इस साल की शुरुआत में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल (सेवानिवृत्त) पिछले महीने अपने राज्य पार्टी मुख्यालय में बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी में शामिल होते हुए उन्होंने बताया कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी में शामिल होना उनका गलत और भावनात्मक निर्णय था।
इस विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक भी सीट जीतने में नाकाम रही। आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में उत्तराखंड से महज 3.31 प्रतिशत वोट मिले इसके साथ ही ये पार्टी उत्तराखंड विधानसभा में चौथे स्थान पर रही। आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कोठियाल ने गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और महज 6,161 वोट ही हासिल कर सके वो अपनी जमानत भी जब्त करवा बैठे। द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे एक पूर्व सैनिक और पर्वतारोही नेता ने आम आदमी पार्टी को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के अपने फैसले और अग्निपथ योजना पर अपने विचारों के बारे में बातचीत की।
शुरुआत में आप की कार्यशैली पसंद आई थी
अजय कोठियाल ने बताया, ‘मेरी कभी भी बहुत ज्यादा इच्छाएं नहीं थीं और मैं बस अपने अनुभव के आधार पर काम करना चाहता था। राजनीति में आने से पहले मैंने आपको ध्यान से पढ़ा और कई बैठकें कीं। मुझे इस दौरान आम आदमी पार्टी की कार्यशैली पसंद आई। मैं राघव चड्ढा (आप नेता) और दिनेश मोहनिया (आप विधायक) से मिला और उन्होंने मुझे अरविंद केजरीवाल से मिलने के लिए कहा क्योंकि मैं पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार था।
पार्टी की असलियत जानकर हुई निराशा
शुरुआत में तो मुझे काफी अच्छा लगा कि पार्टी कैसे काम करती है। लेकिन धीरे-धीरे जब मुझे इस बात का एहसास होने लगा कि वो अपनी जिद के मुताबिक यहां अभियान चलाने पर लगे हैं तो मुझे खराब लगा। मैं जब भी कोई इनपुट के आधार पर सुझाव देता था वो उसे नकार देते थे। ऐसा इसलिए कि पार्टी के प्रदेश प्रभारी को इस बात पर भरोसा था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए जो सूत्र अपनाए गए वो ही उत्तराखंड में भी सफल होंगे। इसी वजह से उन्होंने किसी और की कोई बात कभी नहीं सुनी। हमारे पास इनपुट भी थे कि घोषणापत्र मतदाताओं को नहीं भा रहा है लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं बदला। उन्होंने एक भी सेट-अप बनाने की कोशिश नहीं की और सिर्फ पोस्टर और सोशल मीडिया अभियानों पर ध्यान केंद्रित किया।
मेरे नाम पर अपना प्रोपेगेंडा फैला रही थी आप
उन्होंने स्कूलों के बारे में बात नहीं की। उन्होंने यहां पर बस वीडियो के जरिए यह दिखाने की कोशिश की, दिल्ली में उन्होंने क्या किया। बाद में, उन्होंने ‘हिंदुत्व’की ओर रुख करते हुए राज्य में वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा का वादा किया। ये मेरा विचार नहीं था लेकिन फिर भी मुझे इसका प्रचार करना पड़ा। मैदान में उतरे उम्मीदवारों के साथ भी मेरा विवाद था। चुनाव से करीब एक महीने पहले, मैंने पार्टी नेतृत्व से बात करना लगभग बंद कर दिया था। मेरी नियमित बहस हो रही थी। लेकिन अभियान के लिए मैंने कहा कि सब ठीक है।
आप किस वजह से बीजेपी में शामिल हुए क्या यहां आपको अपना भविष्य देखाई दे रहा है?
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि जब मैं सेना में था तब से मेरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध था। केदारनाथ धाम के जीर्णोद्धार के दौरान संघ ने मुझे प्रोत्साहित किया जब मैं नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (एनआईएम) का प्राचार्य था और यूथ फाउंडेशन कैंप चला रहा था। बीजेपी की कार्य संस्कृति भी भारतीय सेना की कार्यशैली से काफी मिलती-जुलती है। शायद इन्हीं सब बातों की वजह से मैं बीजेपी को पंसद करता था। प्रगतिशील समाज को मजबूत बनाने के लिए मैं यहां एक सामान्य पार्टी कार्यकर्ता के रूप में काम करना चाहता हूं। जो मैं पहले भी करता था वह दस गुना ज्यादा कर सकता हूं क्योंकि अब मैं सत्ताधारी दल के साथ हूं। पार्टी जो भी जिम्मेदारी मुझे देगी मैं उसे लूंगा।
राज्य के एक वरिष्ठ आप नेता ने कहा कि बीजेपी में शामिल होकर आपने उनके संदेह को सही साबित किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आप के इस निर्णय के पीछे थे जिसमें आपने आम आदमी पार्टी छोड़कर भगवा पार्टी ज्वाइन की?
इस सवाल का जवाब देते हुए कोठियाल ने कहा, हां बीजेपी में शामिल होने से पहले मैंने कैलाश विजयवर्गीय से बात की थी। चुनावों के बाद उन्होंने एक बार भूपेश उपाध्याय (आप के पूर्व प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष, जो बीजेपी में शामिल हो गए थे) से पूछा कि वह मुझे आप में क्यों ले गए। जब भूपेश ने मुझे बताया तो मैंने उनसे कैलाश विजयवर्गीय से बात करने के लिए कहा क्योंकि मैं भगवा पार्टी में शामिल होना चाहता था। उसने तुरंत स्वीकार कर लिया। मैं जल्द ही भूपेश उपाध्याय के साथ बीजेपी में शामिल हो गया।
जिस दिन आप बीजेपी में शामिल हुए उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी ने कहा कि यह देश में ‘आप’ के अंत की शुरुआत है। क्या आप सहमत हैं?
धामी जी की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं। आप ने 2022 में तीन राज्यों पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के लिए तैयारी की। उन्होंने पंजाब को जीत लिया लेकिन यहां भेजे गए नेताओं ने उत्तराखंड में इसके संगठन को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। पार्टी अब हिमाचल प्रदेश जाएगी जो एक पहाड़ी राज्य भी है और उत्तराखंड के परिणाम वहां भी प्रभाव छोड़ेंगे। पार्टी की एक व्यक्ति की निर्णय लेने की नीति है। इसका एक ही मॉडल है और उम्मीद है कि यह पूरे देश में काम करेगा। यह संभव नहीं है।
एक पूर्व फौजी होने के नाते अग्निपथ योजना के बारे में आपकी क्या राय है?
इस सवाल का जवाब देते हुए कोठियाल ने बताया, इस योजना पर मेरा विचार सेना में मेरे 28 वर्षों के अनुभव समाज के साथ मेरी बातचीत और युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित करने वाले ‘यूथ फाउंडेशन ट्रस्ट’ पर आधारित है। अगर हम राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करें तो हम पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में चीन, पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार और दक्षिण में श्रीलंका से घिरे हुए हैं। इसे देखते हुए हमें अपनी सेना को मॉडीफाइड करने की जरूरत है, जिसका अर्थ है प्रशिक्षित जनशक्ति और प्रभावी उपकरण। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जवान सात साल की सेवा के बाद आरक्षित सूची में आते थे। यह बिना किसी पेंशन के था। यह 1977 तक चला। तब भी लोग बिना किसी अतिरिक्त लाभ के सेना में शामिल हो गए।
सैनिक निर्णय नहीं लेता वो लिए गए निर्णय को लागू करता है
एक युद्ध लड़ने के लिए शारीरिक फिटनेस बहुत महत्वपूर्ण है और यदि सैनिकों की एज प्रोफाइल कम कर दी जाती है तो सेना छोटी हो जाएगी। कई लोग अनुभव कारक के बारे में बात कर रहे हैं। उन्हें मैं आपको बताना चाहता हूं कि कैप्टन विक्रम बत्रा जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था उन्होंने सेना में सिर्फ साढ़े तीन साल बिताए। सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (परम वीर चक्र प्राप्त करने वाले) ने सेना में सिर्फ छह महीने बिताए थे। उत्तराखंड के हीरो, गढ़वाल राइफल्स के जसवंत सिंह रावत (मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित) की सिर्फ साढ़े तीन साल की सेवा दी थी। इन सभी उदाहरणों और कई अन्य उदाहरणों से, हम कह सकते हैं कि भले ही अनुभव निश्चित रूप से मायने रखता है, लेकिन कई अन्य कारक हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अग्रणी के लिए अनुभव कारक अधिक महत्वपूर्ण है। एक सैनिक युद्ध में निर्णय लेने वाला नहीं होता बल्कि वह होता है जो निर्णयों और आदेशों को लागू करता है। अग्निवीर वह होगा जिसका नेतृत्व किया जाएगा। मुख्य रूप से हम अग्निवीर को एक नेता के रूप में नहीं देख रहे हैं लेकिन भविष्य में उन अग्निवीरों में से 25 प्रतिशत नेता भी बनेंगे।