसी है। गांववालों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री को एक नर्स या कंपाउंडर ही गांव में बैठाना चाहिए, ताकि कम से कम सर्दी-बुखार और पेट दर्द की दवा तो मिल पाए। लोगों का इलाज गांव में ही शुरू हो पाए, तो किसी को दूर-दराज की जगहों पर न जाना पड़े। घोगा गांव के एक व्यक्ति का कहना है कि कहने को तो वे राजधानी में रहते हैं, लेकिन यहां बुखार तक की दवा नहीं मिलती।