गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, प्यास और ऐसे न जाने कितने ही हिन्दी के गरिष्ठ शब्द भी बुन्देलखण्ड के लोगों की दुर्दशा बयां करने के लिए नाकाफी हैं। आजादी के बाद से अब तक सिर्फ सियासी सुर्खियां बटोरने के लिए इस्तेमाल होता आ रहा बुन्देलखण्ड इस बार उत्तर प्रदेश के उस मुख्यमंत्री से उम्मीद लगाये है जो क्रान्ति रथ पर सवार होकर उनके इलाके के चप्पे-चप्पे से विधानसभा चुनाव के दरम्यान ही वाकिफ हो चुका है। गुजरे रविवार को आई तेज आंधी और बारिश ने अन्न के दाने की आस भी बुन्देलखण्ड से छीन ली है। ऐसे में सूख प्रभावित परिवारों को सरकार खाद्य सामग्री वितरित करने जा रही है जिसकी शुरुवात 31 मार्च को मुख्यमंत्री चित्रकूट से करेंगे।
गुरुवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चित्रकूट जाएंगे। जहां उनके रात्रि प्रवास की बात भी कही जा रही है। आल्हा-ऊदल और जुझौतिया ब्राह्मणों के इस इलाके में बूंद-बूंद पानी को तरसते लोगों की व्यथा अखिलेश यादव से छिपी नहीं है। 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान वे खुद क्रान्ति रथ पर सवार होकर पूरा बुन्देलखण्ड और उसकी जमीनी हकीकत से बखूबी वाकिफ हो चुके हैं। 31 मार्च को वे सूखा प्रभावित अंत्योदय परिवार कार्ड धारक एक लाख 72 हजार परिवारों को दस किलो आटा, पांच किलो चने की दाल, 25 किलोग्राम आलू, पांच किलोग्राम खाद्य तेल, एक किलोग्राम देशी घी और उतना ही दूध का पाउडर वितरित करेंगे। उनके इस कार्यक्रम पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय बहादुर पाठक चुटकी लेते हैं। उनका कहना है कि झोले में खाद्य सामग्री देकर बुन्देलखंड की जनता की जठराग्नि तो फौरी तौर पर शान्त की जा सकती है लेकिन इससे इलाके का नियोजित विकास नहीं किया जा सकता। अखिलेश सरकार पर सवाल दागते हुए वे कहते हैं, अखिलेश यादव ने अपने चार साल के कार्यकाल में बुन्देलखण्ड के विकास के लिए क्या किया? इसका उन्हें जवाब देना होगा। वहां पेयजल और सिचाई के लिए सरकार की तरफ से प्रयास क्या किये गये? इलाके के औद्योगिक विकास की दिशा में क्या हुआ? इसका जवाब न ही राज्य सरकार के पास है और न ही समाजवादी पार्टी के पास। सिर्फ भोजन बांटने से बुन्देलखण्ड की तकदीर बदलने वाली नहीं है।
बुन्देलखण्ड की दयनीय दशा को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इसे अलग राज्य बनाने की पेशकश तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की थी। उस वक्त उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बुन्देलखण्ड के सूरतेहाल से उन्हें अवगत कराया था। इस पत्र में बुन्देलखण्ड की सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी को ठहराया गया है। पत्र में कहा गया था कि बुन्देलखण्ड की प्रति व्यक्ति आय 13 हजार 250 रुपये है। यहां एक हेक्टेयर जमीन पर औसतन 11.05 क्विंटल अन्न की पैदावार होती है। इस इलाके की जमीन का आधा हिस्सा ही पूरी तरह सिंचित है। प्रदेश के पिछड़े इलाकों में शुमार बुन्देलखण्ड में सिर्फ 69.94 प्रतिशत गावों तक बिजली पहुंच पाई है। कलम से अधिक बंदूक पर भरोसा करने वाले इस इलाके में साक्षरता दर आधे से भी कम यानी 48.41 प्रतिशत है। यहां की सिर्फ 35 प्रतिशत महिलाओं को साक्षर होने का सौभाग्य प्राप्त है। संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार के दौरान राहुल गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर बुन्देलखण्ड को अपनी प्राथमिकता सूची में सर्वोच्च पायदान पर रखा था। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने भी झांसी में सभा के दौरान बुन्देलखण्ड की तकदीर संवारने की बात कही थ्राी। उसके बाद भी इस इलाके की तकदीर जस की तस है।
मुख्यमंत्री 31 मार्च को बुन्देलखण्ड की यात्रा पर निकलेंगे। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के दौरान उन्होंने इस इलाके की जो हकीकत हैलीकाप्टर से देखी थी, उसकी तस्दीक का अब समय है। इस बाबत समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि बुन्देलखण्ड को लेकर मुख्यमंत्री बेहद संजीदा हैं। उन्होंने इस क्षेत्र के लिए विशेष आर्थिक पैकेज का प्रावधान भी बजट में किया है। सरकार इस इलाके के लोगों को खुशहाल बनाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है।