1993 में मध्यप्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी का लंबा दौर चला था। लेकिन जिस तरह से दिग्विजय सिंह को सीएम चुना गया वह बेहद दिलचस्प था। 1991 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मध्यप्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। इस समय कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष थे दिग्विजय सिंह। चुनाव में कांग्रसे को अप्रत्याशित रूप से बहुमत मिला, तो अनाचक श्यामाचरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, कमलनाथ और सुभाष यादव सहित कई नेताओं के मन में मुख्यमंत्री बनने से सपने तैरने लगे। लेकिन दिग्विजय सिंह उस समय तक सांसद थे।

चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक हुई और अर्जुन सिंह की तरफ से श्यामाचरण शुक्ल की टक्कर में सुभाष यादव का नाम आगे किया गया। सिंह चाहते थे कि सुभाष यादव के रूप में किसी पिछड़े को यह पद मिले। लेकिन विधायक दल की बैठक में यह नाम नहीं चल सका। उधर, माधवराव सिंधिया दिल्ली में तैयार बैठे थे कि जैसे ही बुलावा आएगा वो तुरंत हवाई जहाज से भोपाल के लिए निकल जाएंगे। दिल्ली से केंद्रीय पर्यवेक्षकों के रूप में प्रणव मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी भोपाल आए थे।

दिग्विजय सिंह की ओर से कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने मोर्चा संभाल रखा था। लेकिन विवाद बढ़ता देख प्रणव मुखर्जी ने गुप्त मतदान करवाया। मतदान के बाद पता चला कि 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण शुक्ल के नाम पर हामी भरी थी। 100 से ज्यादा विधायक दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे।

कैसे हुआ यह फेरबदल: दरअसल 1993 का विधानसभा चुनाव दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। पूरे चुनाव कार्यक्रम के दौरान उन्होंने बड़ी चतुराई से लगभग हर विधायक से व्यक्तिगत संबंध बना रखे थे। शायद यही वजह रही कि जब सीएम पद के विधायक दल का नेता चुना जाना था सौ से ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय सिंह के नाम पर मुहर लगाई थी।

दिग्गी राजा: दिग्विजय सिंह विशुद्ध राजनेता हैं। अपने बयानों से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले सिंह के राजनीति में कई दोस्त हैं। राजनैतिक समीक्षक और पत्रकार उन्हें दिग्गी राजा लिखते हैं। हालांकि वो खुद इस संबोधन को पसंद नहीं करते हैं, बावजूद इसके पूरे देश का मीडिया उन्हें इसी नाम से पुकारता है। यह संबोधन उन्हें 80 के दशक में मिला था। उस समय वो दिल्ली में राजीव गांधी की टीम के सदस्य थे और राजगढ़ से सांसद भी थे।

एक बार एक डिनर पार्टी के दौरान दिग्विजय सिंह और कांग्रेस के बहुत सारे नेता देश के शीर्षस्थ पत्रकारों के साथ बैठे थे। उस समय के चर्चित अखबार ब्लिट्ज के संपादक आरके करंजिया भी उस पार्टी में आए थे। वृद्धावस्था के कारण करंजिया को दिग्विजय सिंह का नाम बोलने में कुछ कठिनाई हुई, तो उन्होंने नाम को छोटा करके दिग्गी राजा कहना शुरू कर दिया। उसी दिन से दिल्ली के अंग्रेजी पत्रकारों के बीच यह संबोधन चल पड़ा जो आज तक जारी है।