तीन कृषि कानूनों को केंद्र सरकार ने हाल ही में वापस ले लिया। इन कानूनों को निरस्त करने को अब राष्ट्रपति की भी मंजूरी मिल गई है। इनके बनने के बाद से किसानों के लगातार आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमों को भी सरकार अब वापस ले रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार को एक प्रेसवार्ता में कहा कि तीन कृषि क़ानूनों के विरोध के दौरान किसानों पर हुए पुलिस केस अब हटाए जाएंगे। दूसरी राज्य सरकारें भी ऐसा करने जा रही हैं।

प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री ने कहा कि कानून वापस होने से हमारी सरकार केंद्र सरकार के निर्देश के अनुसार आंदोलन के दौरान किसानों पर जो पुलिस मुकदमे हुए हैं, उनको वापस लेगी। इस पर पत्रकारों ने कहा कि पुलिस मामले तो राज्य के विषय हैं, तो मुख्यमंत्री ने कहा कि आंकड़े जुटाए जा रहे हैं।

इस बीच मृत किसानों के मुआवजे को लेकर भी विवाद तेज हो गया है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान मरे किसानों के परिजन को मुआवजा देने को लेकर संसद में केंद्र सरकार के जवाब की बुधवार को आलोचना की और मृत किसानों के परिजन को वित्तीय सहायता देने की अपनी मांग दोहराई।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कथित तौर पर कहा कि प्रदर्शन के दौरान किसानों की मौत के बारे में सरकार को सूचना नहीं है और इसलिए वित्तीय सहयोग का सवाल पैदा नहीं होता है।

एसकेएम ने बयान में आरोप लगाया कि भाजपा सरकार औपचारिक वार्ता शुरू नहीं कर प्रदर्शनकारी किसानों को बांटने का प्रयास कर रही है और एसकेएम के पत्र का औपचारिक रूप से जवाब नहीं दे रही है, जिसमें उसे लंबित मांगों की याद दिलाई गई है। इसने कहा, ‘‘भाजपा सरकार को इस चरण में किसानों को बांटने का प्रयास बंद करना चाहिए।

किसान संगठनों को एकजुट रहना चाहिए और मोदी सरकार को किसानों को बांटने के अपने एजेंडा को बंद करना चाहिए। एसकेएम सरकार से सभी आवश्यक ब्यौरे सहित औपचारिक संवाद की प्रतीक्षा कर रहा है।’’ केंद्र सरकार के जवाब की आलोचना करते हुए 40 किसान संगठनों के समूह एसकेएम ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से केंद्र प्रदर्शनकारी किसानों की बड़ी शहादत का ‘‘अपमान’’ कर रहा है।