Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाला है। सभी सियासी दल जोर-शोर से प्रचार अभियान में लगे हुए हैं। वहीं, राज्य में हुए पिछले पांच विधानसभा चुनावों के विश्लेषण से पता चलता है कि बिहार में पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाएं वोटिंग के लिए आ रही हैं, फिर भी चुनावों के साथ-साथ विधानसभा में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है।

फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनावों में 234 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, इनमें से 24 विधानसभा पहुंचीं। राज्य में कुछ महीने बाद अक्टूबर में चुनाव हुए, लेकिन केवल 138 महिलाएं ही मैदान में थीं। उस चुनाव में 25 महिलाएं विधानसभा पहुंचीं। वहीं साल 2010 में सदन में महिलाओं की संख्या बढ़कर 34 हो गई। इसमें 307 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 22 जेडीयू विधायक थीं, जबकि 11 बीजेपी से थीं। विधानसभा में एक निर्दलीय महिला विधायक भी थीं।

2015 में चुनाव लड़ने और जीतने वाली महिलाओं की संख्या में गिरावट

साल 2015 में राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने और जीतने वाली महिलाओं की संख्या में गिरावट देखी गई। 273 महिलाएं मैदान में उतरीं, लेकिन केवल 28 ही जीत पाईं। इनमें से ज्यादातर जेडीयू और आरजेडी की थीं, जिन्होंने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। दोनों पार्टियों ने 10-10 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। आरजेडी की सभी महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, जबकि जेडीयू की नौ महिला विधायक चुनी गईं। भाजपा द्वारा उतारी गई 14 महिलाओं में से चार ने चुनाव जीता। कांग्रेस ने भी शानदार प्रदर्शन किया और उसकी पांच में से चार महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की।

2020 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हुआ

2020 के विधानसभा चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम हुआ और 370 महिला उम्मीदवारों में से केवल 26 ही सदन में पहुंच पाईं। भारतीय जनता पार्टी ने 13 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जबकि उसकी सहयोगी जेडीयू ने 22 महिलाओं को टिकट दिया। बीजेपी की नौ और जेडीयू की छह महिला उम्मीदवारों ने जीत का स्वाद चखा। उस समय एनडीए की सहयोगी मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी की एकमात्र महिला उम्मीदवार ने चुनाव जीता और जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा की एक महिला उम्मीदवार भी चुनाव जीतीं।

विपक्षी महागठबंधन की तरफ से आरजेडी ने 16 और कांग्रेस पार्टी ने सात महिला उम्मीदवारों को चुनावी दंगल में उतारा था। आरजेडी के सात उम्मीदवार जीते, जबकि कांग्रेस की दो महिला कैंडिडेट ही विधानसभा पहुंचीं। अन्य महिला उम्मीदवार की बात करें तो लोक जनशक्ति पार्टी की 22, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की 10, बहुजन समाज पार्टी की सात और एआईएमआईएम और जेएमएम की तीन-तीन महिला उम्मीदवार चुनाव हार गईं।

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आगामी विधानसभा चुनाव और प्रमुख पार्टियां

अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एनडीए ने 34 महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि महागठबंधन ने 30 महिलाओं को टिकट दिया है। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड दोनों ने 13-13 महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि चिराग की लोजपा (R) ने पांच महिलाओं को टिकट दिया है। हम ने दो और आरएलएम ने एक महिला को मैदान में उतारा है।

आरजेडी ने 24 महिलाओं को टिकट दिया है, लेकिन कैमूर जिले के मोहनिया से श्वेता सुमन का नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया। कांग्रेस ने पांच महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि भाकपा (माले) लिबरेशन और वीआईपी ने एक-एक महिला को उम्मीदवार बनाया है। 130 सीटों पर चुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी ने 26 महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि जन सुराज ने 25 महिलाओं को मैदान में उतारा है।

बोधगया स्थित मगध यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट की हेड डॉ. निर्मला कुमारी ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को टिकट देने में आनाकानी करना विधानसभा में उनके कम प्रतिनिधित्व का एक प्रमुख कारण है। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “पार्टियों के पास वुमेन विंग्स और महिला नेता हैं जो जमीनी स्तर पर कड़ी मेहनत करती हैं। लेकिन उन्हें टिकट देने के बजाय, वे दलबदलुओं और बाहरी लोगों को टिकट देना पसंद करती हैं। आने वाले चुनावों में भी ज्यादातर महिला उम्मीदवारों को इसलिए टिकट दिया गया है क्योंकि वे मौजूदा विधायक हैं।”

महिला वोटर्स क्यों जरूरी हैं?

पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो महिला वोटर्स का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले ज्यादा रहा है। साल 2020 के चुनाव में 59.69% महिला वोटर्स ने वोटिंग की, जबकि केवल 54.45% पुरुषों ने मतदान किया। 2015 में यह अंतर और भी ज्यादा रहा था, जब महिला वोटर्स ने 60.48% मतदान किया, जबकि पुरुषों ने 53.32% मतदान किया था। 2010 में 54.49% महिलाओं ने मतदान किया, जबकि पुरुषों ने 51.12% मतदान किया था।

ज्यादा संख्या में महिलाओं की वोटिंग की वजह से नीतीश कुमार की सरकार ने अपने दो दशकों के कार्यकाल में महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं को लागू किया है। इसमे पंचायतों में 50 फीसदी रिजर्वेशन, फ्री साइकिल योजना का नाम शामिल है। एक जेडीयू नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “नीतीश की ताकत महिला मतदाताओं का उनका जाति-निरपेक्ष क्षेत्र है, जिसे उन्होंने 11 लाख स्वयं सहायता ग्रुप, 1.4 करोड़ जीविका कार्यकर्ताओं और 1.21 करोड़ महिला उद्यमियों को 10000 रुपये की मदद के जरिये मजबूत किया है।”

तेजस्वी यादव भी महिला वोटर्स तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे

तेजस्वी भी चुनावों से पहले महिला वोटर्स तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले हफ्ते, उन्होंने जीविका कार्यकर्ताओं के लिए कई घोषणा की। इसमें दो साल के लिए ब्याज मुक्त लोन भी शामिल है। उनकी अन्य घोषणाओं में मां और बेटी योजनाएं शामिल हैं।

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