दिल्ली एनसीआर में इन दिनों वायु प्रदूषण ने कहर ढा रखा है, कुछ निजी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम पर भेज दिया है। हालांकि रोजमर्रा का काम करने वाले मजदूर, रेहड़ी पटरी वाले दुकानदारों के पास घर से बाहर काम करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इन्हीं लोगों की परेशानी से रूबरू होने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने इनसे बातचीत की।
दोपहर के एक बज रहे हैं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मोबाइल ऐप ने आनंद विहार में एक्यूआई 480 बताया, जो दिल्ली में सबसे प्रदूषित जगहों में एक है। बोर्ड के मापदंड के मुताबिक, यहां प्रदूषण का स्तर गंभीर श्रेणी में दर्ज किया गया। थोड़ी दूरी पर 24 वर्षीय ई-रिक्शा चालक मोनू पटेल मौजूद थे। उन्होंने चेहरे पर मॉस्क लगा रखा है। बात करने पर उन्होंने बताया कि प्रदूषण इतना अधिक है कि सांस लेने में तकलीफ हो रही है।
“घर रहने का विकल्प नहीं”
मोनू नौ सालों ने आनंद विहार के पास ई-रिक्शा चला रहे हैं। मोनू ने कहा कि उनके कुछ दोस्तों की आंखों से पानी निकल रहा है, इतने प्रदूषण में हमारे पास घर रहने का कोई विकल्प नहीं है। मॉनिटरिंग स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर बड़ी संख्या में लोग बस और अन्य साधनों को इंतजार कर रहे थे।
यहां जाम भी देखने को मिला, एक्सपर्ट का मानना है कि दिल्ली में जहरीली हवा का एक बड़ा कारण गाड़ियों के निकलता धुआं भी है।
“कोई भी अपनी मर्जी से नहीं आयेगा”
पास में ही कचौड़ी बेचने वाले 50 वर्षीय राम निवास को घेरे हुए है, राम निवास साइकिल पर कचौड़ी बेचते हैं। वह यह काम पिछले आठ सालों से कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि धूल उनके नाक और सीने में परेशानी पैदा करती है। हालांकि उन्होंने मॉस्क नहीं पहना हुआ है।
राम ने कहा, “कोई भी इंसान अपनी मर्जी से यहां नहीं आयेगा जहां सांस भी आदमी को सोचकर लेनी पड़े।”
दिल्ली सरकार ने जारी किया है आदेश
जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली सरकार ने प्रशासन और निजी कार्यालयों को आदेश दिया कि वह 50 फीसदी कर्मचारियों को ही कार्यालय में बुलाएं, बाकी लोगों को घर से काम करने की सुविधा दें। लेकिन मोनू या राम जैसे कामगारों जो दिहाड़ी आधार पर काम करते हैं, उन्हें इस एडवाइजरी से कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
कार्यालयों में लोगों की संख्या कम होने और स्कूलों के बंद होने से शहर के लोग घरों में बंद हो गए हैं लेकिन गरीब कामगार बाहर इस जहरीली हवा में काम करने को मजबूर है।
राम ने कहा कि शहर छोड़ना सही तरीका नहीं है, वह अपने शहर बरेली खेती के कटाई, जुताई के दौरान ही वापस जाएंगे। उन्होंने कहा कि सभी के पास घर रहने और जीने के लिये पर्याप्त जमीनें नहीं है, मैं दिल्ली कमाने के लिये आया हूं।
“घर बैठ गये तो खाना कौन खिलाएगा”
थोड़ी ही दूरी पर 32 वर्षीय कृष्णपाल जो आनंद विहार के पास ठेला चलाते हैं और कचरा उठाते हैं। वे कचरे को गाजीपुर लैडफिल ले जाते हैं, गाजीपुर लैंडफिल दिल्ली की सबसे प्रदूषित जगहों में से एक है।
कृष्ण ने कहा कि सफाई कर्मचारी कोविड महामारी के दौरान भी अपनी ड्यूटी कर रहे थे। प्रदूषण के दौरान उन्हें कोई विकल्प नहीं दिया गया। उन्होंने कहा,”अगर हम घर बैठ गए तो हमें खाना कौन खिलाएगा, मेरे परिवार में पांच सदस्य हैं, जिनका मुझे पेट भरना है और दो बच्चे हैं जिन्हें पढ़ाना है।
कृष्ण ने अपना ठेला एक बड़े कूड़ेदान में खाली किया, जो कचरा इकट्ठा किया जाता है। उन्होंने कहा, “हमने कोविड के दौरान काम किया और हमें अब भी काम करना होगा, नहीं तो शहर में गंदगी फैल जाएगी।”
