गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। गुजरात की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले अहमदाबाद मिरर के संपादक अजय उमट इसे आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी का एक जरूरी कदम बताते हैं। समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया के एक कार्यक्रम में इस विषय़ पर चर्चा करते हुए अजय उमट ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी काफी चिंतित रही है और वह इन चुनावों में किसी भी तरह का जोखिम लेने के विचार में नहीं है। बताते चलें कि 2017 के विस चुनावों में बीजेपी के खाते में 99 सीटें ही आईं थी। बीजेपी नेतृत्व के दखल के बाद किसी तरह सरकार बनाने की अनुकूल स्थिति बन पाई थी।
वरिष्ठ पत्रकार के अनुसार भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 6 महीनों में तीन अलग अलग एजेंसियों के साथ सर्वे कराए। सभी सर्वे में यह बात सामने आई कि विजय रूपाणी के चेहरे के साथ चुनाव जीतना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि गुजरात के चुनावों में आम आदमी पार्टी फैक्टर भी अहम भूमिका निभा सकता है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने रूपाणी को पद से हटाने में जरा भी देरी नहीं की। सर्वे में सामने आया कि विजय रूपाणी के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी नुकसानदायक हो सकता है।
वहीं कांग्रेस का कहना है कि क्रेडिबिलिटी क्राइसेस के चलते बीजेपी को मजबूरी में विजय रूपाणी को हटाने का फैसला लेना पड़ा। कांग्रेस प्रवक्ता अर्जुन मोढवाडिया ने कहा कि कोविड काल के दौरान जिस तरह की परिस्थितियां बनी, उसने विकास के सारे दावों को पोल खोलकर रख दी। लोगों के गुस्से को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व को यह फैसला लेना पड़ा तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का मानना है कि राज्य़ की राजनीति में AAP के दखल के बाद बीजेपी को जनता की नाराजगी समझ आई और उन्होंने यह फैसला लिया।
RSS ने भी किया था सर्वे: गुजरात चुनावों को लेकर संघ ने भी अपना सर्वे कराया था। सूत्रों के अनुसार इस सर्वे में भी मुख्यमंत्री के खिलाफ नाराजगी का जिक्र करते हुए विजय रूपाणी के नाम पर चुनाव जीतना मुश्किल बताया था। सूत्रों की मानें तो इस्तीफे से पहले विजय रूपाणी और अमित शाह के बीच एक सीक्रेट मीटिंग भी हुई थी। इस्तीफे की पेशकश से दो दिनों पहले शाह रात में गुजरात पहुंचे थे और विजय रूपाणी से मुलाकात कर सुबह दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे।
यह पहला मौका नहीं है जब एंटी इंकम्बेंसी से निपटने के लिए चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को ही बदल दिया जाए। 2017 के चुनावों से एक साल पहले इसी तरह आनंदी बेन पटेल को हटाकर विजय रूपाणी को सीएम की कुर्सी पर बिठाया गया था। खुद नरेंद्र मोदी भी इसी तरह के एक बदलाव के चलते मुख्यमंत्री बने थे। उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले केशुभाई पटेल ने अपने चार साल का कार्यकाल पूरा किया था। हालांकि सीएम की कुर्सी पर बैठने के बाद नरेंद्र मोदी, गुजरात भाजपा के लिए अपवाद रहे हैं। वह केंद्र में आने से पहले लगातार कुर्सी पर बने रहे थे।
क्या है BJP का फार्मूला: भारतीय जनता पार्टी की नीति रही है कि जब भी उन्हें नेतृत्व के खिलाफ जनता के असंतोष की जानकारी होती है, तो वह पार्टी नेतृत्व परिवर्तन में देरी नहीं करते हैं। उत्तराखंड और कर्नाटक भी इसके उदाहरण माने जाते हैं।
इसके अलावा एक्सपर्ट्स कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियां इस तरह से मुख्यमंत्री को बदलकर चार साल में पैदा हुई एंटी इंकम्बेंसी को कम करने की कोशिश करती हैं, साथ ही पार्टी में पैदा हो रही खेमेबाजी पर भी काफी हद तक लगाम लगा देती हैं। ऐसे में पार्टी एक बार फिर चुनावों के लिए नए सिरे से जुट जाती है। ऐसा नहीं है कि यह चलन गुजरात भाजपा का रहा हो, इतिहास में कांग्रेस के भी ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे , जब चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदल दिया गया हो।