बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘संघ मुक्त भारत’ के आह्वान के तहत 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक नया राष्ट्रीय विकल्प पेश करने की पहल की है। भाजपा ने हालांकि इसे हताश, निराश, नीति एवं नेतृत्वविहीन लोगों के अस्तित्व बचाने का प्रयास बताया है। जदयू का दावा है कि नीतीश कुमार के आगे आने से भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने में मजबूती मिलेगी और नये विकल्प का मार्ग प्रशस्त होगा।
केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘यह हताश एवं निराश लोगों का प्रयास है जो पहले गैर कांग्रेसवाद के नाम पर राजनीति करते थे और अब खुद ही कांग्रेस की गोद में बैठ गए है।’

बिहार के मुख्यमंत्री की पहल पर चुटकी लेते हुए नकवी ने कहा कि कांग्रेस के साथ जाने के बाद अब वे गैर भाजपावाद का विलाप कर रहे हैं लेकिन उनका सपना साकार नहीं होने वाला है, ‘क्योंकि उनके पास न कोई नीति है और न ही नेतृत्व। उनकी नीति केवल भाजपा का विरोध है और नेतृत्व बिखरा हुआ है। ये अपनी राजनीतिक पहचान और अस्तित्व बचाने की जुगत में लगे हैं।’

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा, कांग्रेस, सपा, जदयू, बसपा और कुछ दलों के लिए सबसे बड़ा दांव 2017 में होने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव है। जदयू, अजीत सिंह की रालोद के लिए तो यह वजूद की प्रसांगिकता का विषय भी है। जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव का कहना है कि नीतीश कुमार के जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल को मजबूती मिलेगी और यह देश में राजनीतिक विकल्प के द्वार खोलेगा।

कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने कहा है कि हमारा जदयू और राजद के साथ बिहार में गठबंधन है। इसी तरह से कुछ दलों के साथ राज्य स्तर पर गठबंधन हैं। हम विपक्षी दलों की एकजुटता के पक्षधर है। अहमद ने कहा कि मुझे शत प्रतिशत विश्वास है कि एकता रहेगी और ऐसा नहीं लगता कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय गठबंधन की बात कही है।

बिहार चुनाव में उनके साथ हमारा गठबंधन था। किसी राज्य में कोई पार्टी बहुत मजबूत है, लेकिन पड़ोसी प्रदेश में वह अस्तित्व में नहीं है। किसी राज्य विशेष की परिस्थितियों के अनुसार गठबंधन बनते हैं। वास्तविकता यही है कि राज्य स्तरीय गठबंधन होते हैं।

झारखंड विकास पार्टी (पी) के प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने कहा, ‘देश में एक मजबूत विकल्प की जरूरत है। नीतीश कुमार केंद्र में बेहतर विकल्प हो सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री ने अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित की है और उनकी पूरे देश में स्वीकार्यता है। रालोद के अजीत सिंह ने भी अभी पत्ते नहीं खोले हैं। बताया जाता है कि जदयू में विलय के लिए उन्होंने कुछ ऐसी शर्ते रखी हैं, जो रुकावट का कारण बनी हुई हैं।

इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस का वर्चस्व पहली बार 1977 में टूटा था। जब आपातकाल के बाद जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि में मोराजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी बनी थी और सत्ता में आई। इसके बाद 1988 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में बना मोर्चा सत्ता में आया। 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में विभिन्न दलों का गठबंधन बना और सत्ता पर काबिज हुआ।

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे किसी गठबंधन के लिए नीतीश कुमार, लालू प्रसाद के साथ मुलायम सिंह यादव, मायावती, जयललिता, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल को एक मंच पर आने की जरूरत होगी। इनमें से कई प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने की राह में बाधक साबित हो सकता है।

गैर भाजपा दलों को एकजुट करने के विषय पर जदयू अध्यक्ष नीतीश ने शनिवार कहा था कि जब गैर भाजपाई दलों की एकजुटता और संघ मुक्त भारत के पक्षधर पार्टियों को एकजुट करने की बात करते हैं, तो उन्हें निशाना बनाया जाता है। वह नेतृत्व या सर्वोच्च पद (प्रधानमंत्री) की दावेदारी कहां कर रहे हैं। वह तो लोगों से सिर्फ एकजुट होने के लिए कह रहे हैं और इसके लिए कोशिश करते रहेंगे।

बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा है कि विलय को लेकर बहुत सारी बातें की जाती हैं। विलय, गठबंधन, तालमेल अथवा आपसी समझ जो कुछ भी संभव है वह हो, जितनी अधिक से अधिक संभावना है। एकजुटता का प्रयास किया जाना चाहिए और यह काम वह करते रहेंगे क्योंकि उनका इसमें कोई अपना स्वार्थ नहीं है।

नीतीश के बयान पर केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान ने कहा कि नीतीश पहले अपराध मुक्त बिहार का संकल्प पूरा करें, जो अपराध से भर गया है। प्रधानमंत्री का विषय जब आएगा तब लड़ लें, कौन रोकेगा। अभी अपनी सुशासन की छवि को बचा लें क्योंकि बिहार की जनता अपराध से परेशान है।