Bihar Politics: बिहार SIR की प्रक्रिया के पहले एसआईआर यानी वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण किया गया। इस प्रक्रिया के दौरान पश्चिम बंगाल और नेपाल के साथ सीमा साझा करने वाले बिहार के जिले किशनगंज में, 2 संदिग्ध गैर-नागरिक सामने आए थे। इसके आधार पर चुनाव आयोग ने आवेदकों की दो आपत्तियां दर्ज की थीं।

हालांकि, राज्य के मुख्य निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से पता चलता है कि उन दो नामों को भी वोटर लिस्ट में जगह मिल गई है। 30 सितंबर को प्रकाशित अंतिम मतदाता सूची से पता चलता है कि निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) ने आपत्तियों को खारिज कर दिया क्योंकि एक ही मतदान केंद्र के एक पुरुष और एक महिला मतदाता दोनों का नाम मतदाता सूची में शामिल था।

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ड्राफ्ट में कटे थे 65 लाख नाम

बता दें कि इस साल 24 जून को चुनाव आयोग के आदेश के साथ शुरू की गई एसआईआर में मतदाता सूची को नए सिरे से तैयार करना शामिल था। बिहार के सभी पंजीकृत 7.89 करोड़ मतदाताओं को ड्राफ्ट रोल में शामिल होने के लिए 25 जुलाई तक फॉर्म जमा करने थे। 1 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट रोल में 7.24 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा मृत, अनुपस्थित, स्थायी रूप से स्थानांतरित या पहले से ही कहीं और नामांकित होने के कारण हटा दिए गए थे।

कैसे हटता है वोटर लिस्ट से नाम

इसके बाद चुनाव आयोग ने दावे और आपत्तियां दाखिल करने के लिए एक महीने का समय दिया। इसी अवधि में किशनगंज में भी आपत्तियां दाखिल की गईं। किशनगंज मुस्लिम बहुल जिला माना जाता है। मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के अनुसार, किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र का कोई भी मतदाता अपना या किसी अन्य मतदाता का नाम हटाने के लिए फॉर्म-7 भर सकता है।

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आवेदक को ड्राफ्ट रोल में नाम पर आपत्ति जताने के लिए एक कारण चुनना था। “मृत्यु”, “अल्पवयस्क”, “अनुपस्थित/स्थायी रूप से स्थानांतरित”, “पहले से नामांकित”, या “भारतीय नागरिक नहीं… इसके बाद, ईआरओ जांच करता है और आपत्ति किए गए व्यक्ति को सुनवाई के लिए बुलाता है फिर उसका आदेश लागू किया जाता है।

केवल दो नागरिकों के लिए कही गई ‘गैर नागरिक’ होने की बात

किशनगंज में दायर नाम हटाने के आवेदनों के आंकड़ों से पता चला कि कुल 1,905 ऐसे नाम हटाने के फॉर्म दायर किए गए थे, जिनमें से केवल दो को गैर नागरिक होने के आधार पर हटाने का आवेदन हुआ था। ज़्यादातर आवेदन “स्थायी रूप से स्थानांतरित” (830), उसके बाद “पहले से नामांकित” (489), “अनुपस्थित” (403), और “मृत्यु” (181) के आधार पर दायर किए गए थे।

किशनगंज जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में से तीन यानी बहादुरगंज, ठाकुरगंज और कोचाधामन, में संदिग्ध गैर-नागरिकता के आधार पर कोई आपत्ति नहीं थी। किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में नागरिकता के आधार पर दो आपत्तियां थीं। दोनों मतदाता हिंदू नामों के साथ, एक ही मतदान केंद्र के थे। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ने खुद पर आपत्ति जताई थी क्योंकि सीईओ की रिपोर्ट में उनके नाम “आपत्तिकर्ता” के साथ-साथ “आपत्तिग्रस्त” के रूप में भी सूचीबद्ध थे।

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बीजेपी ने खूब उठाया था घुसपैठियों का मुद्दा

हालांकि, ये आपत्तियां खारिज हो गई और उन्हें अंतिम मतदाता सूची में जगह मिली। पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल और वहां से बिहार और झारखंड में कथित घुसपैठ को बीजेपी ने खूब मुद्दा बनाया था। एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव आयोग के एसआईआर का बचाव करते हुए कहा कि देश में मुस्लिम आबादी घुसपैठ के कारण बढ़ी है। 15 सितंबर को बिहार में पूर्णिया हवाई अड्डे के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि घुसपैठियों को जाना ही होगा। बीजेपी ने पिछले साल झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा उठाया था।

कांग्रेस ने खारिज किए बीजेपी के आरोप

किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने बीजेपी के आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मेरा सीधा सा सवाल है कि उन्हें चुनाव के समय ही यह बात क्यों याद आती है? सच तो यह है कि पिछले साल से पहले बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय 2,700 डॉलर थी और हमारे पूर्वी बिहार वाले हिस्से में यह 250 डॉलर है। जब हमें अपने परिवारों का पेट पालने के लिए काम की तलाश में सियाचिन से लेकर केरल तक, देश के हर हिस्से में जाने को मजबूर होना पड़ता है, तो क्या आपको लगता है कि कोई यहा आना चाहेगा?

स्थानीय नेता ने कही घुसपैठ की बात

किशनगंज में बीजेपी के ज़िला अध्यक्ष गोपाल मोहन सिंह ने कहा कि मतदाता सूची को साफ़ करने, खासकर मृत लोगों के नाम हटाने के लिए एसआईआर ज़रूरी है। सिंह ने कहा कि मुझे नहीं पता कि कितने गैर-नागरिक पाए गए, क्योंकि यह तो अधिकारियों को ही पता है। लेकिन पिछले 10 सालों में उनकी आबादी बढ़ी है। मेरे गांव में जो सीमा से 60-70 किलोमीटर दूर है, वहां पहले फ़सलें उगती थीं, अब पूरे गांव बस गए हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली हमारी डबल इंजन सरकार कोशिश कर रही है, लेकिन बंगाल सरकार इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही है। यह सब उनके वोट बैंक के लिए है।