Bihar Elections: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे NDA के घटक दल अब दबाव की रणनीति अपना रहे हैं। राज्य में अधिक से अधिक सीट हासिल करने के लिए शक्ति प्रदर्शन की राजनीति आरंभ हो गई है। शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से घटक दल यह बताने की कोशिश में हैं कि उनके पास व्यापक जनसमर्थन है और उन्हें ज्यादा सीट चाहिए। बिहार में जदयू प्रमुख नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चल रही है। वहां राजग के घटक दलों में भाजपा और जदयू के अलावा केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोजपा (रा), केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की हम पार्टी और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो है।

भाजपा और जदयू बिहार में एनडीए के मुख्य सूत्रधार हैं, इसलिए इनमें ज्यादा सीट पाने की होड़ कम है। इन दलों के नेता जानते हैं कि इन्हें तो मनमाफिक सीटें मिलेंगी ही। लेकिन अन्य घटक दलों की बयानबाजी यह बता रही है कि ज्यादा सीट के लिए वे भाजपा-जदयू पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

चिराग पासवान और मांझी केंद्र में हैं मंत्री

सबसे पहले बात लोजपा (रा) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की। बीते दिनों आरा में एक सभा के माध्यम से चिराग पासवान ने यह बताने की कोशिश की कि उनमें बहुत दम है। कार्यक्रम में आई भीड़ से उत्साहित चिराग के दिल की बात जुबां पर आ गई और उन्होंने कह दिया कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। साथ में यह भी जोड़ा कि एनडीए की मजबूती के लिए उन्होंने यह फैसला लिया है। यहां ‘राजग की मजबूती’ वाली बात त्रुटि सुधार जैसी प्रतीत हुई। खैर, अपने पांच सांसदों की बदौलत चिराग के हौसले चरम पर हैं और मनमुताबिक सीट पाने के लिए दबाव की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि चिराग राज्य में बड़ा खेल खेलने की तैयारी कर रहे हैं।

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कमोबेश यही स्थिति हम पार्टी के प्रमुख और केंद्रीय मंंत्री जीतनराम मांझी की भी है। राज्य में महादलित मतदाताओं की संख्या के बल पर मांझी की चाह है कि उनकी पार्टी भी कम से कम 30 सीट पर चुनाव लड़े। उन्होंने कई बार कहा है कि महादलित बिरादरी के कल्याण के लिए विधानसभा में उनके 20 विधायक जरूरी हैं। बीस विधायक सदन में पहुंचें, इसके लिए 30-35 सीटों पर लड़ना होगा। उनकी पार्टी के कई नेता इशारा कर चुके हैं कि सीटों के बंटवारे के दौरान 30-35 की मांग की जाएगी। इस तरह की बात कहने का उनका आशय भी दबाव की रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि बिहार से अपनी पार्टी के वे अकेले सांसद हैं और केंद्र में मंत्री हैं। उनके पुत्र संतोष सुमन बिहार सरकार में मंत्री हैं।

एक भी सीट नहीं होने के बावजूद उपेंद्र कुशवाहा बना रहे दबाव

अब बात रालोमो प्रमुख और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा की। रालोमो राजग की घटक है, लेकिन न तो उसके विधानसभा में कोई सदस्य है और न ही लोकसभा में। कुशवाहा खुद राज्यसभा में हैं। कोइरी (कुशवाहा) बिरादरी में उपेंद्र कुशवाहा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। हालांकि उन्होंने कभी नहीं कहा है कि उनकी पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन वे भी दबाव की राजनीति में पीछे नहीं हैं। माना जा रहा है कि किसी खास रणनीति के तहत ही उन्होंने मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम किया और भारी संख्या में कलवार (जायसवाल) बिरादरी के लोगों को रालोमो की सदस्यता दिलाई। माना जा रहा है कि यदि कलवार और कुशवाहा साथ मिल जाएं तो ताकत बढ़ सकती है। यही संदेश एनडीए में रालोमो भी देना चाहती है।

बिहार की कुल 243 सीट में से भाजपा और जदयू तो कम से कम सौ-सौ सीट पर तो लड़ेंगे ही। बची 43 सीट। इसमें से ही चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को मिलना है। ऐसे में ज्यादा सीट पाने की सबकी मनोकामना पूरी होगी, यह कहना मुश्किल है।