बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होगी। 14 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे। चुनाव प्रचार के दौरान महागठबंधन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर निशाना साध रहा है। इस बीच जेडीयू के वरिष्ठ नेता और सलाहकार के.सी. त्यागी ने द इंडियन एक्सप्रेस से नीतीश के स्वास्थ्य, आरजेडी के तेजस्वी यादव के प्रतिद्वंदी के रूप में उभरने, जन सुराज पार्टी और प्रशांत किशोर के उदय, और अन्य विषयों पर बातचीत की।

सवाल- एनडीए सरकार ने 1.41 करोड़ भावी महिला उद्यमियों को 125 मेगावाट मुफ्त बिजली और 10,000 रुपये प्रति व्यक्ति जैसे मुफ्त उपहारों का सहारा क्यों लिया?

जवाब- मैं इन्हें मुफ्त उपहार नहीं कहूंगा। यह महिलाओं को स्वरोज़गार के रास्ते तलाशने में मदद करने का एक तरीका है। नीतीश ने गैर-चुनावी समय में भी ऐसी कई पहल की हैं। जब नीतीश ने 2007 में लड़कियों के लिए साइकिल योजना शुरू की थी, तब कोई चुनाव नहीं था। उन्होंने गैर-चुनावी वर्षों में पंचायत (2006) में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण और बिहार सरकार की नौकरियों (2016) में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। महिला-केंद्रित योजनाओं के साथ नीतीश ने जाति, धर्म और लिंग की सीमाओं को धुंधला कर दिया।

सवाल- लेकिन 2010 और 2020 के चुनावों के विपरीत इस बार नीतीश कुमार को एनडीए के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि एनडीए नेता चुनाव के बाद मिलकर मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे , इसपर क्या कहेंगे?

जवाब- अगर हमारा विपक्ष महाराष्ट्र में हुई घटना की ओर इशारा कर रहा है, तो हम यह स्पष्ट कर दें कि नीतीश कुमार एकनाथ शिंदे नहीं हैं, न ही उन्हें कोई ऐसा बना सकता है। नीतीश कुमार अपने आप में एक बड़े नेता रहे हैं। वे लगभग 20 वर्षों से मुख्यमंत्री हैं, चाहे उन्होंने किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने का फैसला किया हो। मैं अमित शाह के बयानों का भी ज़्यादा मतलब नहीं निकाल रहा हूं क्योंकि एनडीए के एक दर्जन से ज़्यादा नेताओं, (जिनमें कुछ भाजपा नेता भी शामिल हैं) ने चुनाव के बाद नीतीश को मुख्यमंत्री पद के लिए समर्थन दिया है। आप लड़ाई के बीच में अपना कप्तान नहीं बदलते।

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सवाल- आप तेजस्वी प्रसाद यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने और हर परिवार को एक नौकरी देने की उनकी पेशकश को कैसे देखते हैं?

जवाब- मैं पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी तेजस्वी के इस बयान से बहुत खुश नहीं हैं। इसने आरजेडी को उनके इंद्रधनुषी गठबंधन के विचार की कीमत पर बहुत ज़्यादा महत्व दे दिया है। हम तेजस्वी की जवाबी खैरात की राजनीति को भी ज़्यादा नहीं समझते क्योंकि 2.5 करोड़ लोगों को 30,000 रुपये मासिक वेतन देने का मतलब होगा 9 लाख करोड़ रुपये का सालाना खर्च, जबकि राज्य का बजट 3.25 लाख करोड़ रुपये से भी कम है। हम कांग्रेस की नई पिछड़ी और दलित राजनीति से भी सहमत नहीं हैं। कांग्रेस अपने सहयोगियों की कीमत पर खुद को नया रूप देना चाहती है।

सवाल- नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर काफ़ी चर्चा हो रही है। साथ ही आप उन्हें चार कार्यकालों की सत्ता विरोधी लहर से कैसे लड़ते हुए देखते हैं?

जवाब- तेजस्वी प्रसाद यादव द्वारा इस तरह के आरोप लगाना उन्हें शोभा नहीं देता। उन्होंने नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में कुछ नहीं कहा, जबकि वे अगस्त 2022 से जनवरी 2024 तक नीतीश के अधीन उपमुख्यमंत्री थे। वास्तव में, नीतीश कुमार का स्वास्थ्य लालू प्रसाद से कहीं बेहतर है। मैं कुछ अन्य विपक्षी नेताओं के बारे में भी बहुत कुछ कह सकता हूं। नीतीश कुमार के साथ मेरी व्यक्तिगत बातचीत और बातचीत से मैंने जो जाना है, वह यह है कि वे अभी भी मानसिक रूप से बहुत सतर्क हैं। उन्हें चलने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। वे इस चुनाव में हमारे स्टार प्रचारक रहे हैं। नीतीश अभी भी बिहार के सबसे राजनीतिक रूप से आकर्षक और विश्वसनीय राजनेता हैं।

सवाल- फिर भी ज़्यादातर एनडीए नेता जंगल राज का ज़िक्र क्यों करते हैं? क्या आपके पास कहने के लिए कुछ नया नहीं है?

जवाब- हमें तुलना करने के लिए कुछ चाहिए। हमें लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के शासनकाल की तुलना नीतीश शासन से करनी होगी। हमें बूथ कैप्चरिंग, फिरौती के लिए अपहरण, सड़क डकैती और जातीय नरसंहारों की श्रृंखला पर बात करनी होगी। इसकी तुलना में नीतीश ने पटना को गंगा पथ पर अपना मरीन ड्राइव और विकास के कई मील के पत्थर दिए हैं।

सवाल- क्या लालू और नीतीश ‘दो असली समाजवादियों’ के फिर से साथ आने की कोई संभावना है?

जवाब- कोई संभावना नहीं। हमने इंडिया ब्लॉक को एक मौका दिया था। वह नीतीश कुमार की कद्र नहीं कर पाई। कांग्रेस अपने अहंकार से उबर नहीं पाई है और यादों के सहारे अपनी राजनीति करती रही है। वे अभी भी हक़दारी की भावना से ग्रस्त हैं। हमें एनडीए का हिस्सा होने पर खुशी और गर्व है, जो ज़्यादा उदार और सम्मानजनक रहा है।