भारत द्वारा तालिबान के साथ औपचारिक बात शुरू करने को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ हमला तेज कर दिया है। कांग्रेस नेता पंकज पुनिया ने पिछले 9 महीनों से सड़कों पर अपनी मांगों के साथ बैठे किसानों के बजाय तालिबानियों से बात करने को लेकर केंद्र सरकार का घेराव किया है। पुनिया ने कहा कि भारत सरकार ने तालिबान से तो बातचीत शुरू दी लेकिन देश का किसान 9 महीने से सड़कों पर, सरकार से वार्ता के इंतजार में है।

इस मामले को लेकर कांग्रेस समेत कई दल के नेताओं ने सरकार पर प्रश्न उठाए हैं। इस लिस्ट में नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला भी शामिल हैं। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा कि केंद्र सरकार को यह बिंदु स्पष्ट करना चाहिए कि वह इस संगठन को आतंकी मानती है या नहीं। उन्होंने कहा कि “तालिबान एक आतंकवादी संगठन है या नहीं, हमें स्पष्ट करें कि आप (भारत सरकार) तालिबान को कैसे देखते हैं।”

उन्होंने कहा कि अगर वह एक आतंकवादी संगठन है तो आप उनसे बात क्यों कर रहे हैं और अगर आतंकी नहीं मानते हैं तो उनके अकाउंट क्यों फ्रीज किए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को पहले अपना रुख तय करना चाहिए।

इसी तरह ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी केंद्र सरकार की कूटनीति पर सवाल उठाए। ओवैसी ने कहा कि ”सरकार क्यों शरमा रही है? तंजात्कम लहजे में पाकिस्तान ने कहा कि पास आते भी नहीं, चिलमन से हटते भी नहीं। यह पर्दे से झांक-झांककर क्यों मोहब्बत कर रहे हैं, खुलकर बोलिए ना। ओवैसी के अनुसार यह देश का मामला है, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है, सरकार को बताना चाहिए कि आप तालिबानियों को आतंकी मानते हैं या नहीं।

बता दें अफगानिस्तान में कब्जे का बाद पहली बार भारत और तालिबानी नेताओं के बीच औपचारिक मुलाकात हुई है। कतर के दोहा में भारत के राजदूत और तालिबानी नेता के बीच बातचीत यह हुई है। भारत ने इस चर्चा में भी आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अफगानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए। कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को लेकर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

दूसरी तरफ किसान पिछले 9 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों के साथ बैठे हैं। किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानूनों को खत्म किया जाए जबकि सरकार का तर्क है कि किसानों की मांगों को देखते हुए संसोधन किए जा सकते हैं लेकिन कानून वापस नहीं होगा। सरकार और किसानों के बीच आखिरी बार सीधा संवाद जनवरी महीने में हुआ था।