मनोज कुमार मिश्र

दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार की बदली रणनीति को राजधानी की एक अदालत ने हाल ही में मजबूती दी है। केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली सरकार और उसके दिल्ली के प्रतिनिधि (उप राज्यपाल) पर बात-बात में हमला करने वाली सरकार ने अधिकारियों से सार्वजनिक रूप से लड़ना बंद कर दिया है। डीटीसी बसों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप की सीबीआइ जांच शुरू होने से नाराज आप नेता केंद्र की भाजपा सरकार पर दिल्ली सरकार को परेशान करने का आरोप तो लगा रहे हैं लेकिन बात-बात में आंदोलन करने या उसकी धमकी देने वाले आप नेता केंद्र सरकार या उप राज्यपाल के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कोई आंदोलन नहीं कर रहे हैं। बेहद ईमानदार माने जाने वाले कई आला आइएएस अफसरों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों को पिछले दिनों अदालत से राहत मिली।

अदालत ने 19 फरवरी, 2018 की रात मुख्यमंत्री केजरीवाल के सरकारी आवास पर उनकी और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मौजूदगी में मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की पिटाई के मामले से केजरीवाल और सिसोदिया को बरी कर दिया। वहां मौजूद 11 विधायकों में से जिन दो विधायकों-अमानतुल्ला खान और प्रकाश जारवाल को दोषी माना, उन्हें अंशु प्रकाश की शिकायत पर 20 फरवरी को ही पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन्हें अगले महीने हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी। इस फैसले पर आप सरकार की ओर से जिस तरह से सधे बयान आए, उससे लगता नहीं कि फिलहाल आप नेता अफसरों के खिलाफ बोलकर उनकी पूरी बिरादरी को नाराज करना चाहते हैं। लगता यही है कि अब लड़ने के बजाए अपने कामकाज से अगले साल के शुरू में होने वाले नगर निगमों के चुनाव में आप भाजपा के लगातार तीन बार जीत के सिलसिले को रोकने का प्रयास करेंगे।

संसद के पिछले सत्र में उप राज्यपाल को दिल्ली का असली शासक बनाने वाला संशोधन विधेयक -‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन)-2021’ पास किया गया। इसके बाद दिल्ली सरकार का हर फैसला उप राज्यपाल की सहमति या जानकारी में ही अमल हो पाएगा। अब तो वैधानिक रूप से दिल्ली सरकार का मतलब उप राज्यपाल कर दिया गया। यह तब किया गया है जब केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है जिसने ही दिल्ली को राज्य बनवाने के अभियान की शुरुआत की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अभी भी दिल्ली की अफसरशाही पर किसका नियंत्रण हो यह तय नहीं किया है। संविधान के जिस 69वें संशोधन के तहत दिल्ली को विधानसभा मिली, उसमें यह भी लिखा हुआ है कि इसमें कोई भी संशोधन मूल विधान में संशोधन माना जाएगा।

दिल्ली के अधिकारों की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसलिए नहीं खत्म हुआ था क्योंकि अभी बहुत सारी चीजें तय होनी रह गई है। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों पर अधिकार पर फैसला देने वाली है। दूसरे, संविधान पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली की सरकार को मजबूती दी लेकिन यह कह कर कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा, राज्य नहीं बन सकता है, उसकी हद तय कर दी। दिल्ली के विधान में केवल केंद्र शासित प्रदेश होने की समस्या नहीं है, अनेक विषयों पर स्पष्टता नहीं है। इसी का फायदा उठा कर केंद्र की सरकार ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकारों में बेहिसाब कटौती कर दी। आप सरकार का आरोप है कि केंद्र की सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है और अधिकारियों के माध्यम से उप राज्यपाल सरकार के काम में अडंगा लगाते हैं।अफसरों से टकराव कम हो रहा है, यह सरकार और दिल्ली वाले दोनों के हित में है। लगता है अब आप की प्राथमिकता बदल गई है, वे अब सरकार चलाने में लगे हैं।