Bihar SIR: बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाला है। इससे पहले राज्य में चल रहे एसआईआर के बीच चुनाव आयोग ने 18 अगस्त को वोटर लिस्ट हटाए गए मतदाताओं का आंकड़ा शेयर किया। इससे पता चलता है कि पटना, मधुबनी और पूर्वी चंपारण जिलों में सबसे ज्यादा वोटर हटाए गए हैं। वहां पर महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। साथ ही, 18-40 साल की उम्र के वोटर्स हटाए गए मतदाताओं का एक तिहाई से ज्यादा हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इन तीन जिलों में कुल 10.63 लाख नाम काटे गए। यह राज्य के 38 जिलों में कुल 65 लाख नाम काटे जाने का 16.35% है। ये तीन जिले राज्य के चार सबसे ज्यादा आबादी वाले जिलों में शामिल हैं। इनमें कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 36 शामिल हैं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने 2020 के विधानसभा चुनावों में इन तीन जिलों में 22 सीटें जीती थीं, जबकि विपक्षी महागठबंधन ने 14 सीटें जीती थीं।
इन तीन जिलों की कुल 36 विधानसभा सीटों में से 25 पर हटाए गए वोटर्स की संख्या चुने गए उम्मीदवार की जीत के अंतर से ज्यादा है। इन 25 में से 18 सीटें बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के पास हैं। 40 साल से कम उम्र के वोटर्स इन तीन जिलों में हटाए गए सभी मतदाताओं का 4.02 लाख या 37.87% थे। इन तीन जिलों में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं के नाम ज्यादा काटे गए। इन तीनों जिलों में 5.67 लाख वोटर्स के नाम काटे गए, यानी कुल काटे गए नामों में से 53.35% महिला मतदाता हैं। हालांकि, इन जिलों की 36 विधानसभा सीटों में से हर एक में पुरुषों की संख्या महिला मतदाताओं से ज्यादा है।
चुनाव आयोग ने अपनी पब्लिश की गई लिस्ट में चार कारण बताए हैं। इनमें परमानेंट तरीके से शिफ्ट होना, मृत, अनुपस्थित और पहले से एनरोल होना है। इन तीन जिलों में परमानेंट तरीके से शिफ्ट होना सबसे बड़ा कारण था। यह कुल डिलिशन का 3.9 लाख था। इसके बाद मृत की संख्या 3.42 लाख है। अनुपस्थित लोगों की संख्या 2.25 लाख है और पहले से एनरोल लोगों की संख्या 1.04 लाख थी।
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अधिकारियों के मुताबिक, परमानेंट तरीके से शिफ्ट होने को आसान भाषा में समझें तो इसका मतलब उन वोटर्स से है जो राज्य से बाहर चले गए हैं। पहले से एनरोल उन वोटर्स से मतलब यह है कि राज्य के अंदर कहीं और वोट के लिए रजिस्टर्ड है। अनुपस्थित से मतलब उन वोटर्स से है जो उस पते पर मौजूद नहीं है। हालांकि, बिहार में बाहर जाने वाले प्रवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है।
पटना नाम हटाए जाने के मामले में सबसे आगे
बिहार के 38 जिलों में से 3.95 लाख वोटर्स के नाम हटाए जाने के मामले में पटना सबसे आगे है। पटना राज्य का सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला भी है। पटना में 1.55 लाख परमानेंट तरीके शिफ्ट होना सबसे आम कारण था। इसके बाद 1.34 लाख मृत और 73,225 अनुपस्थित और 32,481 पहले से एनरोल थे। 40 साल से कम उम्र या युवा आयु वर्ग के नाम डिलीशन में 1.26 लाख हैं।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 67,011 परमानेंट तरीके से शिफ्ट हो गए हैं और 30,551 गणना अवधि के दौरान अनुपस्थित रहे। 40 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों में से 2.69 लाख लोगों को ड्राफ्ट रोल से हटा दिया गया है। लिंग के आधार पर हटाए गए नामों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिला मतदाताओं के नाम ज्यादा हटाए गए। इनकी संख्या 1.95 लाख के मुकाबले 2 लाख रही। 30 से 39 साल की उम्र की महिलाओं के नाम सबसे ज्यादा 42,662, काटे गए, जबकि 40 से 49 साल की उम्र के पुरुषों के नाम सबसे ज्यादा 39,172, हटाए गए।
पटना जिले की 14 विधानसभा सीटों में से आठ में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से ज्यादा काटे गए। लेकिन तीन सीटों पर लगभग 55% नाम महिलाओं के थे। किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में पुरुषों के नाम काटे जाने का अनुपात इतना ज्यादा नहीं था। इन 14 सीटों में से दीघा में पुरुषों और महिलाओं, दोनों के साथ-साथ कुल मिलाकर सबसे ज्यादा नाम काटे गए।
यह ध्यान देने लायक बात है कि 2024 के लोकसभा चुनावों की वोटर लिस्ट के अनुसार इन 14 विधानसभा सीटों में से किसी पर भी महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से ज्यादा नहीं थी। पटना जिले की 14 विधानसभा सीटों पर चुनाव परिणामों और जीत के अंतर के बीच हटाए गए नामों के विश्लेषण से पता चलता है कि सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच हालिया मुकाबले करीबी रहे हैं, हालांकि विपक्ष को बढ़त हासिल है।
2020 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पटना जिले की पांच सीटें जीती थीं, लेकिन महागठबंधन 9 सीटों पर आगे रहा था। इनमें से सात सीटों पर हटाए गए नामों की संख्या 2020 के चुनावों में जीत के अंतर से ज्यादा हो गई है। इन सात सीटों में से चार बीजेपी ने, दो राजद ने और एक भाकपा(माले)(एल) ने जीती थी।
क्या कहते हैं मधुबनी के आंकड़े?
बिहार का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला मधुबनी में एसआईआर के दौरान दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा 3.52 लाख वोटर्स नाम हटाए गए, जो पूरे राज्य में हटाए गए कुल मतदाताओं का 5.42% है। पटना की तरह मधुबनी में भी नाम हटाने का सबसे ज्यादा कारण परमानेंट तरीके से शिफ्ट होना बताया गया। यह कुल हटाए गए नामों का 1.18 लाख या 33.52% था, इसके बाद ‘मृत’ 1.01 लाख, अनुपस्थित 99,082 और पहले से एनरोल 33,993 थे।
मधुबनी में 40 साल से कम आयु वर्ग के वोटर्स के नाम हटाए गए कुल वोटर्स का 1.44 लाख थे। 40 साल या उससे ज्यादा उम्र के वोटर्स के नाम हटाए जाने के मामलों में सबसे ज्यादा जो कारण बताए गए उनमें परमानेंट तरीके से शिफ्ट होना और मृत था। परमानेंट तरीके से शिफ्ट होने वालों की संख्या 90,529 थी। मधुबनी में 30 से 39 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा नाम हटाए हए। यह 77,919 था। इसके बाद 20 से 29 आयु वर्ग में 62,771 और 40 से 49 आयु वर्ग में 59,281 था।
मधुबनी जिले में आने वाली 10 विधानसभा सीटों में से हर एक में 30 से 39 आयु वर्ग के लोगों के नाम सबसे ज्यादा नाम हटाए गए। लिंग के आधार पर हटाए गए नामों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है। मधुबनी में भी महिला मतदाताओं के नाम हटाने का सबसे आम कारण ‘परमानेंट तरीके से शिफ्ट’ बताया गया, जो 69,721 था।
मधुबनी जिले की सभी 10 विधानसभा सीटों पर, महिलाओं के नाम हटाने की संख्या पुरुषों से ज़्यादा रही। भाजपा के कब्जे वाली बिस्फी सीट पर महिलाओं के नाम हटाने का प्रतिशत 56.5% तक रहा, जो मधुबनी की सभी 10 सीटों में सबसे ज्यादा है। 2024 के लोकसभा चुनावों की मतदाता सूची के अनुसार, यहां भी सभी 10 विधानसभा सीटों पर महिला मतदाताओं की तुलना में पुरुष मतदाता ज्यादा थे।
पूर्वी चंपारण
पटना के बाद बिहार के दूसरे सबसे ज्यादा आबादी वाले जिले पूर्वी चंपारण में, एसआईआर के दौरान कुल 3.16 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए, जिससे यह राज्य भर में तीसरे सबसे ज्यादा मतदाता सूची में शामिल हो गया। जिले में हटाए गए मतदाता राज्य के कुल 65 लाख मतदाताओं का 4.86 प्रतिशत हैं। पूर्वी चंपारण में 1.18 लाख या 37.25% नाम हटाए जाने के साथ परमानेंट तरीके से शिफ्ट सबसे ज्यादा दिया जाने वाला कारण था। इसके बाद 1.07 लाख ‘मृत’, 52,934 (16.75%) ‘अनुपस्थित’, और 37,952 (12.01%) ‘पहले से एनरोल’ थे।
विश्लेषण किए गए तीन जिलों में पूर्वी चंपारण में 40 साल से कम उम्र के मतदाताओं के नाम सबसे ज्यादा हटाए गए, जिनकी संख्या 1.33 लाख थी। इस आयु वर्ग में, ‘परमानेंट तरीके से शिफ्ट 64,263 और अनुपस्थित 30,010 सबसे ज्यादा दिया जाने वाला कारण था। 40 साल या उससे ज्यादा उम्र के जिन 1.83 लाख मतदाताओं के नाम हटाये गये, उनमें से 94,877 के नाम ‘मृत’ होने के कारण सबसे ज्यादा बताए गए, जबकि 53,441 के नाम परमानेंट तरीके से शिफ्ट होने के कारण सबसे अधिक बताए गए।
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पूर्वी चंपारण में भी 30 से 39 आयु वर्ग में सबसे ज्यादा 75,813 नाम हटाए गए, इसके बाद 40 से 49 आयु वर्ग में 58,039 (18.37%) और 20 से 29 आयु वर्ग में 53,590 (16.96%) नाम हटाए गए। ‘मृत’ को छोड़कर सभी कारणों से 30 से 39 आयु वर्ग के मतदाताओं के नाम सबसे ज्यादा हटाए गए। 70 से 79 आयु वर्ग के मतदाताओं के नाम सबसे ज्यादा मृत कारणों से हटाए गए। पूर्वी चंपारण जिले में आने वाली 12 विधानसभा सीटों में से हर एक में 30 से 39 आयु वर्ग के लोगों के नाम सबसे ज्यादा हटाए गए।
पूर्वी चंपारण में भी एसआईआर के जरिए पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नाम ज्यादा हटाए गए। महिलाओं के नाम 1.75 लाख, पुरुषों के नाम 1.41 लाख से ज्यादा हटाए गए। पूर्वी चंपारण में भी महिला मतदाताओं के नाम हटाने का सबसे ज्यादा कारण परमानेंट तरीके से शिफ्ट बताया गया, जो 69,719 था। पुरुषों के लिए, सबसे आम कारण ‘मृत’ बताया गया, जो 50,653 था। पूर्वी चंपारण की सभी 12 विधानसभा सीटों पर महिलाओं के नाम हटाए जाने के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या ज्यादा रही।