अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में जयपुर के जोबनेर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कुछ छात्रों ने पटाखे फोड़े, क्योंकि गवर्नर हरिभाऊ बागड़े ने यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर को सस्पेंड कर दिया था। उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें थीं, जिनमें कुछ शिकायतें एबीवीपी ने भी दी थीं। यह पहली बार नहीं है। राजस्थान में कई कुलपतियों को अनियमितताओं के आरोपों में पहले भी हटाया गया है। इस साल अब तक चार राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति सस्पेंड हो चुके हैं और एक कुलपति ने दबाव में इस्तीफा दिया है।

अगस्त में बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के वीसी और जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के कार्यवाहक वीसी डॉ. अरुण कुमार को हटाया गया। गवर्नर के ऑफिस ने कहा कि उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें थीं। जांच में पाया गया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी एक्ट के नियमों का पालन नहीं किया और अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया, जिससे यूनिवर्सिटी को आर्थिक नुकसान हुआ। उस समय एबीवीपी के प्रांत संयोजक रहे छात्र नवीन चौधरी ने बताया कि वे कई बार गवर्नर से मिले और लंबे समय तक विरोध भी किया। डॉ. कुमार ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की।

7 अक्टूबर को जोबनेर की श्री करण नरेंद्र कृषि यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. बलराज सिंह को भी सस्पेंड किया गया। आरोप था कि उन्होंने अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में कई फैसले नियमों के खिलाफ लिए और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कर्मचारियों के ट्रांसफर और बर्खास्तगी की। उनका कार्यकाल सिर्फ सात दिन बाद खत्म होने वाला था।

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एबीवीपी से जुड़े छात्र काफी समय से उनके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। सस्पेंशन के बाद उन्होंने पटाखे चलाए और पुतला भी जलाया। डॉ. सिंह ने कहा कि यह “साजिश और गुंडागर्दी” है। उनका कहना था कि वे 1990 से संघ से जुड़े हैं और सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसा नहीं करते। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जो वीसी बाहर से आते हैं, उन्हें हटाया जा रहा है। सिंह ने हाई कोर्ट में अपील की। रिटायरमेंट वाले दिन कोर्ट ने उनका सस्पेंशन रद्द कर दिया और कहा कि फैसला जल्दबाजी में लिया गया था और रिकॉर्ड में कोई ठोस आधार नहीं है।

जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर केएल श्रीवास्तव को भी इस साल 10 फरवरी को सस्पेंड किया गया, जब उनके रिटायरमेंट में सिर्फ चार दिन बचे थे। उनके खिलाफ भी पद के दुरुपयोग और वित्तीय नुकसान पहुंचाने के आरोप लगे थे। एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने यहां भी पटाखे फोड़कर जश्न मनाया। श्रीवास्तव ने कहा कि कोई भी आरोप सही नहीं था।

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भरतपुर की महाराजा सूरजमल बृज यूनिवर्सिटी के वीसी रमेश चंद्र को 11 नवंबर को हटाया गया। जांच में पाया गया कि उन्होंने नियमों का पालन नहीं किया, फंड और संसाधनों का गलत इस्तेमाल किया और गलत पेमेंट किए। एबीवीपी के प्रांत सह-मंत्री नितेश चौधरी ने बताया कि वे डेढ़ साल से उनके खिलाफ विरोध कर रहे थे। रमेश चंद्र ने कहा कि आरोप साबित नहीं हुए और एबीवीपी व आरएसएस के लोग इन आरोपों को बढ़ावा दे रहे हैं। उनका कहना था कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था खराब हो चुकी है और इसमें एबीवीपी की भी भूमिका है क्योंकि वे फंड और कैंपस ठेकों पर कब्जा चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे 1965 से संघ से जुड़े हैं, लेकिन ऐसी बातें कभी नहीं सिखाई गईं।

उदयपुर की मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी की वीसी सुनीता मिश्रा ने 12 सितंबर को औरंगजेब को “काबिल शासक” बताने वाली टिप्पणी के बाद बढ़ते विरोध के बीच छुट्टी ले ली और बाद में इस्तीफा दे दिया। जांच रिपोर्ट आने के बाद उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया गया। उनके खिलाफ एबीवीपी, एनएसयूआई और कुछ जाति संगठनों ने विरोध किया। छात्रों ने उनके चैंबर को बाहर से बंद कर दिया, पुतला फूंका और फोटो पर स्याही भी डाली।

एबीवीपी के प्रांत सह-मंत्री कुलदीप सिंह ने बताया कि वे 17 दिनों तक विरोध में बैठे रहे और औरंगजेब वाली टिप्पणी के बाद आंदोलन और तेज हो गया। इन सभी मामलों पर गवर्नर के ऑफिस ने कोई टिप्पणी नहीं की। गवर्नर हरिभाऊ बागड़े लंबे समय से संघ से जुड़े हुए हैं और महाराष्ट्र में कई बार विधायक और मंत्री रहे हैं। क्या गवर्नर एबीवीपी के दबाव में फैसले ले रहे थे? इस पर एबीवीपी के नेता अरविंद भाटी ने कहा कि गवर्नर अपने अनुभव से फैसले लेते हैं और एबीवीपी का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता।

उन्होंने कहा कि अगर कोई वीसी मानता है कि उसके खिलाफ छात्र संगठनों के दबाव में कार्रवाई हुई है, तो उसे ऊंचे अधिकारियों के पास जाकर अपनी बेगुनाही साबित करनी चाहिए। वरना यह माना जाएगा कि उनके कार्यकाल में गड़बड़ियां हुई थीं और उसी आधार पर कार्रवाई हुई है।