ओम प्रकाश ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में ‘मिशन रिपीट’ की मंशा पाले राष्ट्रीय और राज्य भाजपा के रास्ते में कांग्रेस और बिना कार्यकारिणी की पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) से तो चुनौती मिल ही रही है लेकिन 2017 में जय राम ठाकुर के मुख्यमंत्री के बनने के बाद भाजपा में पड़ी दरार सबसे बड़ी चुनौती है। वक्त बीतने के साथ-साथ यह दरार कम होने के बजाय और ज्यादा चौड़ी हुई है। जब से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह एलान किया है कि आगामी विधानसभा मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के चेहरे के साथ ही लड़े जाएंगे तब से भाजपा में खलबली मची हुई है।

उपचुनावों में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर और उनके साथ भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप का चेहरा बेअसर साबित हो चुका है। विधानसभा चुनावों का आगाज करने के बहाने नड्डा खुद शिमला व कांगड़ा में जनसभाएं कर आए लेकिन उनकी जनसभाओं में खाली कुर्सियों ने साफ कर दिया कि उनका प्रदेश में कितना जनाधार है। पार्टी के लोग ही कहते हैं कि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष की जनसभाओं में कुर्सियां खाली रह जाएं तो समझ लेना चाहिए कि जनता किस कदर नाराज है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक नड्डा के एलान के बाद से पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के खेमे के लोग सुप्तावस्था में चले गए हैं। उनके समर्थकों के राजनीतिक अस्तित्व का सवाल पैदा हो गया है। यही नहीं बीते दिनों शाहपुर में जय राम ठाकुर की एक जनसभा हुई, उसमें जब जयराम ठाकुर का भाषण चल रहा था तो महिलाएं उठ के चली गर्इं। शाहपुर से सरवीण चौधरी जय राम सरकार में एकमात्र महिला मंत्री हैं। जय राम ने उनको हाशिए पर धकेल रखा है। वह धूमल खेमे में मानी जाती हंै।

अब यह तय नहीं है कि यह महिलाओं को सच में जयराम का भाषण पसंद नहीं आया या इसके पीछे कोई और वजह रही थी। बहरहाल, हिमाचल से कांग्रेस के कभी बड़े नेता रहे मेजर विजय मनकोटिया एक अरसे भाजपा के करीबियों से संपर्क में हैं। वह आम आदमी पार्टी में जाने वाले थे लेकिन उन्होंने अपना कद इतना बड़ा बता दिया कि ‘आप’ में उनकी दाल ही नहीं गली। वह प्रधानमंत्री व गृह मंत्री अमित शाह के प्रशंसक नजर आ रहे हैं। वह कहते है कि नरेंद्र मोदी व अमित शाह ने प्रदेश की जय राम सरकार को केंद्र से बहुत ज्यादा पैसा दिया। लेकिन जय राम व उनकी मंडली ने उस पैसे का क्या किया यह पता नहीं है। याद रहे मनकोटिया धूमल के बेहद करीबी रहे थे।

जाहिर है मनकोटिया की भाजपा के साथ नजदीकियां सरवीण चौधरी के लिए खतरे की घंटी है। उपचुनावों में भाजपा के भीतर की गुटबाजी पहले ही बाहर आ चुकी है। जय राम खेमे व विरोधी खेमे ने एक दूसरे को चित करने का खेल जमकर खेला भी और व दोनों अपने खेल में कामयाब भी हुए हैं। इस खेल में आलाकमान ने जय राम का साथ दिया।

मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने विरोधी खेमे को उपचुनावों में प्रचार में कूदने नहीं दिया यानी भाजपा की अंदरूनी राजनीति से बाहर ही रखा और विरोधी खेमे ने जय राम ठाकुर खेमे से खड़े हुए चारों प्रत्याशियों को जीतने नहीं दिया व चार-शून्य कर दिया। पार्टी के भीतर की यह खेमेबंदी अब लगातार बढ़ रही है और समझा जा रहा है कि अब धूमल खेमे ने तय कर लिया है कि जब नड्डा ने एलान ही कर दिया है कि अगले चुनाव मुख्यमंत्री जय राम की कमान में लड़े जाएंगे तो अब नड्डा व जय राम की जोड़ी ही ‘रिपीट मिशन’ को अंजाम दें।

बहरहाल, जनसभाओं में कुर्सियां खाली रह जाना इसी तरह की राजनीति का हिस्सा मानी जा रही है। आगामी दिनों में इस खेमेबाजी के कई और स्वरूप सामने आने की संभावना है। उधर, माना जा रहा है कि धूमल ने भी अब सुजानपुर से विधानसभा चुनाव न लड़ने का मन बना लिया है। वह 2024 में अपने पुत्र अनुराग ठाकुर की जीत के लिए मैदान हरा रखना चाहते हैं व वह इसीलिए सक्रिय भी हैं।