विवादों में घिरे उद्योगपति विजय माल्या के देश छोड़ कर जाने का मुद्दा शुक्रवार को फिर राज्यसभा में उठा। विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार से जानना चाहा कि पिछले साल सीबीआइ ने एक महीने के अंदर ही अपने लुकआउट नोटिस में बदलाव क्यों किया। उन्होंने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सीबीआइ ने माल्या के खिलाफ 16 अक्तूबर 2015 को जारी लुकआउट नोटिस में आव्रजन प्राधिकारियों से कहा था कि अगर माल्या का इरादा देश छोड़ कर जाने का है तो उन्हें हिरासत में ले लिया जाना चाहिए। आजाद ने कहा, ‘लेकिन ठीक एक माह बाद नवंबर में सीबीआइ ने अपने पहले के नोटिस में बदलाव कर दिया और कहा कि वह प्राधिकारियों को केवल सूचित कर रही थी।’ उन्होंने सवाल किया कि सीबीआइ ने आखिर अपना नोटिस क्यों बदला।
सदन में विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार तर्क दे रही है कि माल्या के खिलाफ कोई अदालती आदेश नहीं था। लेकिन ग्रीनपीस कार्यकर्ता प्रिया पिल्लै को तो केवल सरकार के आदेश पर ही हवाईअड्डे पर रोक लिया गया था। उन्हें लंदन नहीं जाने दिया गया था। फिर माल्या को क्यों नहीं रोका गया। आजाद ने कहा कि सरकार माल्या के देश छोड़ कर जाने के मामले में एक पक्ष है।
इस पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि राजग सरकार ने माल्या को कोई रियायत नहीं दी थी जैसा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में इतालवी कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोकी को दी थी। बैंकों की ओर से माल्या का पासपोर्ट जब्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने से पहले, दो मार्च को माल्या देश छोड़ कर चले गए। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को सदन को बताया था कि माल्या पर 30 नवंबर 2015 तक ब्याज सहित 9,091.40 करोड़ रुपए बकाया हैं। माल्या की कंपनियों के लिए ऋण 2004 से 2007 के बीच स्वीकृत किए गए थे। वर्ष 2009 तक ये ऋण बैड लोन हो गए और 2010 में गैर निष्पादित आस्तियों को ‘रीस्ट्रक्चर्ड’ किया गया था।