AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी अब राजस्थान की राजनीति में भी अपनी जमीन तलाशने की जुगत में लग गए हैं। राजस्थान में साल 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में ओवैसी ने घोषणा की है कि राज्य की 200 सीटों में से 40 पर AIMIM अपना प्रत्याशी उतारेगी। राजस्थान में एआईएमआईएम के पहले चुनावों के लिए असदुद्दीन ओवैसी पॉलिटिकल पावर के संदेश के साथ मुस्लिम समुदाय को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।

‘उसके ही दर्द को समझा जाता है जिसके पास एक नेता होता है’- असदुद्दीन ओवैसी

हाल ही में भरतपुर और सचिन पायलट के निर्वाचन क्षेत्र टोंक में बैक-टू-बैक रैलियों में ओवैसी ने कहा कि केवल उस समुदाय को सुना जाता है जिसके पास एक नेता और राजनीतिक शक्ति होती है और उसके ही अन्याय और दर्द को समझा जाता है। टोंक में ओवैसी ने यह दिखाने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला दिया कि राजस्थान में 5 साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चों का प्रसार मुसलमानों में सबसे अधिक 32 प्रतिशत था जबकि राज्य का औसत 28 प्रतिशत था।

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम बच्चों में वेस्टिंग, स्टंटिंग और एनीमिया पूरे राज्य के आंकड़ों से भी बदतर थे। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? एआईएमआईएम प्रमुख ने यह भी बताया कि राजस्थान में मुस्लिम आबादी का लगभग 10 प्रतिशत या लगभग 70-80 लाख हैं। तेलंगाना में, 11-12 प्रतिशत पर, वे लगभग 45 लाख हैं। हालांकि, ओवैसी ने कहा कि अल्पसंख्यकों के लिए तेलंगाना का बजट 1,728 करोड़ रुपये है जबकि राजस्थान में यह 480 करोड़ रुपये है।

संख्या अधिक लेकिन राजनीतिक शक्ति नहीं

एआईएमआईएम प्रमुख ने आगे कहा, “इसे राजनीतिक शक्ति कहा जाता है। इस बारे में सोचें जब आप मतदान करते हैं। एआईएमआईएम के तेलंगाना में सात विधायक हैं, हमारे पास कोई मंत्री नहीं है लेकिन हम सरकार को मजबूर करते हैं। यहां आपकी संख्या अधिक है लेकिन आपके पास कोई राजनीतिक शक्ति नहीं है।”

ओवैसी का यह संदेश राजस्थान में काम कर सकता है क्योंकि राज्य में मुस्लिम नेतृत्व की बात आने पर एक खालीपन है। मुसलमानों में भी गहलोत सरकार के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। ऐसे में अगर ओवैसी को इस खालीपन के जवाब के रूप में देखा जाए तो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा, जिसे राजस्थान में सत्ता बरकरार रखने में भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।