Bihar Lok Sabha Chunav: लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आने के बाद अब एनालिसिस का दौर जारी है। एनालिसिस इस बात का किस पार्टी को किस राज्य में कितने प्रतिशत वोट मिले। पार्टियों का कैसा प्रदर्शन रहा। ऐसे में हम अगर बिहार राज्य की बात करें तो एनडीए ने बिहार में उत्तर प्रदेश की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। यहां एनडीए ने 40 में से 31 सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन इसके वोट शेयर में काफी गिरावट आई है। साथ ही इसके उम्मीदवारों की जीत का अंतर भी काफी कम हो गया है।

इसके अलावा, जबकि बिहार में जेडी(यू) ने भाजपा की तुलना में बेहतर स्ट्राइक रेट दर्ज किया। इसने अपनी 16 सीटों में से केवल चार खोईं, जबकि भाजपा ने 17 में से पांच सीटें गंवाई, लेकिन इसके वोट शेयर बीजेपी की तुलना में ज्यादा घट गया, लेकिन उसके बाद भी जेडीयू किंगमेकर की भूमिका भी उभर कर सामने आई हैं।

इसके विपरीत, पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के जोशीले अभियान के बावजूद सिर्फ तीन सीटें जीतने वाली आरजेडी ने 2019 की तुलना में अपने वोट शेयर में 6% से अधिक की वृद्धि की है।

ये रुझान बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों में आने वाली चीजों का संकेत हो सकते हैं, जहां एनडीए के भीतर जेडी(यू) की नई अहमियत को जमीनी स्तर पर इसकी लोकप्रियता के खिलाफ परखा जा सकता है। जातिगत सीमाओं से परे जमीनी स्तर पर आवाजें बताती हैं कि नीतीश को राज्य में पहले जैसी लोकप्रियता नहीं मिली है और मतदाता 2025 में विकल्प तलाश सकते हैं।

2019 में भाजपा-जद(यू)-लोजपा गठबंधन ने 2 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से 25 सीटें जीती थीं। इनमें से एनडीए ने 13 सीटों पर 3 लाख या उससे ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की थी। इस साल, उन्होंने सिर्फ़ दो सीटों – अररिया और मुज़फ़्फ़रपुर पर 2 लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की।

सबसे कम अंतर से जीत सारण में दर्ज की गई, जहां भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य को 13,600 से कुछ ज़्यादा वोटों से हराया। सबसे ज़्यादा अंतर से जीत मुज़फ़्फ़रपुर में दर्ज की गई, जहां भाजपा के राज भूषण चौधरी ने कांग्रेस के अजय निषाद को लगभग 2.35 लाख वोटों से हराया।

अंतर में महत्वपूर्ण गिरावट पार्टियों के वोट शेयर में भी दिखी। भाजपा को 20.5% वोट शेयर मिला, जो 2019 से 3.5% कम है। जेडी(यू) के वोट शेयर में 3.75% की गिरावट आई, जो इस बार करीब 18.52% रहा।

लोजपा, जिसने एक सीट कम पर चुनाव लड़ा, लेकिन अपने सभी पांच निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की, उसके वोट शेयर में भी गिरावट देखी गई, लेकिन एक छोटी सी गिरावट के साथ – 2019 में 8% से अब 6.5% तक।

दूसरी ओर 2019 में करीब 15.7% वोट पाने वाली आरजेडी ने अपने वोट शेयर में सुधार करते हुए 22.14% वोट हासिल किए हैं, जो वोट शेयर के मामले में बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और सीटों में शून्य से चार पर पहुंच गई है। दरअसल, आरजेडी के वोट शेयर में सुधार बीजेपी और जेडी(यू) द्वारा दर्ज की गई गिरावट के करीब था।

कांग्रेस, जिसने 2019 की तरह राजद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। उसने भी अपने वोट शेयर में मामूली सुधार किया, जो 2019 में 7.9% से बढ़कर अब 9.2% हो गया।

राज्य में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘भाजपा और जेडी(यू) के स्ट्राइक रेट में अंतर राज्य में दोनों पार्टियों की लोकप्रियता पर कोई बयान नहीं है। हम जेडी(यू) की तुलना में कहीं ज़्यादा वोट शेयर हासिल करते हैं। हां, हमारे उम्मीदवारों का चयन ठीक नहीं था, जिसकी वजह से हमें कुछ सीटें गंवानी पड़ीं।”

नेता के अनुसार, जेडी(यू) को गठबंधन से ज़्यादा फ़ायदा हुआ, क्योंकि पीएम मोदी के नाम ने इसे “सत्ता विरोधी लहर” में मदद की। वो कहते हैं कि असली फ़र्क यह था कि विपक्ष ने कई गैर-यादव ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देकर अच्छी लड़ाई लड़ी, जिससे हमारी चुनावी गणनाएं गड़बड़ा गईं।

हालांकि, जेडी(यू) के एक नेता ने जोर देकर कहा कि नतीजे महिलाओं और गरीबों के लिए नीतीश सरकार की योजनाओं की स्थायी लोकप्रियता का सबूत हैं। नेता ने कहा, ‘इस जीत ने यह भी रेखांकित किया कि एनडीए के भीतर नीतीश कुमार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 2025 के चुनाव अभी बहुत दूर हैं, और राजनीतिक गठबंधन 2020 जैसे नहीं हैं।’

2020 के विधानसभा चुनावों में जेडी(यू) 2015 में 70 से ज़्यादा सीटों से गिरकर 43 सीटों पर आ गई थी। इससे वह आरजेडी (चुनाव नतीजों के बाद पहले स्थान पर) और बीजेपी दोनों से बहुत पीछे रह गई। जेडी(यू) नेताओं ने उस समय एनडीए के भीतर से “तोड़फोड़” को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसमें एलजेपी (जो बिहार में अलग से लड़ी थी) ने जेडी(यू) के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ़ अपने उम्मीदवार उतारे थे।