दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सिख सियासत का अखाड़ा बन चुकी है। बीते दिनों आठ घंटे एक-एक कर जो घटनाक्रम हुए इससे तो यह बात सटीक तौर पर कही जा सकती है। पहले ‘प्रधान’ सिरसा इस्तीफा देते हैं, फिर ‘पूर्व प्रधान’ सिरसा इस्तीफा वापस लेते हैं। वे फिर ‘प्रधान’ बन जाते हैं। यह खबर जैसे ही विरोधियों को मिलती है, उनके (सिरसा) के एक महीने पहले दिए इस्तीफे को मंजूर करा लिया जाता है। जब यह खबर ‘सिरसा’ तक पहुंचाई जाती है तो वे न केवल ‘बेफिक्री’ दिखाते हैं बल्कि चुस्की भी लेते हैं। अचरज जताते कहते हैं- ‘किसका इस्तीफा मंजूर किया गया, मैंने तो इस्तीफा कई घंटे पहले ही ले लिया था। जब कोई चीज वहां थी ही नहीं तो उसके स्वीकार करने या अस्वीकार करने का मुद्दा ही कहां है?’ इसके बाद उनके गुट उनकी (सिरसा की) प्रधान के पद पर बरकरारी का दावा करते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है लगता है अब यह भी मामला हाई कोर्ट जाएगा। लेकिन इतना तो तय है, सिरसा की चाल उनके अपने (अब पराए) भी नहीं समझ पाए। क्योंकि चित भी सिरसा की थी और पट भी सिरसा की है।

नेताजी हुए गदगद
राजनीतिक दलों के नेताओं में छपास रोग तो होता ही है लेकिन कभी-कभी यह रोग इतना ज्यादा फैल जाता है कि सामने वाले को भी मजबूरन कुछ सोचने को बाध्य होना पड़ता है। दिल्ली नगर निगम के मुख्यालय में दो स्वतंत्रता सेनानियों की आदमकद प्रतिमा लगी हुई है। इनमें बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की एक प्रतिमा है जबकि दूसरे भी एक स्वतंत्रता सेनानी ही हैं। हुआ यूं कि बेदिल ने देखा कि एक दिन किसी छपास रोगी ने अपने मोबाइल से एक वीडियो बनाया और उसमें दिखाया गया कि बाबा साहेब की प्रतिमा के उपर कोई छतरी नहीं है जबकि दूसरे व्यक्ति की प्रतिमा छतरी से ढकी हुई है। इस वीडियो को निगम में बैठे तमाम अधिकारी और राजनेताओं ने मजे ले लेकर देखा। लेकिन हद तो तब हो गई जब एक राजनीतिक दल की नवनियुक्त सदन की नेता ने प्रेस में बयान देकर इसे बाबा साहेब का अपमान बता दिया। उनके बयान छपे या नहीं इसकी तहकीकात में नहीं जाकर बेदिल ने जब उस पार्षद के मीडिया सलाहकार से पूछा कि इसका क्या औचित्य? तो जवाब मिला यही कि आप उनके बयान छापें और नेताजी गदगद हो जाए।

टिकट की लड़ाई
आगामी साल में दिल्ली में तीनों नगर निगम के चुनाव होने हैं। इसको लेकर दल-बदल का दौर भी शुरू हो गया है। आए दिन विपक्ष के नेता, कार्यकर्ता और समर्थक सत्ता में काबिज पार्टी में शामिल हो रहे हैं। अब भी कई निगम पार्षद और पूर्व पार्षद कतार लगाकर खड़े हैं, जिनकों भरोसा है कि इस बार पार्टी उनकी टिकट काट सकती है। ऐसे में कुछ नेता दल-बदलने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। पर नेताओं के शामिल होने के बाद सत्ता पर काबिज पार्टी के अंदर खाने आवाज उठने लगी है। नेताओं और कार्यकर्ताओं को डर सता रहा है कि यदि दूसरे पार्टी से छोड़कर शामिल होने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं पर पार्टी ज्यादा भरोसा जताती है तो उनका क्या होगा, जो सालों से इस उम्मीद के साथ काम कर रहे थे कि पार्टी निगम चुनावों में उन पर भरोसा जताएगी। पार्टी कार्यालय में दबे जुबान ही सही पर कुछ नेता यह सवाल खड़े करने लगे हैं कि जो नेता पार्टी में शामिल हो रहे हैं। वह संगठन को मजबूत करने नहीं, बल्कि अपनी सीट पक्की करने पार्टी में आ रहे हैं। यह तो वक्त ही बताएगा कि दल-बदलु नेताओं पर पार्टी भरोसा जताती है या फिर सालों से संगठन को मजबूत करने वाले अपने नेताओं पर।

नींद हुई गायब
दिल्ली से सटे उत्तर-प्रदेश के नामचीन औद्योगिक महानगर नोएडा समेत समूचे गौतमबुद्ध नगर में राजनैतिक घुसपैठियों ने बरसों से पार्टी का झंडा उठाकर जनाधार बनाने वाले नेताओं की नींद उड़ा दी है। प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी में जहां निवर्तमान विधायकों के दोबारा टिकट दिए जाने पर असमंजस कायम है। वहीं, अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरे राजनैतिक दलों की सदस्यता लेने की भगदड़ से ऐसे हालात बन गए हैं कि प्रचार या पार्टी की नीतियों के प्रचार के बजाए दावेदारी के इच्छुक नेता टिकट मिलने की अपने गोटी फिट करने में व्यस्त हैं। तकरीबन सभी विपक्षी दलों के पहले चुनाव प्रत्याशी रहे समेत अन्य दावेदार, हाल ही में सदस्यता लेकर दमखम के साथ प्रत्याशी के रूप में खुद का स्वयं प्रचार कर रहे हैं। इसके लिए प्रचार, पोस्टरों और होर्डिंग आदि लगाने में लाखों रुपए खर्च भी कर रहे हैं। ज्यादातर राजनैतिक दलों के इलाकेवार प्रत्याशियों ने बैनर, होर्डिंग लगाकर पार्टी समर्थकों समेत आम लोगों के लिए अपहोय की स्थिति पैदा कर दी है।
-बेदिल