लोकसभा चुनाव अगले साल के शुरू में होने हैं, लेकिन बिहार में माहौल अभी से चुनावी हो गया है। नीतीश सरकार ने जातीय गणना का पासा फेंक एनडीए खासकर भाजपा को दुविधा में फंसा दिया है। अभी हाल में पार्टी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले कैलाशपति मिश्र की सौवीं जयंती के मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना आए थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि बिहार में भाई से भाई को लड़ाने का खेल चल रहा है। सामाजिक न्याय का नारा लगाकर सत्ता में आए लोगों ने कुछ नहीं किया। वे तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे है।

नीतीश कुमार और लालू यादव की बैठक में सीटों के तालमेल पर हुई चर्चा

जातीय गणना का आंकड़ा सार्वजनिक होने के बाद हर पार्टी लोकसभा सीटों का गुणा-भाग अपने हिसाब से लगा रही है। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बीच तीन बार मुलाक़ात हो चुकी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों दलों के बीच बैठक में सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत हुई होगी।

17-17 सीटों पर लड़ सकती हैं राजद और जदयू

नीतीश कुमार भाजपा से अलग होकर राजद से हाथ मिलाए तो मंत्रिमंडल में वही विभाग राजद मंत्रियों को दिए जो भाजपा के पास थे। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। माना जा रहा है कि दोनों दल 17-17 लोकसभा की सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। छह सीटें कांग्रेस को मिलेगी। दूसरे छोटे दलों को भी अपने कोटे में से ही सीट दिये जाएंगे।

भागलपुर संसदीय सीट पर जदयू का दावा बनता है। फिलहाल सांसद अजय मंडल जदयू के ही हैं। इस बार राजद या जदयू का कोई भी उम्मीदवार आएगा तो वह गंगोता जाति का ही होगा। 2014 के संसदीय चुनाव में राजद के शैलेश कुमार उर्फ वुलो मंडल भाजपा के शाहनवाज हुसैन को पराजित कर जीते थे। 2019 चुनाव में भाजपा ने शाहनवाज को टिकट नहीं दिया। बल्कि यह सीट जदयू से तालमेल में उसे चली गई। अजय मंडल जदयू प्रत्याशी बने। ये भी गंगोता समाज से ही आते है। इनके मुकाबले राजद के वुलो मंडल थे। दो गंगोता की लड़ाई में जीत अजय मंडल की हुई। वे पौने तीन लाख से भी ज्यादा वोटों से जीते थे। 2014 का चुनाव वुलो मंडल केवल 9485 मतों से ही जीते थे।

भागलपुर संसदीय सीट पर जिताऊ और गंगोता जाति के उम्मीदवार की तलाश

इस बार भाजपा अलग है। भागलपुर संसदीय सीट पर उसे भी जिताऊ और गंगोता जाति के उम्मीदवार की तलाश है। जानकर बताते है कि डॉ. रतन मंडल को निकट भविष्य में भाजपा की सदस्यता दिलाने का जुगाड़ बैठाया जा रहा है। इनके नजदीकी सुधीर मंडल ने जनसत्ता संवाददाता को बताया कि गोड्डा संसदीय क्षेत्र के सांसद निशिकांत दुबे के जरिए सब कुछ तय हो चुका है। निशिकांत भागलपुर जिले के भवानीपुर के रहने वाले है। डॉ. रतन मंडल फिलहाल दिल्ली में है। सोशल मीडिया फेसबुक पर इनकी फोटो निशिकांत दुबे के साथ वायरल हुई है। डॉ. रतन मंडल भागलपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के व्याख्याता है और पहले जदयू में थे। जदयू में रहते इनको मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया था। बाद में उन्होंने जदयू छोड़कर वंचित समाज पार्टी का गठन किये थे और फिलहाल उसी के अध्यक्ष हैं।

असल में भागलपुर संसदीय क्षेत्र में डेढ़ लाख करीब गंगोता जाति के मतदाता है। हरेक पार्टी इस एक मुश्त वोट को हासिल करना चाहती है। और यह तय है कि राजद-जदयू-कांग्रेस का एक ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरेगा। इसी के लिए अभी से राजनीतिक विसात बिछाई जाने लगी है। गंगोता जाति के एक उम्मीदवार नरेंद्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल भी उछलकूद कर अपने को सामने लाने की कोशिश में है। ये जिले की गोपालपुर विधानसभा सीट से चार बार से जदयू टिकट पर विधायक है। लेकिन बड़बोलेपन और बेजा हरकतों से ये हमेशा चर्चा में रहे है।

भागलपुर संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि कांग्रेस आठ दफा इस सीट से लड़ी और छह दफा जीती। इनके उम्मीदवार एक दफा बनारसी झुनझुनवाला थे। बाकी पांच बार भागवतझा आजाद थे। ये केंद्र में मंत्री और बाद में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। भाजपा सात बार लड़ी और चार दफा जीती। इनमें प्रभासचंद्र तिवारी, सुशील मोदी, और दो दफा शाहनबाज हुसैन थे। सीपीएम छह बार चुनाव लड़ी। मगर सफलता सिर्फ एक दफा हाथ लगी।

1999 के चुनाव में सीपीएम के सुबोध राय को विजयश्री मिली थी। इन्होंने भाजपा के प्रभाषचंद्र तिवारी को पराजित किया था। वहीं जनता दल और राजद आठ बार अपनी किस्मत आजमाई। मगर कामयाबी चार दफा ही मिली। इसमें तीन दफा चुनचुन यादव और एक बार शैलेश कुमार उर्फ वुलो मंडल की किस्मत चमकी। एक दफा 1977 में जनता पार्टी के डॉ. रामजी सिंह और एक बार 2019 में जदयू के अजय मंडल को जीत हासिल हुई है। राजद की टिकट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के पिताश्री शकुनि चौधरी दो बार चुनाव लड़े। लेकिन सफलता नहीं मिली।

मसलन भागलपुर सीट का संसद में ब्राह्मण, वैश्य, भूमिहार, मुसलमान, कुर्मी, और गंगोता जाति के लोग प्रतिनिधित्व कर चुके है। लेकिन अब 2014 से सभी दलों की राजनीति गंगोता जाति के इर्द-गिर्द घूम रही है। इस बात में दम इसलिए भी नजर आ रहा है कि 2024 संसदीय चुनाव में भी उम्मीदवार खोजने की कवायद इसी जाति से हो रही है।