उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले दलितों के दिलों में जगह बनाने के लिए अमित शाह, राहुल गांधी के नक्शे-कदम पर चल पड़े हैं। बनारस के जोगियापुर गांव में दलित के साथ भोजन कर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के उस फार्मूले को अमली जामा पहनाया है, जिसे चाह कर भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान अपने पक्ष में करने में कामयाब नहीं हो सकी।
भारतीय जनता पार्टी सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के एक बरस पहले से ही बहुजन समाज पार्र्टी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश में है। उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं तक अपनी पकड़ जमाने के लिए डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती और पुण्यतिथि पर दलित बस्तियों में एक दिन गुजार कर उसने इसकी शुरुआत कर दी है। अब विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दलितों के साथ भोज कर वे राहुल गांधी के इस पुराने फार्मूले को आजमाना चाहती है जिसका परिणाम कांग्रेस के लिए सिफर ही रहा है।
इस बाबत राजनीतिक विश्लेषक रवि यादव कहते हैं, वर्ष 2004 से पिछले वर्ष तक दलितों की झोपड़ी में दर्जनों बार रात बिताने और उनके साथ भोजन करने के बावजूद राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस के हाथ लगी नाउम्मीदी से भी भाजपा सबक लेने को तैयार नहीं है। अमित शाह को दलितों के साथ खाना खाकर संदेश देने की जगह यह सुनिश्चित करना चाहिऐ था कि उत्तर प्रदेश के हर गरीब की झोपड़ी में दो वक्त भर पेट खाना बन सके।
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों का दलित प्रेम नई बात नहीं है। राहुल गांधी के आगमन पर, महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओंं ने प्रदेश के तीन सौ दलित परिवारों के घर रात बिताई और सहभोजन का लुत्फ उठाया। उसके बाद भी लोकसभा चुनाव में सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही जीत का स्वाद चख पाने में कामयाब हो सके। कांग्रेस का हश्र देखने के बावजूद भाजपा के दलित प्रेम पर वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बृजेश मिश्र कहते हैं, लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने प्रदेश के गरीबों से जो वादे किए थे, वे अब तक पूरे नहीं हो सके।
अब कह रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में हमें सत्ता दिलाइए तो हम दलितों को उनका हक दिलाएंगे। शायद भाजपा उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के मिजाज से अभी नावाकिफ है। उसे इस बात का इल्म ही नहीं है कि प्रदेश में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का मतदाता सियासी दलों के हर हथकंडे को खूब समझता है। छह दशक से अधिक समय से वह लगातार ठगा जा रहा है। उसकी सियासी समझ काबिले-गौर है। भाजपा को दो वर्ष में उत्तर प्रदेश के लिए इतना कुछ कर देना चाहिए था कि यहां उसे सतही हथकंडों को अपनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। वह अपने दो साल के रिपोर्ट कार्ड के जरिए ही मतदाताओं के दिलों तक पहुंच सकती थी।
भाजपा के दलित प्रेम पर समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी को दलितों ने सिरे से खारिज किया। तभी प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी। बीते चार सालों के दौरान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिए प्रदेश के सभी वर्ग और जाति के लोगों के लिए जो विकास कार्य किए उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। चौधरी सवाल करते हैं कि सिर्फ दलितों के साथ भोजन करते फोटो खिंचा लेने से कहीं उनका विकास होता है?
फिलहाल उत्तर प्रदेश में भाजपा हर उस कोशिश को आजमाना चाहती है जिसके सहारे सत्ता तक पहुंचा जा सके। लेकिन उसे इस बात का ख्याल रखना होगा कि प्रदेश में उसके 71 सांसदों का रिपोर्ट कार्ड भी विधानसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में अहम किरदार अदा करेगा। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आखिर अमित शाह का दलितों के साथ वाराणसी में किया गया भोज क्या उनके दिलों में पार्टी के लिए जगह बना पाने में कामयाब हो सकेगा?