Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानपुर के पूर्व सपा विधायक इरफान सोलंकी को आगजनी मामले में सात साल की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर लोगों की राय है कि अपराध के आरोपी व्यक्तियों को सार्वजनिक पदों पर चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। पूर्व विधायक सोलंकी इस वक्त महाराजगंज जेल में बंद हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी कहा कि अक्सर यह देखा गया है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या जघन्य अपराधों के आरोपी व्यक्ति बड़ी संख्या में विधान सभाओं और संसदों के लिए चुनाव लड़ते हैं और निर्वाचित होते हैं।
पूर्व सपा विधायक इरफान सोलंकी, उनके भाई और दो अन्य को 2022 में एक महिला के घर में आग लगाने के आरोप में कानपुर की एक स्पेशल कोर्ट ने दोषी ठहराया था। साथ ही सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद इरफान सोलंकी को यूपी-राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस सुरेन्द्र सिंह-I की पीठ ने कहा कि सोलंकी, जिस पर गंभीर अपराधों का आरोप लगाया गया है और जिसका लंबा आपराधिक इतिहास है तथा जिसकी जमानत याचिका हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दी है, वह दोषसिद्धि पर रोक लगाने की राहत का हकदार नहीं है।
गौरतलब है कि सोलंकी ने इस मामले में दोषसिद्धि और जमानत पाने लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पीठ ने सोलंकी को जमानत दे दी, लेकिन दोषसिद्धि पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी।
उनके वकील ने तर्क दिया कि सोलंकी कानपुर नगर जिले के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से चार बार विधायक रह चुके हैं और जनता के बीच उनकी अच्छी प्रतिष्ठा है।
दूसरी ओर, एजीए ने आवेदन का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि सोलंकी आगजनी सहित गंभीर अपराधों में शामिल रहा है और उसका लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रहा है। यह भी तर्क दिया गया कि अपराधों की गंभीरता और अपीलकर्ताओं के आपराधिक इतिहास को देखते हुए धारा 389(1) सीआरपीसी के तहत सजा को निलंबित करना उचित नहीं था।
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इन दलीलों की पृष्ठभूमि में हाई कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों पर विचार करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने सोलंकी को आरोपित अपराधों के लिए दोषी ठहराया था और माना था कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीय और भरोसेमंद थे ।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यद्यपि उसके पास दोषसिद्धि पर रोक लगाने की शक्ति है, परन्तु ऐसी शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, जब न्यायालय को यह विश्वास हो कि दोषसिद्धि पर रोक न लगाने से अन्याय होगा तथा अपरिवर्तनीय परिणाम होंगे।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी माना कि केवल यह दलील देना कि सोलंकी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत अयोग्य घोषित कर दिया गया है, उनकी सजा को निलंबित करने का कोई आधार नहीं है। इसके बाद कोर्ट उनकी सजा पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी।