सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने दो दिवसीय मथुरा दौरे के अंतिम दिन श्रीकृष्ण जन्मस्थान जाकर कान्हा के दर्शन किए। फिर उन्होंने रसखान समाधि का निरीक्षण कर अधिकारियों के साथ बैठक ली। बैठक के बाद बरसाना में राधा रानी के दर्शन कर योगी रवाना हो गए। वो अपने पहले कार्यकाल में करीब 2 दर्जन बार मथुरा आए थे। लेकिन दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी पहली बार कान्हा की नगरी में पहुंचे।
योगी ने रसखान की समाधि पर पुष्प अर्पित किए। उन्होंने समाधि स्थल परिसर में उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के अधिकारियों के साथ बैठक की। मुख्यमंत्री ने रसखान समाधि स्थल, ताज बीबी सहित पूरे परिसर का भ्रमण किया। उन्होंने तीर्थ विकास परिषद द्वारा कराए गए विकास कार्यों की सराहना की। उन्होंने रसखान समाधि स्थल का जीर्णोद्धार भी किया।
ध्यान रहे कि कृष्ण की क्रीड़ा स्थली गोकुल कस्बे में कृष्ण के परम भक्त कवि रसखान की समाधि का सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है। यह कार्य प्रदेश सरकार की ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा 10 करोड़ की धनराशि में होगा।
सैयद इब्राहिम से बने रसखान
रसखान का जन्म 1548 में अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था। वो दिल्ली के आस-पास के रहने वाले थे। कृष्ण भक्ति ने उन पर ऐसा जादू किया कि गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेकर ब्रजभूमि में जा बसे। 1628 में उनकी मृत्यु हुई। रसखान की दो पुस्तकें प्रसिद्ध हैं सुजान रसखान और प्रेमवाटिका। सुजान रसखान की रचना कवित्त और सवैया छन्दों में हुई है जबकि प्रेमवाटिका की दोहा छन्द में।
रसखान का जन्म दिल्ली के एक समृद्ध पठान परिवार में हुआ था। उनको बेहतरीन शिक्षा मिली थी। कहा जाता है कि एक बार रसखान दिल्ली से वृन्दावन गए। वहां गोस्वामी विट्ठलनाथ जी के सत्संग ने उन्हें कृष्ण भक्त बना दिया। उनका शिष्यत्व स्वीकार कर उन्होंने अपना जीवन श्रीकृष्ण भक्ति तथा काव्य रचना के लिए समर्पित कर दिया। उनको फारसी, हिंदी एवं संस्कृत का अच्छा ज्ञान था।
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रसखान नाम का उच्चारण रस की खान से होता है। श्रीकृष्ण के परम भक्तों में से एक मुस्लिम कवि रसखान हैं। रसखान के नाम में भक्ति और श्रृंगार रस दोनों की प्रधानता मिलती है। इन्होंने “श्रीमद्भागवत” का फारसी में अनुवाद किया था। वहीं से उनकी ख्याति हर तरफ फैली।
