पवन सिंह की यह एक ऐसी वापसी थी, जो फिल्मी पटकथाओं के लिए बिलकुल सही थी। विवादित कामों के चलते पार्टी के साथ कुछ दिनों का अपना रिश्ता खत्म होने के डेढ़ साल बाद ही पवन सिंह पार्टी में लौट आए हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के वरिष्ठ सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा सही जातिगत पहचान वाले इस सितारे का स्वागत करने के लिए खुद मौजूद रहे।

सूत्रों के अनुसार यह बस समय की बात है जब भाजपा आरा विधानसभा सीट से पवन सिंह को टिकट देकर अपनी नई दोस्ती पक्की कर लेगी। पवन सिंह के जल्द ही इस निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करने की उम्मीद है।

पार्टी को पूरे शाहाबाद क्षेत्र में व्यापक प्रभाव की उम्मीद है, जिसमें चार जिले – भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास – तथा 22 विधानसभा सीटें शामिल हैं। पवन सिंह भोजपुर के बरहरा से ताल्लुक रखते हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में, जब विपक्ष ने उनके “अश्लील” गाने और संगीत वीडियो सामने रख दिए, तो भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया और शाहाबाद में पार्टी का लगभग सफाया हो गया।

शाहाबाद की 22 विधानसभा सीटों में उच्च जाति के राजपूत वोटों का घनत्व अधिक है, जिनसे पवन सिंह आते हैं। साथ ही यहां ओबीसी लव-कुश (कुर्मी और कोइरी) वोट भी बड़ी संख्या में हैं, जो कुशवाहा और उनकी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) पार्टी का आधार हैं।

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दिल्ली में पवन सिंह की भाजपा में वापसी की व्यापक रूप से साझा की गई तस्वीरों में उनकी और कुशवाहा की गर्मजोशी से गले मिलती हुई तस्वीरें खास तौर पर शामिल थीं। भाजपा से निकाले जाने के बाद पवन सिंह ने 2024 में काराकाट लोकसभा सीट से कुशवाहा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा था। नतीजा यह हुआ कि सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन के राजा राम सिंह जीत गए और पवन सिंह ने कुशवाहा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया।

यह कुशवाहा के लिए शर्मनाक हार थी, क्योंकि उन्होंने 2014 से 2019 तक काराकाट का प्रतिनिधित्व किया था, जबकि पवन सिंह पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार बने थे। इसके बाद भाजपा ने आरएलएम प्रमुख को राज्यसभा में जगह दिलाने में मदद की। सूत्रों का कहना है कि हाल ही में भाजपा के बिहार चुनाव प्रभारी नियुक्त किए गए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पवन सिंह की पार्टी में वापसी में अहम भूमिका निभाई।

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले जब गायक-अभिनेता पहली बार भाजपा में शामिल हुए थे, तब उन्हें पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट के लिए पार्टी ने चुना था। आसनसोल बिहार की सीमा से लगा हुआ है और यहां बिहारियों की अच्छी-खासी आबादी है। इसे एक अच्छा विकल्प माना गया था क्योंकि आसनसोल से भाजपा के पिछले सांसद बाबुल सुप्रियो थे, जो खुद गायक-लेखक रहे हैं और 2021 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गए थे।

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हालांकि, जैसे ही भाजपा ने पवन सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा की, टीएमसी ने उनके कई गाने प्रसारित कर दिए और उन्हें “अश्लील व महिलाओं से नफरत करने वाला” तथा “महिलाओं को वस्तु के रूप में चित्रित करने वाला” करार दिया। अन्य विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को उठाया। बाद में भाजपा ने पवन सिंह का टिकट वापस ले लिया, जिसके बाद उन्होंने काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़कर सभी को चौंका दिया।

आरा से उम्मीदवार के रूप में पवन सिंह भाजपा के लिए कई कसौटियों पर खरे उतरते हैं, जिनमें सबसे बड़ी कसौटी जाति है। उनकी वापसी अमित शाह की हालिया बिहार यात्रा के दौरान शाहाबाद के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ हुई बैठक के बाद हुई है।

बैठक में सबसे अहम मुद्दा 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम थे, जिनमें एनडीए शाहाबाद क्षेत्र की तीन सीटों – बक्सर, आरा और रोहतास – में से किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर पाया, साथ ही शाहाबाद और मगध से सटी काराकाट सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने चारों सीटों पर जीत दर्ज की थी। शाहाबाद क्षेत्र की 22 विधानसभा सीटों में 2024 में भाजपा केवल दो पर ही पहले स्थान पर रही। उसकी सहयोगी जदयू किसी भी सीट पर आगे नहीं थी। बाद में एक उपचुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र की रामगढ़ विधानसभा सीट जीत ली।

तुलनात्मक रूप से, 2010 के विधानसभा चुनावों में एनडीए ने शाहाबाद की 22 में से 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2015 में, जब जेडी(यू) ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा, तब एनडीए को यहां केवल पांच सीटें मिलीं। 2020 के विधानसभा चुनावों में, जेडी(यू) के सत्ता में लौटने के बावजूद, एनडीए शाहाबाद की 22 सीटों में से सिर्फ दो ही जीत पाया।

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यह दर्शाना कि कुशवाहा ने पवन सिंह को “माफ” और “स्वीकार” कर लिया है, भाजपा के जातीय समीकरणों के लिए भी महत्वपूर्ण था। 2024 में अपनी हार के बाद कुशवाहा ने खुले तौर पर “अंदरूनी तोड़फोड़” का आरोप लगाया था। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया: “कुशवाहा की हार पवन सिंह के उनके खिलाफ चुनाव लड़ने और भाजपा द्वारा इसे रोकने के लिए कुछ न करने के कारण हुई… पवन-कुशवाहा की मुलाकात ने कुशवाहा समाज को सही संदेश दिया।”

नेता ने कहा कि राजपूत-कुशवाहा गठबंधन भाजपा को मगध क्षेत्र में भी मदद कर सकता है, जहां चार विधानसभा सीटें हैं – औरंगाबाद, रफीगंज, ओबरा और नबीनगर। यह तथ्य भी अहम है कि कुशवाहा समाज इस क्षेत्र में परंपरागत रूप से सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन को वोट देता रहा है, जो महागठबंधन की सहयोगी है। 2024 में पवन सिंह प्रकरण के बाद भी इस समुदाय ने ऐसा ही किया था। यही कारण था कि भाजपा इस सौदे को पक्का करने के लिए उत्सुक थी।

पवन सिंह की भाजपा में वापसी पर पूछे जाने पर दिल्ली के कार्यक्रम में कुशवाहा ने स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा। उन्होंने बस इतना कहा: “एनडीए में आने वाला कोई भी महत्वपूर्ण नेता गठबंधन को महत्व देता है। मैं एनडीए के सभी महत्वपूर्ण नेताओं के साथ मंच साझा करूंगा।”

जातिगत गणित साधने के अलावा, भाजपा पवन सिंह की स्टार प्रचारक के रूप में निर्विवाद लोकप्रियता का भी लाभ उठाएगी। 1997 में अपने एल्बम ‘ओ धनियावाली’ से भोजपुरी गायक के रूप में शुरुआत करने के बाद उन्होंने “लगावेलु लिपस्टिक” जैसे गीत और रंगली चुनरिया तोहरे नाम, प्रतिज्ञा, सत्या और क्रैक फाइटर जैसी फिल्मों में हिट गाने दिए हैं। 2024 में उनकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी थी।

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने इस घटनाक्रम को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। उन्होंने कहा: “कुशवाहा 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद जमीनी स्तर से कट गए हैं… हम विधानसभा चुनावों में भी अपने लोकसभा प्रदर्शन को जारी रखेंगे। पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा हमारे लिए कोई मायने नहीं रखते।”

सीपीआई (एम-एल) लिबरेशन के बिहार राज्य सचिव कुणाल ने टिप्पणी की: “उपेंद्र कुशवाहा और पवन सिंह का एक दूसरे को गले लगाना हमें महाभारत के धृतराष्ट्र और भीम के गले लगाने जैसा लगता है। कुशवाहा शाहाबाद में पवन को क्यों पनपते देखना चाहेंगे? हमारे लिए तो कोई खतरा नहीं है। हमने 2024 में दो लोकसभा सीटें – आरा और काराकाट – जीतकर अपनी ताकत साबित कर दी है। 2020 के चुनावों में भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया था, जब हमने 12 सीटें जीती थीं, जिनमें से ज्यादातर शाहाबाद क्षेत्र से थीं।”