योगी आदित्यनाथ की सरकार की तरफ से नियुक्त किए गए लॉ अफसरों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें आरोप लगाया गया है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इशारे पर इन लोगों को नियुक्ति दी गई। इनमें से कई बीजेपी के नेताओं के साथ जजों के रिश्तेदार भी हैं। इन सभी की नियुक्ति में सरकार ने जमकर मनमानी की। हाईकोर्ट से फैसले को रद्द करके ठीक तरीके से नियुक्ति कराने की मांग की गई है।
ध्यान रहे कि यूपी सरकार ने हाल ही में 841 लॉ अफसरों की सेवाएं समाप्त कर दी थीं। लेकिन जिस दिन उन्हें हटाने का फैसला हुआ उसी दिन एक लिस्ट जारी की गई। इस आदेश में हाईकोर्ट की इलाहाबाद बेंच के लिए 366 और लखनऊ बेंच के लिए 220 लॉ अफसरों की नियुक्ति की गई थी। हाईकोर्ट ने भी चीफ सेक्रेट्री से कहा था कि वो कैबिनेट से पूछकर बताए कि क्या इतने सारे एडिशनल एडवोकेट जनरल और चीफ स्टैंडिंग काउंसिल की वाकई में सरकार को जरूरत है। उसके बाद ये याचिका आई है।
याचिका दायर करने वाले वकीलों में राम शंकर तिवारी, शशांक कुमार शुक्ला और अरविंद कुमार शामिल हैं। उनकी आपत्ति लखनऊ बेंच के लिए सिलेक्ट किए गए 220 लॉ अफसरों को लेकर है। आरोप है कि इनमें से बहुत सारे योग्य भी नहीं हैं। लॉ अफसर बनने के लिए पांच साल के अनुभव की जरूरत होती है पर सिलेक्ट किए गए कई वकील कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
उनका कहना है कि सारी लिस्ट बेहद दबाव में तैयार की गई। बीजेपी के नेताओं ने अपने रिश्तेदारों को भरती करा लिया तो संघ से जुड़े वकीलों को भी तरजीह दी गई। कई वकील जजों और सरकार के बड़े अफसरों की सिफारिश पर नियुक्त किए गए।
वकीलों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने लॉ अफसरों की नियुक्ति को लेकर एक फैसला दिया था। सरकार को उसकी पालना करके लॉ अफसरों की नियुक्ति करनी थी। लेकिन उसे अनदेखा किया गया। भारी भरकम तनख्वाह और सुविधाएं देकर 6 चीफ स्टैंडिंग काउंसिल बनाए गए हैं। उनकी मांग है कि फिर से एक कमेटी बनाकर योग्यता पूरी करने वाले वकीलों की नियुक्ति की जाए।