बिहार के मधुबनी जिले के उमगांव से फोन पर बात करते हुए मोहम्मद समीरुल ने कहा “बुरे वक़्त में इंसान घर ही तो जाता है, इसमे इतनी चौंकने वाली क्या बात है।” दिल्ली के सदर बाज़ार में एक कुली के रूप में काम करने वाले 38 वर्षीय इस मजदूर ने नौ दिनों तक ठेला चलाकर 1,180 किलोमीटर का सफर तय किया और दिल्ली से नेपाल के नजदीक अपने गांव पहुंचे।
23 मार्च को दोपहर लगभग 3 बजे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा की। तभी सदर बाज़ार, आज़ाद मार्केट और भागीरथ पैलेस के लगभग 50 कुलियों ने दिल्ली से बिहार अपने गांव वापस जाने का फैसला किया। समीरुल उन मजदूरों में से एक हैं। 25 मार्च को जब देशव्यापी तालाबंदी शुरू हुई तब भी मजदूरों का यह समूह रास्ते में था और अपने घर वापस जा रहा था। इस दौरान वे कई शहरों से गुजरे लेकिन उन्हें नहीं पता था कि पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो गया है।
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समीरुल ने कहा “मैंने दो कंबल, अपना नोकिया फोन और चार्जर, पानी भरने के लिए एक जग और 700 रुपये लिए आऊ शाम को निकाल पड़ा। हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। हम 22 मार्च को एक दिन के लॉकडाउन से ठीक थे लेकिन जब लॉकडाउन बढ़ा दिया गया तो मैं समझ गया कि ऐसे में यहां जीवित नहीं रखूंगा। अगर हम नहीं कमाएंगे नहीं, तो हम खाएंगे क्या? 26 मार्च को, हमें पता चला कि लॉकडाउन पूरे देश में लागू किया गया था और घर वापस आने पर भी कोई काम नहीं होगा। यह बेहद दुखद है, लेकिन हम जानते हैं कि इस बीमारी को रोकने के लिए इसकी जरूरत है।”
30 मार्च को, वह अपने गाँव, मधुबनी जिले के उमगांव पहुंचे और पास के एक मेडिकल कॉलेज में उन्हें 14 दिनों के लिए संगरोध में रखा गया। समीरुल ने कहा “बच्चे चाय और नाश्ते के साथ रोज़ मेरे पास आते थे, जिसे वे बाहर फर्श पर रख कर चले जाते थे। 13 अप्रैल को मैंने आखिरकार अपने घर में प्रवेश किया।”
23 मार्च को, समीरुल सदर बाज़ार से अन्य ठेले वालों के साथ कश्मीरी गेट आईएसबीटी पहुंचे। वहां से सभी यूपी के गाजियाबाद, फिर इटावा, कानपुर, लखनऊ और गोरखपुर से ठेला चलते हुए बिहार के गोपालगंज, फिर मुज़फ़्फ़रपुर और दरभंगा होते हुए अपने-अपने गाँव पहुंचे। समिरुल के अपने घर में कदम रखने के चार दिन बाद, पूर्व कांग्रेस नेता शकील अहमद उनके परिवार से मिलने पहुंचे और उन्हें 25 किलो का राशन दिया। समीरुल ने कहा “अभी के लिए, यह पर्याप्त है, लेकिन हम काम करना चाहते हैं। मेरे पास कोई कृषि भूमि नहीं है, मैं सिर्फ एक दिहाड़ी मजदूर हूं। जब यह खत्म हो जाएगा, तो मैं अपनी गाड़ी से दिल्ली वापस जाऊंगा।”
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