नामांकन की प्रक्रिया पूर्ण होने में केवल चार ही दिन शेष है और अभी भी भाजपा में अपने सभी वार्ड के चेहरों के लिए मंथन पर घमासान जारी है। यह चिंता इसलिए वाजिब है कि इससे पूर्व भी भाजपा ने 2017 में इसी प्रकार आखिरी दौर में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी और पार्टी इस देरी की वजह से 272 में से छ: सीट पर चुनाव ही नहीं लड़ पाई थी। गुरुवार को भी दिल्ली में निगम के 250 वार्ड के लिए पार्टी के शीर्ष नेताओं का खबर लिखे जाने तक मंथन जारी रहा।

पार्टी सूत्र बताते हैं कि निगम चुनाव के लिए पार्टी ने कई चरणों में हर वार्ड से आवेदन मांगे थे। इसके तहत पार्टी के कार्यालय और विशेष टीम के माध्यम से भी वार्ड के लिए चेहरों के नाम सामने आए हैं । इस वजह से यह आंकड़ा बढ़कर करीब 15 हजार तक जा पहुंचा है। इसलिए पार्टी को नामों की छंटनी में वक्त लग रहा है।

इसके अतिरिक्त इस बार पार्टी ने सांसदों की भी जिम्मेवारी को तय करने की कोशिश भी की है। इसलिए सांसदों के माध्यम से भी एक सूची तैयार की गई, जो कि पार्टी के प्रभारी को भेजी गई है। इन सभी नामों के आधार पर शुरुआती दौर में हर सीट पर एक से दो संभावित नामों को लेकर मंथन किया जा रहा है।सूत्रों ने बताया कि देरी होने की सबसे बड़ी वजह बीते पांच साल में निगमों के अंदर एक नेतृत्व तय नहीं हो पाना है।

इस वजह से सभी नामों में अलग अलग स्तर से मंथन हो रहा है। पार्टी प्रभारी इस समय सक्रिय जरूर है लेकिन इससे पूर्व पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं का वर्चस्व इस प्रक्रिया में रहता था और जो बार एकदम साफ हो गया है। इसलिए करीब बीस से तीस फीसद ऐसे पार्षद जो अपने कार्य की वजह से अपने वार्ड में जाने जाते हैं ।

केवल उनकी वापसी को ही तय माना जा रहा है। बाकि एक बड़ी टीम नए परिसीमन की वजह से स्वत: ही समाप्त हो गई है। इस स्थिति में जो सीट महिला से पुरुष या पुरुष से महिला हुई है। इस स्थिति में यह संभावना बेहद ही कम बताई जा रही है कि संबंधित परिवार को ही पार्टी पुन: टिकट पर विचार करे। वहां पर नया चेहरा सामने लाकर निगम चुनाव की लड़ाई को और मजबूत करने की कोशिश पर भी विचार किया जा रहा है।