कोरोना वायरस महामारी के चलते मार्च में लागू हुए लॉकडाउन के एक महीना बाद तक संदीप विश्वकर्मा (22) हरियाणा के करनाल में रुके रहे, जहां वो काम करते थे। मगर तब तक नौकरियों के क्षेत्र में सूखा पड़ चुका था। अप्रैल में वो और अन्य निर्माण क्षेत्र से जुड़े मजदूर पानीपत के लिए रवाना हुए, मगर वो अब वहां से भी लौट आए हैं। बुधवार को करीब 11 घंटे की बस यात्रा के बाद वो दिल्ली पहुंचे और एक ठेकेदार द्वारा वाहन की व्यवस्था होने पर रेवाड़ी रवाना हो गए। सीतापुर में परिवार को छोड़कर काम की तलाश में पहुंचे संदीप को उम्मीद है कि अब उन्हें रेवाड़ी के एक कारखाने में नौकरी मिल जाएगी।
उन्होंने बताया, ‘करनाल में मैं 10,500 रुपए प्रतिमाह का वेतन पा रहा था। अभी हम रेवाड़ी में हैं। यहां एक कंपनी को मुझे काम पर रखना है। इसके बाद मुझे पता चल सकेगा कि मेरी तनख्वाह की कितनी है। घर पर कोई काम नहीं है और मुझे पैसे की जरुरत है।’ इसी तरह लॉकडाउन में ढील देने के करीब तीन महीने बाद आनंद विहार बस अड्डे पर उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूर दिल्ली पहुंच रहे हैं, उन्हें उम्मीद है कि दिल्ली-एनसीआर में काम मिल जाएगा।
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देश में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूरों ने राष्ट्रीय राजधानी छोड़ दी थी। उनमें से गिरिराज सिंह (28) एक हैं जो नांगलोई में अल्युमीनियम प्लांट में काम करते थे। वो रास्ते में कुछ वाहनों की मदद के साथ पैदल ही अपने गृहनगर बदायूं पहुंच गए। सिंह 12 हजार रुपए प्रतिमाह के वेतन उसी प्लांट में नौकरी के लिए वापस लौट रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरे दो बच्चे हैं जिनकी उम्र छह साल से भी कम है। मुझे पैसे कमाने की जरुरत है।’
ऐसे ही अवनीश सागर (19) और उनके भाई पतिराज सागर (18) बवाना में बर्तन बनाने वाली फैक्ट्री में 14 हजार रुपए के वेतन पर काम करने लिए यूपी के जलालाबाद से बुधवार को शहर आ चुके हैं। अवनीश कहते हैं, ‘हम दोनों लॉकडाउन से पहले वापस लौट गए थे क्योंकि काम बंद हो चुका था। अब फैक्ट्री मालिक ने हमें काम पर बुलाने के लिए फोन किया। घर पर कोई काम नहीं है और फसल का मौसम भी खत्म हो चुका है।’
पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर में जनरल स्टोर और दस कमरों को किराए पर उठाने वाले हिमांशु (29) कहते हैं कि बिहार से सिर्फ एक परिवार वापस लौटा है। अगर कारखाना मालिक उन्हें उन्हें बुलाते हैं तो वो भी दिल्ली आने के लिए तैयार हैं। मगर उनके नियोक्ता कहते हैं कि कोई काम नहीं है। वापस मत लौटना।