कोरोनावायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप के बाद अपने राज्य वापस लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को घर पर भी रोजगार और पैसे की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बिहार की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। लॉकडाउन की वजह से अलग-अलग राज्यों से अपना काम छोड़कर लौटे प्रवासियों को यहां भी काम नहीं मिल रहा है। यानी जिस वजह से कभी उन्होंने बिहार को छोड़ा था, आज भी वही समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। ऐसे में ज्यादातर प्रवासी अब रोजगार के लिए दोबारा बिहार छोड़कर बाहर जाने की तैयारी कर रहे हैं।
बिहार के भागलपुर जिले का हाल तो सबसे बुरा है। यहां अब तक 63 हजार 962 प्रवासी मजदूर आ चुके हैं। लेकिन बढ़ते कोरोना केसों और मौजूदा समय में सरकार की रोजगार पैदा कर पाने की अक्षमता की वजह से किसी के पास कोई काम ही नहीं है। इसके अलावा अधिकारियों का ध्यान भी इस जिले से हट चुका है। भुलनी पंचयात के मेहेसेलती गांव के लोगों का कहना है कि कोई भी मास्क नहीं पहनता और सोशल डिस्टेंसिंग हवा हो चुकी है। वह भी तब जब भागलपुर में कोरोना के केस तेजी से बढ़े हैं और पटना (557 केस) के बाद यह जिला संक्रमण के मामलों में दूसरे नंबर पर है। लेकिन यहां कोरोना से ज्यादा डर लोगों में भूख का है।
गांव के ही रहने वाले राकेश रंजन सिंह बताते हैं कि उन्होंने 2004 में किशोरावस्था के दौरान ही गांव छोड़ दिया था। वे आंध्र प्रदेश के कुरनूल में 400 रुपए प्रतिदिन की दर से दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उन्होंने बताया कि वे ट्रेन से लौटे और अफसरों ने उन्हें बताया कि बिहार में रोजगार मिलेगा। उन्होंने रेलवे स्टेशन से लेकर क्वारैंटाइन सेंटर पर भी नाम लिखा लेकिन अब तक काम नहीं दिया गया है।
गांव के एक व्यक्ति के मुताबिक, अभी के लिए सरकार ने ब्याज रहित कर्ज की सुविधा मुहैया कराई है। लेकिन अगर घर पर कोई स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या या कुछ और हो गया तो पैसा कहां से आएगा। महाजन हमें 5% प्रतिमाह की दर से पैसा देते हैं। इसमें तो कोई बच ही नहीं पाता। ऐसे में हमें नौकरी के लिए वापस जाना पड़ेगा, क्योंकि कमाई भी जरूरी है। राकेश रंजन के मुताबिक, वे लोग कुछ दिनों तक खेती के लिए रुकेंगे। कुछ अन्य लोग छठ पूजा या चुनाव तक रुक सकते हैं। लेकिन इसके बाद लोगों का वापस लौटना होगा।