केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सोशल मीडिया पर नए नियमों के नियंत्रण के लिए तीन महीने का समय मांगा है। बता दें कि पिछले महीने उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को तीन हफ्ते का समय दिया था कि राज्य की संप्रभुता, एक व्यक्ति की गोपनीयता और अवैध गतिविधियों को रोकना के लिए कुछ ठोस कदम उठाए। इस पर जायजा लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। वहीं केंद्र उच्चतम न्यायालय से और अधिक समय मांगते हुए कहा है कि इंटरनेट लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था को अकल्पनीय नुकसान पहुंचाने वाला शक्तिशाली हथियार बनकर उभरा है।

मंत्रालय-सोशल मीडिया से आर्थिक तरक्की और सामाजिक विकासः मामले में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सोशल मीडिया पर सही तरीके से काबू नहीं होने के कारण नफरत भरे भाषणों, फर्जी खबरों और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में काफी बढ़ोतरी हुई है। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया से समाज में आर्थिक तरक्की और सामाजिक विकास भी हुआ है।

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केंद्र ने 3 महीने का अधिक समय मांगाः पिछले महीने मामले में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा था कि सोशल मीडिया पर जिस तरह से चीजें आम हो रही है यह एक चिंता का विषय है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने बताया कि उन्होंने सर्च किया था और पाया था कि इंटरनेट के डार्क वेब से केवल आधे घंटे में एके 47 खरीदा जा सकता है। वहीं केंद्र के इस नए नियमों के बनने का न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया। इससे पहले केंद्र के वकील रजत नायर ने मामले का उल्लेख करते हुए तीन महीने का समय मांगा है।

मॉब लिंचिंग और हत्या में सोशल मीडिया का भी हाथः बता दें कि फेसबुक इंक. द्वारा दाखिल हस्तांतरण याचिका के मद्देनजर यह हलफनामा दाखिल किया गया था। इसमें सोशल मीडिया प्रोफाइलों को आधार से जोड़ने संबंधी तीन उच्च न्यायालयों मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दाखिल मुकदमों का तबादला करने की मांग की गई थी। पिछले महीने सरकार मॉब लिंचिंग और हत्या के बढ़ते मामले में भी कहीं न कहीं सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराई है। गौरतलब है कि सरकार अब सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की पूरी तैयारी में है।