ओमप्रकाश ठाकुर
किसान नेता राकेश टिकैत के हिमाचल दौरे ने किसानों को हौसला देने के साथ सूबे के सियासत की सुस्ती तोड़ दी। टिकैत एक दिन के दौरे पर हिमाचल आए थे। उन्होंने सोलन, कंडाघाट और राजधानी शिमला में बागवानों और किसानों से मुलाकात की। इनमें वो बागवान और किसान नेता भी थे जो किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं। लेकिन चाहते हैं कि किसानों का कोई ऐसा मंच बने जो गैर राजनीतिक हो और बागवानों व किसानों के मसलों पर राजनीति न कर जमीनी समस्याओं को लेकर लामबंद हों।
प्रदेश में अभी तक कांग्रेस, भाजपा और वामपंथी दलों से जुड़े किसान और बागवान संगठन हैं। इन तमाम किसान संगठनों का एजंडा दलगत राजनीति पर आधारित रहा है। किसानों व बागवानों को वोट बैंक का जरिया समझकर ही इनके आंदोलनों की पृष्ठभूमि बनती रही है। इन संगठनों में पार्टी की विचारधारा से जुड़े लोग ही जुड़ पाते हैं। ऐसे में किसानों व बागवानों का वह बड़ा तबका जो किसी राजनीतिक विचारधारा का पिछलग्गू नहीं बनना चाहता, वह पीछे रह जाता है।
प्रदेश में बागवानों व किसानों के आंदोलन पहले भी होते रहे हैं। पूर्व में जब प्रदेश में भाजपा के कद्दावर नेता शांता कुमार मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो उस समय सेब बागवानों पर गोली चलाई गई थी। तीन बागवान शहीद हो गए थे। तब से लेकर आज तक शांताकुमार प्रदेश की सत्ता पर विराजमान नहीं हो पाए। लेकिन इस आंदोलन के पीछे तब कांग्रेस की ताकत थी। जैसे ही कांग्रेस सत्ता में आई उसने किसानों के मसलों पर होने वाले आंदोलनों से अपनी ताकत खींच ली और किसान आंदोलन की जमीन समतल हो गई। इसके बाद वामपंथी विचारधारा से जुड़ी किसान सभा ने प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा करने की कवायद शुरू की। लेकिन वह भी प्रदेशव्यापी आंदोलन खड़ा नहीं कर पाई।
ऐसे में राकेश टिकैत के भारतीय किसान संघ से कुछ उम्मीद बढ़ी है। यही वजह रही कि राजधानी में टिकैत के चारों ओर विभिन्न किसान नेताओं का जमावड़ा लग गया। इसकी आंच राजनीतिक दलों ही नहीं प्रदेश की जयराम सरकार तक भी पहुंची। सरकार ने अपने दो मंत्रियों को टिकैत के खिलाफ मैदान में उतारने की कोशिश की लेकिन उन्हें अभी ज्यादा जमीन नहीं मिली है। कांग्रेस के विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह को 24 घंटों के भीतर टिकैत के खिलाफ की गई टिप्पणियों से पीछे मुड़ना पड़ा। कांग्रेस को मालूम है कि किसानों व बागवानों का आंदोलन अगर प्रदेश में शुरू हो गया तो भाजपा की राजनीतिक जमीन खिसकाने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। हालांकि, जब विक्रमादित्य सिंह ने यह टिप्पणियां की तो कुछ लोगों को लगा कि कहीं उन्होंने ओकओवर (मुख्यमंत्री के सरकारी आवास) से सांठगांठ तो नहीं कर ली। लेकिन अभी पार्टी का मानना है कि ऐसा नहीं है। पार्टी नेता लगातार नजर बनाए हुए हैं। अब प्रदेश में भारतीय किसान संघ की तरह ही बड़ा संगठन खड़ा करने की ओर किसान व बागवान नेताओं का रुझान बढ़ने लगा है।