Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार के सबसे बड़े त्योहार छठ के मौके पर पटना में सूर्योदय से पहले ही आसमान जगमगा उठा। हवा छठ गीतों से गूंज उठी और बच्चे गंगा के दीघा घाट पर दौड़ पड़े। सुबह होते ही श्रद्धालु जुटने लगे। कई लोग यहीं रात बिता चुके थे, तो कुछ लोग पिछली शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर लौट रहे थे।

शारदा देवी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि वह लगभग दो दशक पहले से ही छठ के लिए घाट पर आती रही हैं, जब वह बमुश्किल किशोरावस्था में थीं, लगभग उसी समय जब जनता दल यूनाइटेड सुप्रीमो नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। छठ पर्व के साथ बिहार का पूरा ध्यान चुनावों पर है। शारदा ने कहा उन्हें ये 20 साल एक और वजह से याद हैं और वो हैं नीतीश के शासनकाल में बदलाव। उन्होंने कहा, “नीतीश जी की सरकार में ही ये सारे पुल और सड़कें बनीं। पहले यह पूरा इलाका सिर्फ खेत था और यहां आने के लिए लोकल ट्रेनें लेनी पड़ती थीं।” अटल पथ और जेपी गंगा पथ सड़क परियोजनाओं ने नदी तक दो सीधे संपर्क प्रदान करके पटना में कनेक्टिविटी को बदल दिया है।

शारदा नीतीश सरकार की जीविका स्वयं सहायता समूह पहल के लिए भी आभारी हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के एक साल बाद की थी। शारदा पिछले साल नवंबर में इसमें शामिल हुईं और अब लगभग 1.35 करोड़ महिलाएं इसकी सदस्य हैं। उन्होंने कहा, “महिलाओं के लिए बैंक से लोन लेना लगभग असंभव हुआ करता था। जीविका के साथ यह बहुत आसान है और ब्याज दरें भी कम हैं।”

मैं 8000 रुपये महीना कमाती हूं- राधा

एक अन्य महिला राधा ने भी जीविका कार्यक्रम को लाइफ लाइन बताया। उनके पति बिना किसी नियमित आय के दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। राधा ने कहा, “जीविका के जरिए मुझे दीदी की रसोई में नौकरी मिल गई। मैं 8000 रुपये महीना कमाती हूं, जिससे हमें स्थिरता मिलती है। पहले हम 10-15 दिन की अनिश्चित दिहाड़ी पर निर्भर रहते थे। हमारे लिए अपने बच्चे की स्कूल फीस का इंतजाम करना भी मुश्किल हो रहा था।”

2008 से वोटर रहीं पुतुल देवी ने नीतीश सरकार के महिला-केंद्रित योजनाओं की तारीफ की। उन्होंने कहा, “नीतीश जी ने महिलाओं के लिए पहले ही बहुत सारी सुविधाएं प्रदान की हैं। हाल ही में मुझे भी (मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत) 10000 रुपये मिले हैं, जिन्हें मैंने खेती में लगाया है। इससे हमें और कमाई करने में मदद मिलेगी।”

कुछ ही मीटर की दूरी पर एक 50 साल की मुख्यमंत्री के कार्यकाल की बात दोहराई। उन्होंने कहा, “नीतीश जी ने सड़कें और नालियां तो बनवा दी हैं, लेकिन जब परिवार में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ता है, तो हमें अभी भी राज्य से बाहर जाना पड़ता है।” उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें उम्मीद नहीं है। महिला ने कहा कि हालात धीरे-धीरे सुधर रहे हैं। पहले तो हमारे पास इतना भी नहीं था।

अब बच्चे भी सड़क पर देर रात तक सुरक्षित घूमते हैं- श्वेता सिंह

वहीं, बांकीपुर के छठ घाट पर श्वेता सिंह ने भी यही बात कही। उन्होंने कहा, “जब नीतीश जी कहते हैं कि पहले महिलाएं सूर्यास्त के बाद बाहर नहीं निकलती थीं, तो वे सही कहते हैं। एक बार बोरिंग रोड के पास बंदूक की नोक पर मुझे लूट लिया गया था। लेकिन अब तो बच्चे भी देर रात तक सुरक्षित घूमते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि अब और कुछ करने का समय आ गया है, क्योंकि उन्होंने राज्य की उस नाजुक नस को छुआ है जो पहले जातिगत आधार पर बुरी तरह बंटी हुई थी।

मुझे तेजस्वी के वादों पर भरोसा नहीं- श्वेता सिंह

श्वेता ने कहा, “मेरे दोनों बेटे बिहार से बाहर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं, एक नोएडा में और दूसरा बेंगलुरु में हैं। यहां कॉलेज तो हैं, लेकिन नौकरी की संभावनाएं सीमित हैं।” विपक्ष और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के रोजगार पर जोर देने के बारे में श्वेता ने कहा, “मुझे तेजस्वी के वादों पर भरोसा नहीं है। कम से कम नीतीश जी कोशिश तो कर रहे हैं और एक-एक कदम आगे बढ़कर सुधार कर रहे हैं।”

दीघा और बांकीपुर दोनों ही एनडीए के गढ़ हैं, इसलिए विपक्ष के प्रति यह अविश्वास अप्रत्याशित नहीं है। 2008 के परिसीमन से पहले दीघा और बांकीपुर पटना पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा थे। बीजेपी ने अपने मौजूदा विधायकों को फिर से मैदान में उतारा है। बांकीपुर से नितिन नबीन को मैदान में उतारा है और दीघा से दो बार विधायक रहे संजीव चौरसिया को मैदान में उतारा है। दीघा सीट का प्रतिनिधित्व इससे पहले 2010 से 2015 तक जदयू की पूनम देवी ने किया था।

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दीघा और बांकीपुर में महिला वोटर्स की कितनी संख्या?

एसआईआर के बाद पब्लिश की गई वोटर लिस्ट के मुताबिक, पटना में दीघा में महिला वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां पर करीब 2.17 लाख महिलाएं हैं। बांकीपुर में उनकी संख्या 1.78 लाख है। महिलाओं को नीतीश का वफादार समर्थक माना जाता है, जो उनके पहले कार्यकाल से ही उनकी योजनाओं से आकर्षित रही हैं। कुल मिलाकर, राज्य के कुल 7.42 लाख वोटर्स में से लगभग 50% यानी 3.5 करोड़ महिलाएं हैं।

हालांकि, एनडीए को मिल रहे समर्थन के बीच कुछ लोग नीतीश से आगे दीघा और बांकीपुर घाटों की ओर भी देख रहे हैं। बांकीपुर की एक 21 साल की छात्रा ने बताया कि कैसे वह बेहतर अवसरों की तलाश में 2023 में पटना यूनिवर्सिटी से दिल्ली यूनिवर्सिटी आ गईं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैंने 2022 में पीयू में दाखिला लिया था, लेकिन अगले ही साल मैंने अपना दाखिला बदल लिया। पीयू के टीचर अच्छे हैं, लेकिन माहौल और संसाधन कमजोर हैं और पीयू की स्थिति बिहार के कुछ अन्य यूनिवर्सिटी से भी बेहतर है। उन्होंने कहा, “दिल्ली में इंटर्नशिप के भी कहीं ज्यादा अवसर हैं।”

इस छात्रा ने माना कि उन्हें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के तथाकथित जंगल राज का अनुभव नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं उस चीज पर टिप्पणी नहीं कर सकती जो मैंने देखी ही नहीं। हमारे लिए वर्तमान ज्यादा मायने रखता है।” विपक्ष के एक और चेहरे प्रशांत किशोर ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींचा है। उन्होंने कहा, “कई युवा उनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। वह नए हैं और शायद अभी सरकार नहीं बना पाएंगे, लेकिन वह एक नए विकल्प का प्रतिनिधित्व करते हैं।”

लोग लालू के काम को भूल गए- मीना देवी

दीघा घाट पर मीना देवी ने अफसोस जताया कि लोग लालू द्वारा हाशिए पर पड़े समुदायों के सशक्तिकरण के लिए किए गए काम को भूल गए हैं। उन्होंने कहा, “आज हर जाति के लोग एक साथ पूजा करते हैं। यह सिर्फ लालू जी की वजह से ही संभव है। उन्होंने निचली जातियों के लोगों को आवाज दी।” नीतीश के बारे में उन्होंने दावा किया कि उनके परिवार को उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिला। उन्होंने कहा, “यहां तक कि वृद्धावस्था पेंशन पाने के लिए भी हमें एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर भागना पड़ता है।”

मीना देवी के तीनों बेटे राज्य के बाहर काम करते हैं। उन्होंने कहा, “यहां सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही सरकारी नौकरी पा पाते हैं, बाकियों को पलायन करना पड़ता है। स्थानीय विधायक ने रोजगार सृजन की कभी परवाह नहीं की।” क्या एक महिला विधायक महिलाओं के मुद्दों का बेहतर प्रतिनिधित्व कर पाएगी? मीना देवी ने कहा, “शायद। कम से कम जिस तरह महिलाएं पुलिस में भर्ती हुई हैं, उन्हें राजनीति में भी अवसर मिलना चाहिए, ताकि हम उनसे आसानी से संपर्क कर सकें और हमारी बातें सत्ता में बैठे लोगों तक पहुंच सकें।”

मीना देवी के तीनों बेटे राज्य के बाहर काम करते हैं। उन्होंने कहा, “यहां सिर्फ पढ़े-लिखे लोग ही सरकारी नौकरी पा पाते हैं, बाकियों को पलायन करना पड़ता है। स्थानीय विधायक ने रोजगार सृजन की कभी परवाह नहीं की।” क्या एक महिला विधायक महिलाओं के मुद्दों का बेहतर प्रतिनिधित्व कर पाएगी? मीना देवी ने कहा, “शायद। कम से कम जिस तरह महिलाएं पुलिस में भर्ती हुई हैं, उन्हें राजनीति में भी अवसर मिलना चाहिए, ताकि हम उनसे आसानी से संपर्क कर सकें और हमारी बातें सत्ता में बैठे लोगों तक पहुंच सकें।” महागठबंधन शायद इसी पर भरोसा कर रहा है। दीघा और बांकीपुर से उसकी दोनों उम्मीदवार महिलाएं हैं।

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