बंबई हाई कोर्ट ने एक जटिल मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अगर तलाक का मामला अंतिम चरण में है, तो ऐसे में पति की दूसरी शादी पत्नी की लिए क्रूरता नहीं कही जा सकती है।
केस के मुताबिक इस दंपति ने 13 मार्च, 2011 को अकोला में शादी की थी, लेकिन शादी के तुरंत बाद दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया। इस पर पति ने तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। पति ने 16 सितंबर, 2014 को अकोला की फैमिली कोर्ट में क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए कार्यवाही के लिए अर्जी लगाई।
कोर्ट ने यह महसूस किया कि पत्नी ने सचमुच पति पर अत्याचार किया था। कोर्ट ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दाखिल पत्नी की अर्जी भी खारिज कर दी। पत्नी जब बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंची तो वहां भी फैसला उसके विरुद्ध गया। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन यहां भी कोई लाभ नहीं मिला।
इस पर पत्नी ने मई 2016 में पति के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम में एक याचिका दायर की और मासिक रखरखाव, मुआवजा, निवास और अन्य लाभ सहित राहतों की मांग की। पत्नी ने तलाक की डिक्री और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन की कार्यवाही में लगाए गए आरोपों के समान ही आरोप लगाए थे। और दावा किया था कि पति ने दूसरी शादी करके उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया।
पति ने एक याचिका दायर कर पत्नी की दलील का विरोध किया और दोनों के बीच पहले दौर की मुकदमेबाजी की बात कही। हालांकि उस साल के अंत तक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पति की अर्जी खारिज कर दी। इससे क्षुब्ध पति और परिवार के अन्य सदस्य जिनके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया गया था, ने उच्च न्यायालय पहुंच गए। जबकि पत्नी की तरफ से वहां कोई प्रतिनिधि नहीं गया। बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति मनीष पिटाले ने देखा कि तलाक की डिक्री दी गई और पत्नी द्वारा दायर वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका खारिज कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति पिटाले ने कहा कि पति और पत्नी की शादी एक समय पर हुई थी और इस तरह उनके घरेलू संबंध थे, लेकिन डीवी एक्ट को “तलाक की कार्यवाही अंतिम रूप से प्राप्त करने और उसके खिलाफ निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद” लागू नहीं किया जा सकता। ऐसे में तलाक की कार्यवाही अंतिम चरण में पति की दूसरी शादी डीवी एक्ट के तहत क्रूरता नहीं हो सकती। इस तरह इस जटिल केस का निपटारा कर दिया गया।