यूरोपीय वास्तुकला, संरचना की सबसे बेहतरीन बानगी के तौर पर तारीफ बटोर चुकी पटना उच्च न्यायालय की इमारत के बुधवार को 100 साल पूरे हो गए। खास बात यह है कि प्रथम विश्वयुद्ध के शुरू होने के बावजूद बिहार की राजधानी में मौजूद इस इमारत के निर्माण कार्य को जारी रखा गया।
तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंग ने औपचारिक रूप से तीन फरवरी, 1916 को शानदार समारोह में ‘पैलेडियन’ डिजाइन में निर्मित ‘नियो-क्लासिकल’ शैली में बनी इस विशाल इमारत का उद्घाटन किया था। चार्ल्स हार्डिंग ने ही एक दिसंबर, 1913 को इमारत की नींव रखी थी।
इस अवसर पर बिहार और ओड़िशा के तत्कालीन उपराज्यपाल सर एडवर्ड गेट ने अपने भाषण में कहा था, ‘…युद्ध के कारण पैदा हुए वित्तीय संकट के कारण नई राजधानी पर हो रहे खर्च में भारी कटौती जरूरी हो गई है और इसी कारण सचिवालय तथा अन्य इमारतों का निर्माण कार्य रद्द या टाला जा सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन यह भी माना गया कि प्रांतीय उच्च न्यायालय की स्थापना में देरी नहीं की जानी चाहिए और इसलिए इमारत का निर्माण और जोर शोर से किया जाने लगा।’ संयोगवश, लॉर्ड हार्डिंग ने बंगाल विभाजन के बाद अलग प्रांत के तौर पर बिहार और ओड़िशा के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। पटना इसकी नई राजधानी थी, जिसकी घोषणा 1911 में किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में की।
अंग्रेजी के अक्षर ‘यू’ आकार में बनी यह इमारत ऐतिहासिक बेली रोड पर स्थित है, जिसका निर्माण करने वाले वास्तुशिल्प जेएफ म्युनिंग्स के सहायक एएम मिलवुड थे और तब से यह इमारत 1934 के भीषण भूकंप सहित कई छोटे-बड़े भूकंप के झटकों, बाढ़ को झेल चुकी है। मुख्य न्यायाधीश एडवर्ड मेनार्ड डे चैम्प चैमियर पटना उच्च न्यायालय के पहले न्यायाधीश थे।
इनके अलावा तीन भारतीय न्यायाधीश – न्यायमूर्ति सैयद शफरूद्दीन, न्यायमूर्ति बसंत कुमार मलिक और न्यायमूर्ति ज्वाला प्रसाद सहित छह सहयोगी न्यायाधीश थे। पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और ‘पटना हाईकोर्ट : ए सेंचुरी आॅफ ग्लोरी’ के लेखक न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एसके कटरियार का कहना है, ‘इमारत की नींव रखने और इसके उद्घाटन का समारोह बहुत शानदार था और इन दोनों कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले लॉर्ड हार्डिंग ऐसे पहले वायसराय थे।’ 1936 में ओड़िशा के अलग प्रांत बनने के बाद भी 1948 तक इसी न्यायालय से न्यायिक कार्य चलता रहा।