बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव को लेकर ऐलान होने वाला है। चुनाव आयोग जल्द ही तारीखों का ऐलान कर सकता है। सभी दल चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। इस बीच पूर्वी चंपारण जिले की सुगौली विधानसभा सीट चर्चा में है। यह सीट बीजेपी का गढ़ हुआ करती थी लेकिन 2020 में पार्टी से गलती हुई और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी ने इस पर जीत हासिल कर ली।

बीजेपी की क्या ‘गलती’ थी?

2005 के विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 तक, इस सीट पर बीजेपी का विधायक था। लेकिन 2020 में आरजेडी के उम्मीदवार ने इस सीट को छीन लिया। दरअसल बीजेपी की ‘गलती’ यह थी कि 2020 में उसने अपनी सीट विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को दे दिया। बीजेपी के रामचंद्र सहनी 2005 से ही इस सीट पर विधायक बनते आ रहे थे।

2015 में जब जेडीयू और आरजेडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, तब भी बीजेपी ने इस सीट पर बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में VIP एनडीए में थी और गठबंधन के तहत यह सीट उसको दे दी गई। हालांकि उम्मीदवार रामचंद्र सहनी ही थे। जैसे ही सीट वीआईपी के खाते में गई, यहां पर चिराग पासवान ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया।

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चिराग बने थे X फैक्टर

दरअसल चिराग ने बीजेपी को छोड़कर एनडीए के बाकी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे। आरजेडी के उम्मीदवार शशि भूषण सिंह को 2020 में 65,267 वोट मिले थे जबकि वीआईपी के रामचंद्र सहनी को 61,820 वोट मिले थे। वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के विजय प्रसाद गुप्ता को 14,188 वोट मिले थे। इस प्रकार 3,447 वोट से आरजेडी ने सीट पर जीत हासिल की थी। अगर यहां पर बीजेपी का उम्मीदवार होता तो लोजपा अपने उम्मीदवार को भी ना उतरती और बीजेपी बड़ी जीत हासिल कर सकती थी।

क्या है जातीय समीकरण?

अगर हम सुगौली विधानसभा सीट के जातीय समीकरण का जिक्र करें, तो यहां पर मुस्लिम, यादव और मल्लाह मतदाताओं का दबदबा है। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 22 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं जबकि 15 फ़ीसदी यादव मतदाता भी है। वहीं करीब 10- 10 फीसदी ब्राह्मण – राजपूत और 12 फ़ीसदी मल्लाह मतदाता हैं।

क्या हैं मुद्दे?

अगर हम सुगौली विधानसभा क्षेत्र के मुद्दों की बात करें तो यह ग्रामीण क्षेत्र है और यहां पर बाढ़ के कारण हजारों की संख्या में लोग पीड़ित हैं। यहां पर बूढ़ी गंडक, सिकरहना जैसी नदियां हैं, जिसके कारण बाढ़ आती है। बाढ़ के कारण हजारों लोगों को हर साल विस्थापित होना पड़ता है और उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। सिकरहना नदी के किनारे बांध बनाने का काम तो शुरू हो गया है लेकिन वह अब तक पूरा नहीं हो पाया है। हालांकि क्षेत्र में 2005 के बाद सड़कों का निर्माण हुआ है और गांव को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ा गया है।