Former CM of Madhya Pradesh Babulal Gaur का लंबी बीमारी के बाद 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नर्मदा अस्पताल में अंतिम सांस ली। बाबूलाल गौर की जिंदगी में किस्मत ने कई बार पलटी मारी। मुख्यमंत्री तो वो मध्य प्रदेश के बने लेकिन जन्म उनका उत्तर प्रदेश में हुआ था। मध्य प्रदेश बीजेपी की सियासत में पिछले एक अरसे से वे हाशिये पर होने के बावजूद जमकर सुर्खियां बटोर रहे थे। उनके बयान शिवराज सरकार के लिए कई बार मुसीबत का सबब बने। आइये जानते हैं कैसे उत्तर प्रदेश में जन्मा एक शख्स कुश्ती के दंगल और शराब की फैक्ट्री से होता हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा बना और फिर मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री भी बन गया।
पहले दंगल, फिर शराब का कारोबारः बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित नौगीर गांव में हुआ था। उनका असली नाम बाबूराम यादव था। बचपन में वो भी दंगल में जाया करते थे। एक दंगल में उनके पिता राम प्रसाद की जीत से खुश होकर अंग्रेजों ने उन्हें एक शराब कंपनी में नौकरी दे दी। नई नौकरी के लिए बाबूलाल अपने पिता के साथ भोपाल चले गए। वहां शराब कंपनी में काम करते-करते राम प्रसाद खुद शराब बेचने लगे। इस दौरान बाबूलाल भी उनके साथ काम में हाथ बंटाते थे।
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16 साल की उम्र में संघ का दामन थामाः दंगल से शराब व्यापार तक का सफर तय करने के बीच 16 साल की उम्र में बाबूलाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। रिपोर्ट्स के मुताबिक संघ की शाखा में बाबूलाल से कहा गया कि शराब बेचना अच्छा काम नहीं है। इसी बीच राम प्रसाद का निधन हो गया और शराब की दुकान बाबूलाल के नाम किए जाने की बात हुई, लेकिन बाबूलाल ने मना कर दिया। इसके बाद कुछ समय उन्होंने खेती की लेकिन बाद में एक कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगे।
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापकों में है नामः इसी बीच आरएसएस से जुड़े दत्तोपंत थेंगड़ी ने भारतीय मजदूर संघ का गठन किया और बाबूलाल गौर का नाम भी इसके संस्थापक सदस्यों में शुमार हुआ। इसके बाद 1974 में हुए एक उपचुनाव में बाबूलाल गौर पहली बार विधायक का चुनाव जीते थे। इसके बाद इमरजेंसी के समय वे जय प्रकाश के भी संपर्क में आए। जेपी ने भी उन्हें चुनाव लड़वाया।
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बुलडोजर मंत्री यूं बने मुख्यमंत्रीः मध्य प्रदेश में सुंदरलाल पटवा की सरकार में बाबूलाल गौर मंत्री भी बने। इस दौरान अतिक्रमणकारियों पर सख्त अंदाज के चलते उन्हें बुलडोजर मंत्री का भी नाम मिला। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने मुख्यमंत्री पद तक का रास्ता भी बड़े रोचक अंदाज में तय किया। 2003 में मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह को हराकर उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं लेकिन उन्हें एक साल में पद छोड़ना पड़ा। उमा ने इस्तीफा देकर इस कुर्सी के लिए बाबूलाल गौर को चुना। इसके बाद कई विवाद बाबूलाल गौर के नाम जुड़े और अंत में 2005 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।